आज पूरा देश इस समय कोविड की समस्या से जूझ रहा है। हर राज्य में ऑक्सीजन की समस्या है और चुनाव होते ही केरल एवं पश्चिम बंगाल ने भी ऑक्सीजन का कोटा बढ़ाने की अपील कर दी है। ऑक्सीजन की समस्या सबसे ज्यादा दिल्ली में ही थी एवं बार बार दिल्ली उच्च न्यायालय में यह मामला गया और अंत में केंद्र सरकार को उच्च न्यायालय ने यह आदेश दिया कि दिल्ली को 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन मिलती रहनी चाहिए, हालांकि दिल्ली ने 900 मीट्रिक टन की मांग की थी।
इतने दिनों से दिल्ली में जैसे एक अव्यवस्था का वातावरण था, और लोग रोज ही ऑक्सीजन की कमी के कारण अपनी जान गंवा रहे थे। मगर इतनी सारी मृत्यु के लिए अंतत: उत्तरदायी कौन था, और क्या यह मात्र ऑक्सीजन की कमी का ही मामला था? ऐसे कई प्रश्न आज लोगों के मन में उठ रहे हैं क्योंकि दिल्ली से बड़े कई राज्यों में प्रबंधन उचित तरीके से हुआ तो फिर ऐसे क्या कारण रहे कि दिल्ली में ऑक्सीजन की इतनी समस्या पैदा हो गयी? दिल्ली उच्च न्यायालय में इतने दिनों से चल रही सुनवाई को लेकर कई बातें सामने आई हैं उनमें से जो मुख्य बात निकल कर आई है वह यह कि दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी का मुख्य कारण है ट्रांसपोर्टेशन अर्थात परिवहन की समस्या!
जितनी भी बहसें हुईं, उनमें से यही निकल कर आया कि दिल्ली सरकार को यह पता ही नहीं था कि आपूर्ति कैसे करनी है? यह मांग एवं आपूर्ति की समस्या थी ही नहीं। बार बार यही साबित हुआ कि ऑक्सीजन ले जाने के लिए जरूरी क्रायोजेनिक टैंकर्स थे, वह दिल्ली के पास थे ही नहीं। न्यायालय में दिल्ली सरकार की ओर से यह कहा गया कि उनके पास टैंकर्स नहीं हैं और चूंकि दिल्ली एक औद्योगिक राज्य नहीं है तो वहां पर ऐसे टैंकर्स होने की संभावना भी कम हैं।
ऐसे में हिंदुस्तान टाइम्स अंग्रेजी में विस्तार से एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है जिसमें यह लिखा है कि दिल्ली सर्कार ने अप्रेल के मध्य से ही टैंकर खोजने आरम्भ किये, जबकि तब तक उत्तर भारत के अधिकतर ट्रांसपोर्टर्स के साथ उपलब्ध टैंकर्स को के राज्यों द्वारा बुक किया जा चुका था, जैसे मध्य प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा। मगर दिल्ली का सारा ध्यान केवल और केवल केंद्र से अतिरिक्त आवंटन पर रहा। यह कहना था फरीदाबाद में एक ट्रांसपोर्टर के के यादव का जिनसे दिल्ली सरकार ने 17 से 19 अप्रेल के बीच संपर्क किया था।
हालांकि इस रिपोर्ट के अनुसार भी दिल्ली सरकार के अधिकारियों ने केंद्र सरकार पर ही पल्ला झाड़ने की कोशिश की, परन्तु एक केन्द्रीय अधिकारी के अनुसार रेलवे कई दिनों तक रैक्स के साथ तैयार थी, परन्तु दिल्ली प्रशासन ने ऑक्सीजन उठाने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की।
इसी के साथ कई और समस्याएं थीं जिनके कारण ऑक्सीजन की समस्या रही। एवं कहीं न कहीं इसमें कालाबाजारी पर रोक न लगा पाना भी रही। एक बात जो बार बार उभर कर आई कि यदि ऑक्सीजन अस्पतालों के लिए उपलब्ध नहीं हैं तो कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेताओं के पास कैसे उपलब्ध है? और इतनी उपलब्ध है कि वह विदेशी सरकारों के दूतावासों के पास भी भिजवा रहे हैं।
एक और प्रश्न उठा कि दिल्ली में इतनी अधिक ऑक्सीजन की मांग क्यों है? बार बार ऐसा क्यों हो रहा है कि दिल्ली में अस्पताल आपात संदेश भेज रहे हैं, सर्वोच्च न्यायालय में चली सुनवाई के चलते के दौरान न्यायालय ने मुम्बई मॉडल की प्रशंसा करते हुए उसे अपनाने के लिए कहा। तो यह पता चला कि मुम्बई और दिल्ली दोनों में ही सक्रिय मामले लगभग समान थे, मगर दिल्ली में ऑक्सीजन की मात्रा लगभग दोगुनी थी। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि दिल्ली में जो समस्या है, वह कहीं न कहीं कुप्रबंधन एवं कालाबाजारी के कारण है।
तभी आज दिल्ली उच्च न्यायालय ने आम आदमी पार्टी के नेता इमरान हुसैन को ऑक्सीजन की कालाबाजारी करने के आरोप में नोटिस जारी किया। उनसे कल तक नोटिस का जवाब देने को कहा गया है तथा साथ ही उच्च न्यायालय ने इमरान हुसैन को सुनवाई के दौरान कोर्ट में पेश होने को कहा है।
क्या कालाबाजारी ही वह कारण है जो दिल्ली सरकार को उस ऑडिट को होने से रोकना चाह रही है, जो केंद्र सरकार करवाना चाहती है। दरअसल दिल्ली सरकार द्वारा ऑक्सीजन की बार बार बढ़ती मांग को देखते हुए केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में यह सुझाव दिया कि ऑक्सीजन की सही मनिगरानी करने के लिए वह ऑडिट कराना चाहती है, ताकि आने वाली तीसरी लहर से बचा जा सके।
वहीं दिल्ली पुलिस ने कल खान मार्किट से 429 कॉन्सेंट्रेटर ज़ब्त किये गए थे तो आज फिर से “खान चाचा” रेस्टोरेंट से फिर से ऑक्सीजन के 96 कॉन्सेंट्रेटर बरामद किये गए। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है और किसकी शह पर हो रहा है?
ऐसा नहीं है कि सरकार को यह नहीं पता होगा? सब कुछ पता होगा क्योंकि जो भी हो रहा है वह सरकार की ही नाक के नीचे हो रहा है। परन्तु दिल्ली सरकार कितनी गंभीर है, वह इस बात से पता चल सकता है कि एक आरटीआई से यह बात निकल कर आई कि दिल्ली सरकार ने पिछले 10 माह में दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के सेंट्रल प्रोक्यूरमेंट एजेंसी (सीपीए) ने एक भी वेंटिलेटर नहीं खरीदी है। जुलाई के बाद ऑक्सीजन सिलेंडर भी नहीं खरीदे गए हैं।
तो यह कहा जा सकता है कि दिल्ली में ऑक्सीजन की समस्या कहीं न कहीं परिवहन से सम्बन्धित है न कि मांग और आपूर्ति से, एवं यह दिल्ली सरकार की लापरवाही पूर्ण कृत्य का भी प्रदर्शन करती है और बहुत कुछ ऐसा है जो दिल्ली सरकार नहीं चाहती है कि सामने आए, तभी वह ऑक्सीजन ऑडिट से बच रही है। पर जनता तो पूछेगी ही कि यदि सब ठीक है तो ऑक्सीजन ऑडिट से समस्या क्या है?
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