राजस्थान में जालौर में हुई एक दुखद घटना ने सभी को दुःख से भर दिया था। मामला था एक बच्चे की एक शिक्षक के हाथों पिटाई से मृत्यु। कक्षा तीन में पढने वाले एक बच्चे की मृत्यु अपने शिक्षक की पिटाई से हो गयी थी। यह अत्यंत दुखद घटना है और इसके लिए शिक्षक को दंड मिलना ही चाहिए। परन्तु मीडिया का जैसा कार्य होता है, या फिर जाति के नाम पर सामाजिक संगठनों का, वैसा ही हुआ और इसे जातिगत आधार पर बना दिया गया।
मीडिया में रिपोर्ट आई कि बच्चे ने चूंकि सवर्ण शिक्षक के मटके से पानी पी लिया था, इसलिए बच्चे को इतना मारा कि वह मर गया। जैसे ही यह समाचार आया, वैसे ही हर जगह हंगामा हो गया क्योंकि यह मामला था ही इतना गंभीर कि इस पर हाहाकार मचना ही था। यह कहा गया कि छैल सिंह ने एक बच्चे को इतना मारा कि वह बेचारा मर गया। और इसे लेकर जाहिर है कि राजनीति भी तेज हो गयी।

परन्तु राजनीति से अधिक यह कथित कवियों के लिए जैसे एक वरदान बनकर आई और घटना की असलियत जाने बिना, जांच की प्रतीक्षा किए बिना, मटके वाली कविताएँ लिखी जाने लगीं। हिन्दी में तो कविता लिखने वालों को जैसे बहाना चाहिए होता है, वह बिना एजेंडा के कविता नहीं लिख सकते। उन्हें अवसर मिला और देखते ही देखते कविताएँ वायरल होने लगीं। और स्पष्ट थीं कि वह हिन्दू धर्म को खलनायक ठहराने के लिए ही थीं।

यहाँ तक कि देश में कई स्थानों पर प्रदर्शन भी होने लगे थे। एक मासूम बच्चे की असमय मृत्यु एवं दुर्घटना से हुई मृत्यु को लेकर राजनीति भी होने लगी। एवं यह प्रोपोगैंडा बनाया जाने लगा कि हम कहाँ स्वतंत्र हैं, काहे की आजादी! बच्चे की मृत्यु दुखद है, एवं हर प्रकार की संवेदना बच्चे के पूरे परिवार के साथ है, फिर भी घटना को क्या जानबूझकर जातीय रंग दिया गया?
पत्रकार शुभम शर्मा ने एक ऑडियो जारी किया, जिसमें उस बच्चे और आरोपी छैल सिंह की बातचीत थी।
इस बातचीत में कहीं पर भी मटका छूने का उल्लेख नहीं है।
शुभम शर्मा ने यह भी ट्वीट किया कि स्कूल में आठ शिक्षक हैं एवं 5 अनुसूचित जाति से आते हैं। और उन अनुसूचित जाति के शिक्षकों का यह कहना है कि दलित संगठनों ने यह झूठी कहानियां फैलाई हैं।
परन्तु देश में विषाद फैलाने की नियत से मीडिया में इस कोण को उठाया और भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद “रावण” भी अपनी राजनीति के लिए पहुँच गए। हालांकि कहा जा रहा है कि पुलिस द्वारा उन्हें हिरासत में ले लिया गया था।
द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार भी पूरे गाँव के लोग, फिर चाहे वह किसी भी जाति के रहे हों, मेघवाल परिवार के लोगों के दावे का खंडन कर रहे थे। पिछले छ वर्षों से वहीं पास में ही एक प्राइवेट स्कूल चला रहे सुखराज झिंझर ने कहा कि छैल सिंह पिछले 18 वर्षों से यह स्कूल बिना किसी ऐसी घटना एके चला रहे हैं। उन्होंने कहा कि
“मैं छैल सिंह को अच्छी तरह जानता हूं; हमारे स्कूल एक दूसरे के ठीक बगल में हैं, इसलिए वह हमसे मिलने आते रहते हैं। हम भाइयों की तरह रहते हैं,” झिंगर, जो खुद एक दलित भी हैं, ने कहा कि सिंह उनके साथ खाते-पीते हैं। उन्होंने कहा कि वह भी उसी टंकी से पानी पीते हैं!
