बॉलीवुड इन दिनों दहला हुआ है, वह उस जहर का सामना अब खुद कर रहा है, जो वह इतने वर्षों से हिन्दुओं के प्रति बोता हुआ आया था। अब उसका दम भी उस जहर के कारण घुट रहा है। दरअसल अब तक काफी कुछ था जो घट रहा था मगर उसे देश की हिन्दू जनता अपना विशाल हृदय दिखाकर बचाकर ले जाती थी, उसे लगता था कि ठीक है, कुछ अजीब ही तो है, ठीक ही है! मगर फिर जब उसने देखा कि हिन्दुओं पर उन अपराधों का भी आरोपण होने लगा जो उसने आज तक किये ही नहीं थे।
हिन्दुओं के वर्णों पर प्रहार होने लगे, उनकी परम्पराओं को विकृत किया जाने लगा और भी न जाने क्या क्या होने लगा! और फिर हिन्दुओं ने यह निर्णय लिया कि वह फ़िल्में नहीं देखेगा! वह उन फिल्मों को नहीं देखेगा जो उसके आराध्यों का अपमान करती हैं, जो उसकी परम्पराओं का अपमान करती हैं। उसने इंकार कर दिया कि वह उन कथित कलाकारों की फिल्म देखेगा जो उसके आराध्यों को गाली देते हैं, उनका उपहास उड़ाते हैं!
क्या उसे उतनी भी स्वतंत्रता नहीं है? क्या उसे इतनी भी स्वतंत्रता नहीं है कि वह अपने मन से फ़िल्में देख सकें? क्या उससे विरोध करने का भी अधिकार नहीं है? वह किसी का सिर नहीं काटने जा रहा, वह हिंसा नहीं कर रहा, और वह कुछ भी नहीं कर रहा, वह बस अपने को प्रदत्त एक अधिकार का प्रयोग कर रहा है।
अब जब वह अपने इस अहिंसक अस्त्र का प्रयोग कर रहा है, तो उसके भीतर अपराधबोध की भावना को भरा जा रहा है। यह अत्यंत दुखद है कि इस अपराधबोध को भरने वाला और कोई नहीं बल्कि वह कलाकार हैं, जिन्हें लोग अपना मानते हैं: अर्थात मनोज मुन्तशिर! उन्होंने भास्कर में लेख लिखा कि बॉलीवुड में बॉयकॉट! लक्ष्य सुधार हो सर्वनाश नहीं!
अब इस लेख में उन्होंने बहुत ही भावुक बातें करते हुए स्वयं के निर्णय को उन लोगों पर थोपने की असफल कोशिश की है, जिन्होनें इतने बड़े उद्योग से टकराने का निर्णय तब लिया था, जब यह तक नहीं पता था कि यह सब इतनी दूर तक जाएगा और “धर्मा प्रोडक्शन” जैसे बड़े निर्माताओं को अजीबोगरीब आंकड़े पेश करने पड़ेंगे!
