मैं, सोनाली मिश्रा, एक साधारण हिन्दू! इस सेक्युलर देश के ऐसे धर्म की नागरिक, जिसे पहले बाहरी आक्रमणकारियों ने प्रताड़ित करने का कुप्रयास किया, तथा कथित स्वतंत्रता के उपरान्त उसकी चेतना को निरंतर तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। मैं, सोनाली मिश्रा, भारत की निवासी साधारण हिन्दू, जिसे हर क्षण गुलाम होने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। मैंने एक निर्णय लिया है कि मैं अपने बच्चों को नियमित स्कूल से हटाकर ओपन स्कूलिंग से पढ़ाई कराऊंगी! यह निर्णय मैंने क्यों लिया, उसके पीछे कई कारण हैं, जिनमें से कुछ कारणों पर मैं चर्चा करना चाहूंगी:
- हिन्दू धर्म की मूल अवधारणाओं के प्रति घृणा: हम बच्चों को शिक्षा के लिए भेजते हैं। परन्तु जब हम देखते हैं कि हमारे बच्चे शिक्षा के स्थान पर उस पाठ्यक्रम को पढ़ रहे हैं, जो उन लोगों ने बनाया है, जो हिन्दू धर्म के प्रति अंतहीन घृणा से भरे हैं। कक्षा 6 से लेकर कक्षा 12 तक हिन्दी, सामाजिक विज्ञान अर्थात इतिहास, राजनीतिक विज्ञान आदि में बच्चों को जो पढ़ाया जाता है, उसे लेकर बच्चा सबसे पहले हिन्दुओं पर ही प्रश्न उठाने लगता है। जैसे कि उसे इतिहास के नाम पर वही पढ़ाया जाता है जो आंकलन है, उसमें यह पढाया जाता है कि इस समय यह हुआ होगा। उस समय वह हुआ होगा, और अचानक से ही हड़प्पा का उत्खनन बच्चों को पढ़ाया जाने लगता है। परन्तु उसमें कहीं भी हिन्दू धर्म का उल्लेख नहीं है। और इतना ही नहीं जब कक्षा 6 में देश के नामों पर बात होती है तो इसमें बच्चों को यही बताया जाता है कि इंडिया नाम, इंडस नदी के नाम पर है, जिसे संस्कृत में सिन्धु कहा जाता है। भारत, जिसका उल्लेख विष्णु पुराण में इस प्रकार है कि
अत्रापि भारतं श्रेष्ठ। जम्बू द्वीपे महागुने,
यतोहि कर्म भूरेषा हयतोन्या भोग भूमय:
गायन्ति देवा: किल गीतकानी धन्यास्तु ते भारत भूमि भागे,
स्वर्गापस्वर्गास्पद मार्ग भूते, भवन्ति भूय: पुरुष: सुरत्वात
उसे लेकर कहा गया है कि “भरत नाम का प्रयोग उत्तर पश्चिम में रहने वाले लोगों के एक समूह के लिए किया जाता था। इस समूह का उल्लेख संस्कृत की आरंभिक कृति ऋग्वेद में मिलता है, और बाद में इसका प्रयोग देश के लिए होने लगा!”
शकुन्तला के पुत्र भरत के नाम पर हम अपने बच्चों को यह बताते हुए आए हैं कि इस देश का नाम भारत है, मगर बच्चों के मस्तिष्क में बैठाया जा रहा है, दरअसल भारत तो कुछ है ही नहीं!