कृपाचारी पब्लिक स्कूल नाम से एक निजी स्कूल चलाने वाले महेंद्र कुमार झिंगर ने यह भी कहा कि वह छैल सिंह को कई सालों से जानते हैं और जातिगत भेदभाव की घटना कभी नहीं हुई।
मृतक तीन साल से स्कूल में पढ़ रहा था, उन्होंने कहा, ऐसी कोई घटना नहीं हुई है।
झिंगर के अनुसार, स्कूल की फीस 3,200 रुपये से लेकर 3,800 रुपये प्रति वर्ष है।“
इसके साथ ही अब भास्कर ने भी कहा है कि पड़ोसी भी कह रहे हैं कि कान में समस्या थी। भास्कर के अनुसार
“इंद्र के पड़ोसी गंगा सिंह ने बताया कि दो साल से इंद्र का परिवार हमारे पड़ोस में रह रहा है। उसके कान में कोई दिक्कत थी। रस्सी (मवाद) जैसी चीज आ रही थी। इलाज चल रहा था। स्कूल के सामने दुकान चलाने वाले इंद्रराज ने कहा कि कई वर्षों से छैल सिंह सर को देख रहा हूं। कभी कोई भेदभाव नहीं रखा। पन्द्रह साल से दुकान चला रहा हूं। कभी ऐसी शिकायत नहीं देखी।“
अब मीडिया के भी सुर बदल रहे हैं। कल तक बिना किसी ठोस कारण के देश में विद्वेष का वातावरण फैलाने वाली मीडिया अब शिक्षक की भी बात कर रही है। प्रिंट के ही अनुसार जब उन्होंने छैल सिंह के चचेरे भी मंगल सिंह से बात की तो उन्होंने बताया कि छैल सिंह अपने घर में एकमात्र कमाने वाला सदस्य है। मीडिया बता रहा है कि कोई मटका था ही नहीं, सभी टंकी से पीते हैं पानी!
उन्होंने बताया कि
“उसकी पत्नी बिजली के झटके से हुई दुर्घटना के कारण अस्पताल में भर्ती है। उसके पिता का मानसिक स्वास्थ्य उपचार चल रहा है और उसकी मां कैंसर की मरीज हैं। वह प्रतिदिन बस से लगभग 50 किमी की यात्रा करते थे, ” उन्होंने यह भी कहा कि “वह यहां 18 साल से काम कर रहा है। उन्होंने कभी भी जाति के आधार पर भेदभाव नहीं किया।”
सत्य सामने आ रहा है, परन्तु इंद्र मेघवाल अर्थात मृतक बच्चे के परिजनों का अभी तक यही कहना है कि बच्चे की मृत्यु मटके से पानी पीने के कारण हुई है।
क्या यह भीम आर्मी के चलते किसी राजनीतिक षड्यंत्र का किस्सा है या फिर आने वाले चुनावों के लिए जमीन तैयार की जा रही है? देखना होगा, परन्तु यह सत्य है कि एससी/एसटी अधिनियम के दुरूपयोग के कई मामले सामने आए हैं और यही कारण है कि लोग इसका विरोध कर रहे हैं। अभी पुलिस ने कहा है कि वह हर कोण से जांच कर रहे हैं!
इस घटना में भी बच्चे को न्याय दिलाना गौण हो गया एवं जातिवादी एजेंडा तथा हिन्दू धर्म एवं भगवान को कोसने का एजेंडा ऊपर हो गया! शिक्षक को उनके अपराध का दंड क़ानून देगा, परन्तु जो घटना शुरुआती जाँच में जातिवादी नहीं थी, उसमें जातिवादी रंग किसने डाला? लोग पूछ रहे हैं कि शिक्षक ने गलत किया है तो उसे सजा दी जाए, परन्तु उसके लिए जातीयता का दृष्टिकोण बनाना कहाँ तक उचित है? उससे भी बड़ा प्रश्न लेखकों से है कि क्या उन्हें कुछ दिन रुकना नहीं चाहिए कि कुछ और पता चले कि आखिर क्या हुआ है?