यह वर्ग तब भिड़ा जब मीडिया में इस अभियान का उपहास किया जाता था और पैसों के दम पर लाल सिंह चड्ढा जैसी फिल्मों को सुपरहिट बताया जाता रहा था। शमशेरा को लेकर सुध्प्रचार किया जाता रहा! सम्राट पृथ्वीराज को लेकर भी ऐसा माहौल बनाया गया जैसे अब तक ऐसी राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत फिल्म नहीं बनी, जबकि वह फेमिनिज्म की अतिरिक्त डोज़ से भरी हिन्दू विरोधी फिल्म थी। जब लोग अपना आक्रोश व्यक्त कर रहे थे, तब फिल्मों से भी एक बड़ा वर्ग था जो पूरी तरह से अपने ही साथियों के साथ था, और वह सहज विरोध नहीं कर रहा था, शायद इसलिए जिससे कि उन्हें भी उसी उद्योग में रहना था।
मनोज मुन्तशिर के साथ जब तक कथित प्रगतिशीलों ने अपशब्दों का खेल खेला, तब तब उसी वर्ग ने मनोज मुन्तशिर का साथ दिया, जिन्हें आज वह अपराधबोध से भर रहे हैं! मनोज मुन्तशिर का साथ उन हिन्दुओं ने तब दिया जब उन्हें मुगलों को लेकर घेरा गया और यहाँ तक कि जब उन पर कविता चोरी का आरोप लगा था। और उन्होंने कहा था कि उनकी कोई भी रचना मौलिक नहीं है और सभी किसी न किसी से प्रभावित हैं, फिर भी यह कविता पूरी तरह से अनुवाद ही प्रतीत हो रही थी, जिस पर विवाद हुआ था:
परन्तु जिन्हें आज वह अपराधबोध से भर रहे है, वही वर्ग उनके साथ खड़ा हुआ था, परन्तु ऐसा करने के लिए कोई भी वर्ग बाध्य नहीं था, और कोई उन्हें लाभ भी नहीं था? फिर वह क्यों खड़े हुए मनोज मुन्तशिर के लिए? आखिर क्यों? वह इसलिए खड़े हुए थे क्योंकि उन्हें यह विश्वास था कि मनोज मुन्तशिर उनकी बात समझेंगे और उनकी बात कहेंगे, परन्तु ऐसा नहीं हुआ! मनोज मुन्तशिर यह तो कह रहे हैं कि उनके इस लेख को उनकी आने वाली फिल्म विक्रम मेधा से न जोड़ा जाए! परन्तु क्या यह हो सकता है?
उनके शब्दों पर भी गौर किया जाना चाहिए, उन्होंने कहा कि “गेंहू के साथ घुन भी पिसने लगा। हम अचानक से पूरे हिन्दी फिल्म उद्योग के विरोधी बन गए। हम ये भूल गए कि हमारा लक्ष्य सुधर है सर्वनाश नहीं!”
अब इस हम शब्द पर आपत्ति होनी चाहिए! इस हम में मात्र वही व्यक्ति सम्मिलित हो सकता है, जो इस अभियान के साथ हो, जिसने उन अभिनेताओं का खंडन किया हो, विरोध किया हो, जिन्होंने बार बार, हिन्दुओं की आस्था को अपमानित किया हो! जिन्होनें खुद को हिन्दू धर्म का सुधारक ही जैसे घोषित कर दिया हो, ऐसा कुछ नहीं हुआ!
ऐसा कभी भी नहीं हुआ कि जो नैरेटिव बनाए जा रहे थे उनके विरुद्ध किसी ने लिखा हो! फिर ऐसा क्या हुआ कि मनोज मुन्तशिर एकदम से सलाह एवं उपदेश देने के लिए आ गए? ऐसा क्या हुआ है कि उन्होंने जैसे अनुबंध कर लिया कि ठीक है, जितना विरोध करना था, कर लिया, अब छोड़ो! ऐसा अधिकार उन्हें किसने दिया? उन्होंने सिनेमा हॉल के बंद होने की स्थिति के लिए बॉयकौट ट्रेंड को उत्तरदायी ठहरा दिया?