हमारे धार्मिक ग्रंथों को तोड़ मरोड़ कर कहीं न कहीं घृणा फैलाने के लिए प्रयोग किया गया है, और हमारे बच्चों के मस्तिष्क में हमारी उन स्त्रियों के प्रति घृणा भरी गयी, जिन्हें हम सती मानते हैं, जैसे कुंती, और मजे की बात यह है कि जहां इतिहास लिखते समय हिन्दू धार्मिक ग्रंथों का प्रयोग नहीं किया गया है, वहीं इतिहास में हिन्दू धर्म के प्रति घृणा भरने के लिए महाभारत से प्रसंग लिए हैं। जैसे महाभारत में वारणावत की घटना।
एनसीईआरटी की पुस्तकों में इतिहास में यह दिखाने का कुप्रयास किया कि कुंती ने दरअसल निषादी और उसके पुत्रों को जानबूझकर इसलिए मार दिया, क्योंकि वह अपने बच्चों की जान बचाना चाहती थी। और इसे प्रमाणित करने के लिए “महाश्वेता देवी” की कहानी को इतिहास में पढ़ाया जा रहा है। बच्चों के दिमाग में मिशनरी एजेंडा भरा जा रहा है। यह कक्षा बारह में पढ़ाया जा रहा है, जब बच्चे का मस्तिष्क निर्णय लेने की अवस्था में होता भी है और नहीं भी!

कक्षा बारह की इतिहास के पुस्तक में महाभारत का युद्ध, जिसे न्याय एवं धर्म की स्थापना के लिए हम अपने बच्चों को बताते हैं, उसे मात्र एक जनपद का युद्ध बता दिया। और उसी पुस्तक में विवाह से सम्बन्धित जो हिन्दुओं के नियम थे, कि कौन से चार प्रकार उत्तम एवं कौन से विवाह निंदनीय माने जाते हैं, तो उसमें भी निंदनीय माने जाने वाले विवाहों को ब्राह्मणों के विरुद्ध बता दिया है और लिखा है कि
““दिलचस्प बात यह है कि धर्मसूत्र और धर्मशास्त्र विवाह के आठ प्रकारों को अपनी स्वीकृति देते हैं। इनमें से पहले चार ‘उत्तम’ माने जाते थे और शेष को निन्दित माना गया। संभव है कि यह विवाह पद्धतियाँ उन लोगों में प्रचलित थीं, जो ब्राह्मणीय नियमों को अस्वीकार करते थे।”

वर्ण व्यवस्था, राज व्यवस्था आदि भारतीय व्यवस्था को मिशनरी एजेंडे से देखकर लिखा जा रहा है और बच्चा एक प्रकार से उनका टूल बनता जा रहा है।
- हिन्दू धर्म को अपमानित करने वाले सम्मानित किए जा रहे हैं: एक जो सबसे बड़ी बात है, वह यह कि कथित विरोध या विद्रोह के नाम पर उन लोगों का महिमामंडन लगातार किया जा रहा है जिन्होनें मूलत: हिन्दू धर्म के विरुद्ध कार्य किया, जैसे पंडिता रमा बाई, जिन्होनें हिन्दू स्त्रियों के विरुद्ध The High Caste Hindu Woman जैसी पुस्तक लिखी! कक्षा 11 की हिन्दी पुस्तक में अभी तक एम एफ हुसैन को पढ़ाया जा रहा है।

- वही एम एफ हुसैन, जिन्होनें हिन्दुओं के देवी देवताओं को नंगा चित्रित किया था, और हमारे बच्चों को उनका जीवन पढाया जा रहा है! फिर बच्चे का क्या दोष, यदि वह उन्हें महान माने तो? यहाँ तक कि अभी तक गोधरा काण्ड के लिए यह तक कहा जा रहा था कि उसमें आग अपने आप लग गयी थी। हालांकि इस वर्ष उस हिस्से को निकाल दिया गया है, परन्तु अभी है!

मुगलों के विषय में यह तक कहा गया कि उन्होंने मंदिर बनवाए एवं हिन्दुओं के देवों के विषय में कहा जा रहा है कि भिन्न भिन्न क्षेत्रों में पूजे जाने वाले देवों और देवियों को शिव, विष्णु एवं दुर्गा का प्रतीक माना जाने लगा। अर्थात विष्णु, शिव और दुर्गा जैसे हिन्दुओं के देव मिथक थे और जो स्थानीय देवी-देवता थे वह वास्तविक थे और उन्हें हिन्दुओं ने जबरन हथिया लिया। यह कुचेष्टा की गयी है कक्षा 7 की ही इतिहास की पुस्तक हमारे अतीत भाग 2 के अध्याय 8, ईश्वर और अनुराग में!
