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Wednesday, April 24, 2024

अश्विनी उपाध्याय को मिली जमानत पर कौन सी लॉबी हावी?

भाजपा नेता और उच्चतम न्यायालय में अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय को भड़काऊ नारों के मामले में जमानत मिल गयी। दिल्ली पुलिस यह साबित नहीं कर पाई कि नारों के समय अश्विनी उपाध्याय वहां मौजूद थे या फिर उनकी कोई भूमिका थी।  हालांकि जैसे ही यह वीडियो सामने आया था वैसे ही अश्विनी उपाध्याय ने खुद जाकर पुलिस से यह अनुरोध किया था कि इस वीडियो की जांच हो कि यह वीडियो सही भी है या नहीं।  उन्होंने पत्र लिखकर, वीडियो रिलीज कर भी अनुरोध किया था:

परन्तु यह बेहद हैरानी भरा दृश्य था जिसमें अश्विनी उपाध्याय को रात को तीन बजे पूछताछ के बहाने हिरासत में ले लिया गया।

मगर इसमें एक बात जो सबसे अधिक हैरान करने वाली थी, वह यह कि कथित लिबरल पत्रकार, जो स्वयं को बहुत बड़ा और प्रभावी पत्रकार मानते हैं, और जो इस मामले के दौरान लगा भी कि उन्होंने पहले तो इस आन्दोलन पर तनिक भी ध्यान नहीं दिया मगर जैसे ही इस आन्दोलन में उन्होंने देखा कि हजारों की भीड़ आई है और लोग उन मामलों पर बात कर रहे हैं, जिन पर दरअसल इन पत्रकारों को बात करनी चाहिए, तो वह चौंक गए।

यह लुटियन पत्रकार आम जनता में जागृति से भय खाते हैं। वह हिन्दुओं की बात रखने से भय खाते हैं। वह अभी तक हिन्दू धर्म की जिस चेतना को उद्दंडता का नाम दे रहे थे, उस दिन उस चेतना ने उन्हें बताया कि कैसे पूरे दिन वह अपनी मांगों के लिए अपनी ही सरकार के सामने प्रदर्शन कर सकते हैं। और धैर्यपूर्वक अपनी बातों को रख सकते हैं।

और क्या मांग गलत है? इन मांगों में ऐसी कौन सी मांग थी, जिसे माना न जा सके? क्यों यह पत्रकार वह मांग नहीं करना चाहते हैं कि यदि मस्जिद और गुरुद्वारों की आय पर सरकार का नियंत्रण नहीं है तो मंदिर पर क्यों हो? मंदिर की आय सरकार के हाथों में क्यों जाए? क्यों मंदिरों को अपने संचालन का अधिकार न हो?

क्यों एक अल्पसंख्यक वर्ग के पास विशेष अधिकार है, परन्तु कथित रूप से बहुसंख्यक वर्ग अपने लिए अधिकारों की मांग कर रहा है? और वह वर्ग क्यों ऐसा नहीं चाहता है कि सभी के लिए समान शिक्षा, समान नौकरी आदि के अवसर हों।

लुटियन मीडिया या कहें सेक्युलर मीडिया एकदम से इस आन्दोलन को विफल करने के लिए उस वीडियों के आधार पर शोर मचा रहा था, वह बताने में अक्षम था कि आखिर इनमें से क्या ऐसी मांग थी, जिसे पूरा करने में उसे आपत्ति है। और प्रशासन एकदम से उसी लॉबी के प्रभाव में आ गया था, जिसका कार्य एकतरफा मांग उठाना है, वह लॉबी 26 जनवरी को कथित किसानों द्वारा पुलिस पर हुए हमलों पर शांत रहती है।

वह लॉबी, जिसमें विनोद कापड़ी, उनकी पत्नी साक्षी जोशी, कांग्रेस का खुलकर समर्थन करने वाले कुछ और पत्रकार, जैसे अजित अंजुम, आदि एकदम से बिना प्रमाण के आतंकी कहने लगते हैं, इमरान प्रतापगढ़ी जिनकी नज़मों में एकतरफा ही बातें होती हैं, वह एकदम से इसमें कूद गए। इमरान प्रतापगढ़ी शायर होने के साथ साथ कांग्रेस के अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष भी हैं। वह भी बिना यह साबित किये कि यह वीडियो आखिर सही भी है या नहीं, इंसानियत की बड़ी बड़ी बातें करने लगे। और इमरान जैसे जितने भी लोग हैं, वह उन सभी भड़काऊ नारों से मुंह फेर लेते हैं, जो मजहब विशेष से उपजते हैं। इन सभी के ट्विटर हैंडल एकतरफा प्रेम और हिंदुओं के प्रति नफरत से भरे पड़े हैं!