और आपके मन में चोर था क्या जो आपने यह स्पष्टीकरण दिया कि इसे विक्रम वेधा के साथ जोड़कर पढ़ने वालों को ईश्वर सदबुद्धि दे! परन्तु मनोज मुन्तशिर साहब, क्या आप जानते हैं, कि जो नैरेटिव परोस परोस कर यह सिनेमा हॉल चल रहे थे, उन्होंने कितनी पीढ़ियों का नुकसान कर दिया है? क्या आपके पास यह नैतिक अधिकार है कि आप यह कह भी सकें कि यह बॉयकाट गलत है? इस विषय में भारतीय सेना में कार्यरत राघव शुक्ला ने भी अपनी फेसबुक वाल पर बहुत सुन्दर लेख लिखा है। उन्होंने लिखा है कि
“आदरणीय मनोज मुन्तशिर भाई का अखबार में छपा लेख पढ़ा।
भाई का कहना है कि बॉयकॉट का लक्ष्य सुधार हो, विनाश न हो।
भाई आप बॉयकॉट करने वालों के खेमे के तो नही हो, तो आप कौन होते हो बॉयकॉट की नीतियाँ और नियम तय करने वाले? यदि आपने कभी भूतकाल में एक भी ट्वीट किसी फिल्म के बॉयकॉट के समर्थन में किया हो या फिर किसी फिल्म के सनातन पर आघात करने या फेक नेरेटिव बिल्डिंग के विरोध में किया हो तो भले ही आपको बॉयकॉट पर बोलने का नैतिक अधिकार मिलेगा अन्यथा नही।
आपने कहा, बॉयकॉट के कारण सिनेमाहाल बन्द हो रहे हैं, जो कि कोविड के कारण वैसे भी बहुत बुरी हालत में हैं।
तो भाई, सिनेमा तो बन्द होंगे ही, क्योंकि बॉलीवुड में अब कंटेंट रहा ही नही। फालतू का कूड़ा देखने के दिन अब लद गए क्योंकि ओ टी टी के आने से अब हम जैसे साधारण और आम आदमियों के पास अच्छा और स्तरीय कंटेंट देखने की आजादी है। चार लोगों के परिवार के थियेटर में जाकर लाल सिंह चड्ढा या ब्रह्मस्त्र जैसी कचरा फिल्में देखने की लागत में चार ओ टी टी प्लेटफॉर्मों का साल भर का सबस्क्रिप्शन मिल जायेगा। तो फिर कोई थियेटर क्यों जायेगा? फिर सिनेमाहाल तो बन्द होंगे ही। इसका हल तो यह है कि आप ओ टी टी पर बैन लगवा दें। लेकिन आप तो खुद वहाँ पर काम कर रहे हैं, फिर कैसे बैन लगवाएंगे।
आपने यह भी कहा कि बॉयकॉट के कारण जूनियर आर्टिस्ट, स्पॉट बॉय वगैरह के घर में चूल्हा नही जलेगा।
तो भाई, ये तो साफ झूठ है। आज विभिन्न ओ टी टी प्लेटफॉर्मों पर विभिन्न भाषाओं के लिए इतना काम किया जा रहा है कि इन लोगों को कोई दिक्कत नही होने वाली। बल्कि इनके लिए तो काम के अवसर बढ़ ही रहे हैं। तो ऐसी फालतू बातों से हम सबको भावुक करने की आपको कोई आवश्यकता नही है, और हम भावुक होंगे भी नही।
दरअसल, समस्या यह है कि आपका और आप जैसों का जोर उनपर तो चलता नही है जो लगातार सनातन का अपमान करते रहे हैं, लगातार सनातन के ढांचे पर आघात करते रहे हैं। जब आमिर खान जैसे शिवजी का मखौल उड़ाते हैं, जब वे ये कहते हैं कि आदमी जब डरता है तब मंदिर जाता है, जब वे कहते हैं कि धर्म, पूजापाठ मलेरिया की तरह होता है, तब आप उन्हे नही रोक पाते। उनका विरोध तक नही कर पाते।
जब फिल्मों में सारे ब्राह्मणों को कुटिल और दुष्ट दिखाया जाता है, जब सारे ठाकुरों को सताने वाला और अत्याचारी दिखाया जाता है, जब सारे बनियों को सूदखोर दिखाया जाता है, जब सारे सरदारों को मात्र विदूषक बनाकर दिखाया जाता है तब तो आप कुछ नही कह पाते।
जब करण जौहर, रणवीर सिंह और अर्जुन कपूर जैसे ए आई बी के कार्यक्रमों में गालियों को प्रमोट करते हुए अश्लील बातें करते हैं तब तो आप उन्हे नही समझा पाते। वैसे आपको ए आई बी का फुल फॉर्म तो पता ही होगा, या फिर बताऊँ???