- फेमिनिज्म एवं समानता के नाम पर जहर: कथित फेमिनिज्म एवं समानता के नाम पर लड़कियों को आरम्भ से ही परिवार से एवं सामाजिक व्यवस्था से अलग करने का कार्य इन पाठ्यपुस्तकों में आरम्भ हो जाता है। जैसे एनसीईआरटी की कक्षा 7 की सामाजिक विज्ञान की पुस्तक में इकाई तीन में अध्याय चार और पांच में वह अवधारणाएं प्रस्तुत की गयी हैं, जो बच्चियों के मस्तिष्क को तो भ्रमित करती ही हैं, छात्रों के हृदय में पुरुष होने के प्रति आत्महीनता या कहें आत्मनिंदा की भावना का विकास करती हैं। उनके भीतर इस भाव का विकास यह दो अध्याय करते हैं कि पुरुष होने का अर्थ स्त्रियों पर अत्याचार करना है। समाज के प्रति भी घृणा भरी गयी है।
जैसे इसमें मध्यप्रदेश के एक स्कूल का उदाहरण देते हुए लिखा गया है कि लड़के और लड़कियों के स्कूल अलग ढंग से बनाए जाते थे। उनके स्कूल के बीच एक आंगन होता था, जहाँ पर वह स्कूल की सुरक्षा में खेलती थीं, जबकि लड़कों के स्कूल में ऐसा आँगन नहीं था।”
“समाज लड़के और लड़कियों में स्पष्ट अंतर करता है। यह बहुत कम आयु से ही शुरू हो जाता है। उदाहरण के लिए उन्हें खेलने के लिए भिन्न खिलौने दिए जाते हैं, लड़कों को कारें दी जाती हैं, और लड़कियों को गुडिया!”
उद्यम एवं पारंपरिक कार्यों के प्रति हमारे बच्चों के हृदय में यह कहते हुए घृणा फैलाई जाती है कि “आज हमारे लिए कल्पना करना भी कठिन है कि कुछ बच्चों के लिए स्कूल जाना और पढ़ना “पहुँच के बाहर” की बात या अनुचित बात भी मानी जा सकती है, परन्तु अतीत में लिखना और पढ़ना कुछ लोग ही जानते थे। अधिकाँश बच्चे वही काम सीखते थे जो उनके परिवार में होता था या उनके बुजुर्ग करते थे। लड़कियों की स्थिति और भी खराब थी। लड़कियों को अक्षर तक सीखने की अनुमति नहीं थी।”
जबकि शिक्षा के क्षेत्र में हर झूठ की काट धर्मपाल अपनी पुस्तकों के माध्यम से कर चुके हैं।
एक ओर फेमिनिज्म का जहर लड़कियों के दिल में भरा जा रहा है और कन्यादान जैसी परम्पराओं पर कविताओं के माध्यम से प्रहार किया जा रहा है, जो हिन्दू धर्म के मूल संस्कारों में से एक है। संस्थागत रूप से हिन्दू धर्म के प्रति जो विष भरा जा रहा था, और जो हिन्दू धर्म के परम्परागत कौशलों के प्रति विष भरा जा रहा था, उससे मेरा दिल बहुत व्यथित हुआ क्योंकि बच्चों के कोमल मस्तिष्क में जिस कौशल के विरुद्ध विष भरा जा रहा है, वही दरअसल हिन्दू भारत की सबसे बड़ी शक्ति थी। क्योंकि जो शोध कौशलों में एक व्यक्ति करता था, उसे उनकी नई पीढ़ी आगे बढ़ाती थी। परन्तु हमारे बच्चों के मस्तिष्क में पूरे सुनियोजित तरीके से वह विष भरा गया है, जिसे सहज निकालना संभव नहीं है। बच्चे कब तक धर्मपाल आदि के विस्तृत शोध से वंचित रहकर आत्महीनता के सागर में डूबकर बड़े होते रहेंगे, यह भी नहीं पता!