एनडीटीवी के साथ हुई मजहबी लिंचिंग पर लॉबी चुप थी

हाल ही में एनडीटीवी, जो सेक्युलर मूल्यों का सबसे बड़ा ठेकेदार चैनल खुद को बताता है, उसके साथ मजहबी लिंचिंग हुई थी। हुआ यह था कि एनडीटीवी ने कोरोना के मामलों को दिखाते हुए, एक ऐसी तस्वीर लगाई जिसमें एक मजहब का पालन करने वाला व्यक्ति अपनी कोरोना की जांच करा रहा था।जैसे ही एनडीटीवी ने वह तस्वीर लगाई, वैसे ही मजहबी और उन्मादी लोगों ने एनडीटीवी पर दबाव डालना आरम्भ कर दिया कि चैनल की हिम्मत कैसे हुई, उस मजहब विशेष की तस्वीर लगाने की और लोगों ने कहा कि वह उस तस्वीर को हटाए।

https://twitter.com/craziestlazy/status/1424210743516221444

सबसे मजे की बात तो यह कि शर्जिल उस्मानी जैसे व्यक्ति ने भी एनडीटीवी को धमकी दे दी और कहा कि जिस व्यक्ति ने इस तस्वीर का चयन किया है, उस कर्मी का नाम बताया जाए और इनबॉक्स में! हालांकि सोनिया सिंह ने निराश आवाज़ में यह कहने की कोशिश की कि वह मीडिया है और उनके साथ एजेंडा न चलाया जाए!

शर्जिल उस्मानी जो मात्र एक मजहबी एक्टिविस्ट है, उसने एनडीटीवी जैसे अपने चैनल, जो चैनल केवल मुस्लिम एजेंडे के हिसाब से ही अपनी खबरें तैयार करता है, और सारा विमर्श ही केवल मुस्लिम हितों के इर्दगिर्द घूमता है, जो मजहबी कट्टरपंथियों के एजेंडे पर चलते हुए हर हिन्दू त्यौहार और हर हिन्दू विमर्श को कट्टरपंथी विमर्श बताते हैं, जो कभी ईद के खूनखराबे पर नहीं बोलते पर दीपावली पर पटाखों पर शोर मचाते हैं, कभी भी वह मजहबी कट्टरता की बुराई नहीं करते, अर्थात उनका अपना चैनल था, मजहबियों ने उसकी ही लिंचिंग कर दी और हिन्दुओं को असहिष्णु कहने वाले एनडीटीवी को अपना वह ट्वीट मिटाना पड़ा और वह भी केवल नफरत फैलाने वाले एक्टिविस्ट की धमकी पर! मगर सोनिया सिंह जो इतनी बहादुरी की बात कर रही थीं, वह भी यह नहीं बता पाईं कि आखिर वह ट्वीट डिलीट क्यों किया?

पर जो लॉबी अश्विनी उपाध्याय पर उस वीडियो के आधार पर पीछे पड़ गयी थी जिसमें अश्विनी नदारद थे, अश्विनी उपाध्याय से जिसका दूर दूर तक वास्ता नहीं था, वही लॉबी शर्जिल उस्मानी से डर कर बैठ जाती है। मुंह सिल लेती है!

और सरकार भी इसी डरपोक लॉबी के सामने आत्मसमर्पण करते हुए अश्विनी उपाध्याय को हिरासत में ले लेती है और घृणा फैलाने वाले असली लोग अभी तक बाहर हैं। आखिर एक विशेष लॉबी को संतुष्ट करने के लिए प्रशासन किस हद तक जा सकता है यह भी देखना हैरानी से भरा है, बहुत कुछ भ्रमित करने वाला है!


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