हिन्दू लड़कियों को मुस्लिम कट्टरपंथी तत्वों द्वारा प्रताड़ित किया जाना निरंतर दायरा बढ़ा रहा है, जहां कुछ मामलों में यह लड़कियों को झूठे नाम लेकर फंसाने तक ही सीमित था तो वहीं अब यह भी निकलकर आ रहा है कि कैसे लड़कियों को छेड़ना भी कुछ कट्टरपंथी तत्वों का मूल अधिकार ही बन गया है और यदि उनके विरोध किया जाए तो मीडिया द्वारा उसे नया मोड़ दे दिया जाएगा। ऐसे हाल ही में दो मामले सामने आए।
पहला मामला सामने आया था १४ जनवरी को, जब मुरादाबाद में किसी आसिम हुसैन की पिटाई इस कारण गुस्साए हुए लोगों ने की कि उसने एक लड़की को छेड़ा था, तो उसने एक वही कहानी बनाई जिसे सुनाकर सहानुभूति बटोरी जा सकती थी। जिसे सुनाकर यह कहा जा सकता था कि भाई मुस्लिम खतरे में है, जिसे सुनाकर यह कहा जा सकता था कि राम के नाम पर मुस्लिमों का शोषण हो रहा है!
और इस एजेंडे को हवा दी मुस्लिम कट्टरपंथी नेताओं ने जैसे ओवैसी ने! ओवैसी ने ट्वीट किया था कि आसिम हुसैन को ट्रेन में पीटा गया और फिर उनके कपड़े उतरवाए गए। जय श्री राम के नारे लगाने पर विवश किया गया।
परन्तु उसका झूठ जल्दी ही पकड़ा गया और यह सामने आया कि आसिम हुसैन के साथ किसी ने भी वह सब नहीं किया था, जिसका उसने दावा किया था, बल्कि उसने एक लड़की को छेड़ा था, जिसके चलते उसकी पिटाई हुई थी।
बाद में वह महिला भी सामने आई, और उसकी एफआईआर की प्रति भी सामने आई। उस महिला ने बताया कि कैसे आसिम हुसैन ने उसके साथ अभद्रता की यहाँ तक कि उसके वक्षों को भी दबाया! उस महिला ने बताया कि आसिम हुसैन को कोई भी ऐसा नारा बुलवाने के लिए नहीं बाध्य किया गया था, जैसा वह दावा कर रहा है।
ऐसी ही एक और घटना खंडवा में सामने आई जिसमें एक लड़की के साथ छेड़खानी के चलते की गयी पिटाई को साम्प्रदायिक रूप दिया गया
खंडवा में बीकॉम में पढ़ रही एक छात्रा से साइबर कैफे में किसी शाहबाज ने छेड़छाड़ की। उसने लड़की को धमकाया कि अगर वह उसकी बात नहीं मानेगी तो वह जान से मार डालेगा। छात्रा का आरोप है कि आरोपी उसे कई दिनों से परेशान कर रहा था। और जब वह ऑनलाइन फॉर्म भरने के लिए जा रही थी तो उसने दुकान के सामने ही उस लड़की को घेर लिया। उसने शादी के लिए दबाव बनाया। और यहाँ तक कि उसके परिवार को लेकर भी धमकी दी।
उसने यह तक कहा कि वह यह अफवाह फैला देगा कि उन दोनों के बीच अफेयर है।
हालांकि यह घटना दो सप्ताह पुरानी है, परन्तु यह उल्लेख में इसलिए आई क्योंकि इसे लेकर वही एजेंडा फैलाया गया कि हिन्दू युवाओं ने मुस्लिम युवक की इसलिए पिटाई लगा दी क्योंकि वह एक हिन्दू लड़की से बातें कर रहा था। हिन्दू वाच नामक वेबसाईट के साथ साथ हिन्दू विरोधी अशोक स्वेन भी इसमें कूद गया और यही अफवाह फैलाने लगा।
परन्तु जो उन्होंने एफआईआर की प्रति साझा की उसमें भी कहीं यह नहीं उल्लिखित है कि हिन्दू लड़की से बात करने के चलते ही उसे पीटा गया।
जबकि भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार लड़की ने शाहबाज पर छेड़छाड़ का आरोप लगाया था। खंडवा पुलिस की ओर से भी यह कहा गया कि लड़की ने भी लड़के पर छेड़छाड़ का आरोप लगाया था
ये दोनों ही घटनाएं यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि कैसे हिन्दू लड़कियों को छेड़ने का भी जैसे यह तत्व अधिकार चाहते हैं और यह चाहते हैं कि जब वह हिन्दू लड़कियों को छेड़ें तो उनपर कोई भी कार्यवाही न हो। उनका विरोध न हो क्योंकि यदि उनका विरोध होगा तो या तो पहले वही घटनाओं को मजहबी रंग देते हुए खुद को हिन्दुओं का शिकार बताने लगेंगे और ऐसा विमर्श बनाएंगे जिसमें जो पीड़ित लड़की है वही आरोपी और दोषी बन कर सामने आएगी।
जैसे आसिम हुसैन वाले मामले में हुआ। उसमें महिला का यौन शोषण कर रहा था आसिम हुसैन और जब उसने कहानी गढ़ी तो क्या कहा कि उसे पीटा गया और उससे जय श्री राम के नारे लगवाए गए? घटना को पूरी तरह से मोड़ दिया गया और जिन युवकों ने उस महिला के मान की रक्षा की थी, उन्हें शांतिभंग करने के आरोप में हिरासत में ले लिया गया था।
हालांकि उन्हें बाद में जमानत पर छोड़ दिया गया, परन्तु यह घटना इस बात को दिखाती है कि कैसे एक महिला का शोषण विमर्श का हिस्सा नहीं बन पाता है जब उसका शोषण कोई कथित अल्पसंख्यक करता है और कैसे उसका शोषण दब जाता है और फर्जी कहानी सामने आ जाती है।
वही दूसरी घटना में हुआ। दूसरी घटना में यह धमकी कि शाहबाज लड़की को और उसके घरवालों को सबक सिखाएगा, नेपथ्य में चली जाती है और सामने रह जाती है वही कहानी कि हिन्दुओं ने एक मुस्लिम को मारा!
प्रश्न यह उठता है कि जो कथित अल्पसंख्यक प्रेमी हैं, उनके लिए हिन्दुओं की लड़कियों के मान का कोई मोल नहीं है? क्या वह यह चाहते हैं कि हिन्दू लड़कियों और महिलाओं के साथ कट्टरपंथी एवं अपराधी तत्व कुछ भी करते रहें और उनका न ही विरोध हो और न ही दंड मिले?
ऐसा क्यों और किसलिए?
दुर्भाग्य की बात यही है कि इस हद तक स्त्रीविरोधी कदमों के विरोध में कोई भी फेमिनिस्ट नहीं आती है। क्या इन महिलाओं की पीड़ा पीड़ा नहीं है या फिर उन्हें भी महिलाओं की पीड़ा पर बात करना बेवकूफी लगता है?