- हमारी बच्चियों को जहाँ कहीं न कहीं, फेमिनिज्म के नाम पर भ्रमित किया जा रहा है, तो वहीं लड़कों के भीतर एक अजीब प्रकार की हीनता की भावना भरी जा रही है। उन्होंने जो अपराध नहीं किये, उसके लिए उन्हें दोषी ठहराया जा रहा है। न जाने कितने हिन्दू पुरुष अपने परिवार की लाज मलेछों से बचाने के लिए स्वयं के जीवन को बलिदान कर दिए, न जाने कितने लोग अपने देवों को मलेच्छों से बचाने के लिए असमय काल कलवित हो गए और न जाने कितने हिन्दू पुरुष अपने धर्म एवं अपनी भूमि की सेवा करते करते हँसते हँसते बलिदान हो गए, आज उन्हीं लड़कों को यह कहा जाता है कि मुग़ल महान थे, मुगलों ने युद्ध भी किये थे और मंदिरों की रक्षा भी, और यह तो तुम लोग थे, जो आपस में लड़ते थे।
- इतिहास के नाम पर हिन्दू घृणा का नंगा नाच जिस प्रकार किया जा रहा है और जिस प्रकार से सामाजिक विज्ञान के चलते हिन्दू बच्चों में अपने ही धर्म के प्रति आत्महीनता भरी जा रही है, जैसे कक्षा 6 की सामाजिक विज्ञान की राजनीतिक विज्ञान की पुस्तक में हिन्दू समीर और मुस्लिम समीर का उदाहरण देते हुए यह प्रमाणित करने का प्रयास किया गया है कि देखो हिन्दू समीर के साथ तो सहज कोई दंगा नहीं होता, परन्तु मुस्लिम समीर तो दंगे ही झेल रहा है! और इस प्रकार से हिन्दू बच्चा जैसे एक ऐसी आत्मग्लानि से भर जाता है, जिसमे दरअसल उसका कोई दोष है ही नहीं! बच्चा जब दंगों का इतिहास खंगालता है, तब उसे और भी बहुत कुछ पता चलता है और जब बच्चा किताब पढता है तो उसके दिमाग को एजेंडे का टूल बनाया जा रहा होता है!
- यहाँ तक कि एनसीईआरटी की इतिहास की पुस्तक में यहाँ तक बताया जाता है कि नमाज किस दिशा की ओर मुंह करके पढ़ी जाती है! और मंदिरों का इतिहास भी स्पष्ट नहीं है!

यह बात सत्य है कि हम बच्चों को इसी व्यवस्था में पढ़ा सकते हैं, जिसमें कथित रूप से घूम घूम कर यही बातें आएंगी, परन्तु कम से कम हम इतना तो कर सकते हैं कि बच्चों के मस्तिष्क में यह विष कम से कम जाए! हम इतना प्रयास कर सकते हैं कि वह पाठ्यपुस्तकों के अतिरिक्त शिक्षकों की अपनी सोच का शिकार न हों, क्योंकि शिक्षक भी उसी सिस्टम का शिकार हैं एवं वह भी कहीं न कहीं उसी दुराग्रह पूर्ण सोच का शिकार हैं। वह भी पीड़ित हैं, परन्तु उस पीड़ा का हल निकालने के स्थान पर एक नई पीढ़ी वह तैयार कर देते हैं, उसी पीड़ा को भोगने के लिए!
क्या कारण हैं कि हमारे बच्चे किसी भी फादर, या मौलवी को हल्की सी चोट लगने पर हमारे साथ बहस करने लगते हैं, परन्तु पालघर में साधुओं की लिंचिंग पर बोलते नहीं? क्यों वह प्रभु श्री राम, माता सीता पर अभद्र टिप्पणी करने वालों पर हंसने लग जाते हैं? क्यों वह कश्मीरी पंडितों के विस्थापन की पीड़ा को नहीं समझ पाते हैं? क्योंकि हमने उन्हें ऐसे सिस्टम में धकेल दिया है जहां पर यह सब विमर्श की मुख्यधारा में है ही नहीं!
इसलिए यह मेरा एक छोटा सा कदम है कि है बच्चों के मस्तिष्क में यह एजेंडा से भरी किताबों का जहर कम से कम जाए एवं बच्चे भारतीयता से, हिंदुत्व से, लोक से जुड़ सकें! ताकि वह विमर्श समझ सकें!