उदयपुर में हुए कन्हैयालाल साहू के बर्बर हत्याकांड के बाद पूरे देश में भय और घृणा का वातावरण बन गया है। हो भी क्यों ना, इस तरह दिन दहाड़े ऐसी वीभत्स घटना होना भारत में आम नहीं है। जैसा कि होता आया है, इस घटना का भी राजनीतिकरण कर दिया गया है, और आरोप प्रत्यारोप लगने आरम्भ हो चुके हैं। वहीं उदयपुर पुलिस पर भी घोर लापरवाही बरतने का आरोप लग रहे हैं। परिवार ने कहा कि अगर पुलिस समय रहते उसकी शिकायत पर कार्रवाई करती तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता।
घटना के तुरंत बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मीडिया से बात करते हुए इस घटना का दोषारोपण केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री मोदी पर कर दिया। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से देश के सामने आ कर अपनी बात रखने की मांग भी की। हालांकि वह भूल गए कि कानून व्यवस्था राज्य सरकार का विषय है, और इस मामले में उनकी पुलिस की अकर्मण्यता का बहुत बड़ा हाथ है।
पुलिस की अकर्मण्यता से गयी कन्हैया की जान?
प्राप्त जानकारी के अनुसार कन्हैयालाल के बेटे ने कुछ फेसबुक पर पोस्ट कर दिया था, जिसमें कथित रूप से भारतीय जनता पार्टी की निलंबित प्रवक्ता नुपुर शर्मा का समर्थन था। इसे लेकर उनके पड़ोसियों को उनसे शिकायत हुई और कुछ लोग उन्हें धमकी देने लगे थे। कन्हैया ने पुलिस में भी शिकायत दर्ज कराकर सुरक्षा की गुहार लगाई थी! इसमें कन्हैया ने बताया कि, ‘करीब 6 दिन पहले मेरे बेटे से मोबाइल पर गेम खेलते हुए कुछ पोस्ट हो गया था। इसकी जानकारी मुझे नहीं थी। पोस्ट और DP लगाने के दो दिन बाद दो लोग मेरी दुकान पर आए। मोबाइल की मांग की। बोले- आपके मोबाइल से आपत्तिजनक पोस्ट डाली गई है। मैंने कहा कि मुझे मोबाइल चलाना नहीं आता है। मोबाइल से मेरा बच्चा गेम खेलता है, उसी से हो गया होगा। इसके बाद पोस्ट भी डिलीट कर दी गई थी। उन लोगों ने कहा कि आइंदा से ऐसा मत करना।’
कन्हैया ने बताया कि, ’11 जून को मुझे धानमंडी थाने से फोन आया। कहा- आपके खिलाफ एक रिपोर्ट दर्ज हुई है। आप थाने आ जाओ। जब में थाने गया तो पड़ोसी नाजिम ने ही रिपोर्ट दर्ज करवाई थी। उसने कहा कि रिपोर्ट समाज के दवाब में की है। मुझे पता है कि आपको मोबाइल चलाना नहीं आता।’
राजस्थान के एडीजी लॉ एंड ऑर्डर हवा सिंह घुमारिया के अनुसार, 11 जून को पुलिस ने कन्हैयालाल के विरुद्ध एक एफआईआर दर्ज की गई थी । पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर कन्हैयालाल को पैगंबर मोहम्मद के विरुद्ध की गयी टिप्पणी को प्रचारित करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था। हालांकि 11 जून को ही न्यायालय ने उन्हें जमानत दे दी थी।
यहाँ आश्चर्य की बात है कि पुलिस ने इस विषय में आरोपियों के विरुद्ध कोई कार्यवाही करने के स्थान पर कन्हैया को ही गिरफ्तार कर लिया। कन्हैया ने पुलिस को एक और प्रार्थना पत्र दे कर सूचित किया था कि पुलिस द्वारा पड़ोसियों से समझौता कराने के पश्चात भी कुछ संदिग्ध लोग उसकी दुकान की रेकी कर रहे थे।
जमानत पर बाहर आने के बाद 15 जून को कन्हैयालाल ने फिर से लिखित शिकायत की और बताया कि उन्हें जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं। एसएचओ ने तत्काल दोनों पक्षों को थाने में बुला लिया और साथ बैठा कर समझौता करने को कहा। दोनों पक्षों ने कहा कि उन्हें कोई कार्यवाही नहीं करनी है और 17 जून को इस विषय पर लिखित समझौता कर लिया था।
लेकिन यह समझौता मात्र एक दिखावा था, कम से कम मुस्लिम पक्ष की तरफ से तो यही था। कन्हैया अपनी दुकान पिछले 6 दिनों से नहीं खोल पा रहे थे, क्योंकि उसे आशंका थी कि दुकान खुलते ही वे लोग उसे मारने का प्रयास करेंगे। स्थानीय मुस्लिमों के सोशल मीडिया ग्रुप्स में भी लगातार धमकियां दी जा रही थी कि यह व्यक्ति कहीं दिखे तो इसे जान से मार दिया जाए।
इतना सब सूचित करने के पश्चात भी पुलिस ने कन्हैया की यथोचित सहायता नहीं की। इसी के साथ यह भी सामने आ रहा है कि आरोपियों ने घटना से कई दिन पहले एक वीडियो बना कर उसे मार देने की बात कही थी। यह वीडियो भी सोशल मीडिया पर फैलाया गया था, लेकिन इस पर किसी भी तरह की कार्यवाही नहीं की गयी। पुलिस अगर पहले वीडियो आने के बाद चुस्ती दिखाती तो शायद कन्हैया की हत्या ना होती। अगर पुलिस कन्हैया की बात की गंभीरता को समझ अपेक्षित कार्यवाही करती तो शायद उसकी हत्या ना होती।
इस घटना के बाद समझौता कराने वाले धानमंडी थाने के एएसआई भंवरलाल को सस्पेंड कर दिया गया है, लेकिन क्या उससे कन्हैया वापस आ पाएंगे? पुलिस और प्रशासन की अकर्मण्यता से एक हँसता खेलता परिवार दुःख में डूब गया है, देश में भय का माहौल बन गया है।