जब बॉलीवुड के लोग पाकिस्तानियों से प्रेम दिखाते हुए पाकिस्तानी कलाकारों को अपनी फिल्मों में काम देते हैं, तब तो आप कुछ नही बोल पाते।
जब बॉलीवुड के लोग देश विरोधी बातें करने वालों का समर्थन करते हैं तब भी आप कुछ नही बोल पाते।
जिस देश में गोलियों में बीफ होने की खबर से 1857 की क्रांति हो चुकी हो, वहाँ अभिनेता, अभिनेत्री वगैरह खुद को प्राउड और बिग बीफ ईटर बताते नही थकते, और आप चाहते हैं कि हम उनकी इस बात पर ताली बजायें।
दूसरों का क्या बोले भैया, आपने भी तो एक कार्यक्रम में शिल्पा शेट्टी के साथ खूब मस्ती, हँसी मजाक किया है। ये वही मैडम हैं ना, जिनके पति पर पोर्न फिल्मों के बनाने का और उन्हे बेंचने का केस चल रहा है। खैर यहाँ तकनीकी रूप से शिल्पा दोषी नही हैं लेकिन अगर सब कुछ तकनीकी रूप से देखना है तो एथिक्स कब देखी जायेंगी?
आपके “तेरी मिट्टी में मिल जावां” गीत को अवार्ड न देकर, “नंगा ही तो आया है क्या घंटा लेकर जायेगा” जैसी वाहियात रचना को अवार्ड देने वाले बॉलीवुड को जब हम घंटा ही दे रहे हैं तो आपको तकलीफ क्यों हो रही है भाई?
और फिर जब करीना कपूर खान, आलिया भट्ट, विजय देवर्कोंडा जैसे सशक्त अभिनेता, अभिनेत्रियां सीधे सीधे कह रहे/ रहीं हैं कि जिसे हम पसंद नही वो हमारी फिल्में न देखे। हम उन्हे जबरजस्ती फिल्म दिखाने तो नही जाते। तो हम तो बस उनकी बात मानकर ही उनकी फिल्में नही देख रहे। इसमे आपको क्या तकलीफ है?
अंत में, विक्रम वेधा को फ्लॉप करवाने के लिए बॉयकॉट की कोई जरूरत नही पड़ेगी, क्योंकि ऋतिक कभी भी विजय सेतुपति की रेंज नही पकड़ पाएंगे। हम सबने विक्रम वेधा का तमिल वर्शन देखा हुआ है। आपकी फिल्म के हर हिस्से की तुलना उससे होगी और मुझे नही लगता कि उस तुलना में वो कहीं भी ऊपर आ पायेगी।
बाकी तो सर्वनाश के बाद ही नव सृजन होता है। वही होगा।“
कविता चोरी के बाद खुद पर यह कहते हुए सफाई देना बहुत अजीब लगा था कि आपको राष्ट्रवादी होने के चलते फंसाया जा रहा है, परन्तु अभी और भी अधिक अजीब लग रहा है जब हम देख रहे हैं कि आप कैसे वामपंथी प्रपंच का सहारा लेकर उन बेचारे हिन्दुओं पर अपराधबोध की काली चादर डालने के लिए आ गए हैं, जो हिन्दू विरोधी नैरेटिव से दशकों से पीड़ित रहे हैं और आप हिन्दू घृणा से भरे सिनेमा को बचाने के लिए आगे आ गए हैं, यह राष्ट्रवाद के नाम पर बहुत बड़ा छल है, उन हिन्दुओं की पीठ पर खंजर घोम्पना है, जिन्होनें आपसे कुछ चाहा भी नहीं था!
मनोज जी से बीनती है कि वे कहे की आज से क़ोई भी बॉलीवुड फिल्म में हिन्दुद्वेष का एक भी मामला नहीं आयेगा इसकी पुरी जिम्मेदारी मेरी होंगी !! हर हर महादेव !!
बेहतरीन ,बेबाक़ और संतुलित समीक्षा मनोज मुंतशिर के कथन का