यूक्रेन में रूस के आक्रामक सैन्य अभियान को अमेरिका और उसके सहयोगी पश्चिमी देशो ने एक गैर जरूरी और हिंसक सैन्य अभियान बताया है, और इसकी घोर निंदा की है। संयुक्त राष्ट्र और दुनिया की तमाम लिबरल संगठनो ने इस मामले पर रूस के रुख का कड़ा विरोध किया, और इसे मानवाधिकार का उल्लंघन बताया है।
अमेरिका और उसके सहयोगियों ने रूस पर तमाम तरह के प्रतिबन्ध लगा दिए हैं, और इस तरह का माहौल बना दिया है कि जैसे रूस ने कोई बहुत बड़ा पाप कर दिया हो। इसी वजह से रूस से सैंकड़ो बड़ी कंपनियों ने पलायन भी कर दिया है। खैर ये मामला उन कंपनियों और देशो के अपने मापदंडो और निर्णयों का है, वो चाहे जिस देश पर प्रतिबन्ध लगाएं या चाहे व्यापार करना बंद करें।
लेकिन अमेरिका और पश्चिमी देशो ने पिछले दिनों एक अजीबो गरीब अभियान चलाना शुरू कर दिया है । ये देश और इनका अभिजात वर्ग दोनों ही रूस को इस सैन्य संघर्ष के लिए दोषी ठहराने और रूसी राष्ट्रपति पुतिन को दुष्ट व्यक्तित्व के रूप में चित्रित करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं । हमने यह भी देखा है कि कैसे ये देश आम रूसियों के लिए मुश्किलें पैदा कर रहे हैं, जबकि रूस में हजारो रूसी आमजन भी इस सैन्य अभियान का विरोध कर रहे हैं ।
कई बहु-राष्ट्रीय कंपनियों और वैश्विक ब्रांडों ने पहले ही रूस में अपने संचालन को निलंबित कर दिया है। विभिन्न वित्तीय सेवा कंपनियों, प्रौद्योगिकी संगठनों, खाद्य और पेय कंपनियों, मनोरंजन कंपनियों, भुगतान सेवाओं और खुदरा उद्यमों ने रूस में अपनी सेवाएं बंद कर दी हैं। इन सबसे कहीं ना कहीं एक आम रूसी नागरिक की जिंदगी में काफी दिक्कत आ रही हैं।
यदि इतना भी पर्याप्त नहीं था, तो पश्चिमी ‘उदारवादी’ अभिजात वर्ग ने रूसी नागरिको पर हमला ही करना शुरू कर दिया है और इस पूरे संघर्ष के लिए उन्हें दोषी ठहरा रहे हैं। वे रूसी लेखकों के कार्यो की बुराई कर रहे हैं, खिलाड़ियों पर प्रतिबंध लगा रहे हैं, कलाकारों और गायकों को निकाल रहे हैं, अंतराष्ट्रीय फिल्म आयोजनों से रूसी फिल्मों पर प्रतिबंध लगा रहे हैं, रूसी खेल टीमों को बड़े आयोजनों से बाहर किया जा रहा है, उनके मीडिया हाउसों को सेंसर किया जा रहा है।
अब तो यूरोपीय देशो में रूसी मूल के लोगों द्वारा संचालित दुकानों को तोडा फोड़ा जा रहा है, उनके साथ भेदभाव अलग ही स्तर पर चला गया है। यहाँ हम 1930-40 के दशक के नाजी जर्मनी की बात नहीं कर रहे हैं, यहां 2022 के पश्चिमी देशों द्वारा किया जा रहा है। ये लोग रूसियों के खिलाफ दूसरों को भड़का रहे हैं, सामूहिक सजा के बारे में बात कर रहे हैं, और रूसी मूल के किसी भी व्यक्ति को अमानवीय बना रहे हैं।
क्लिंट एहरलिच, जो एक अमेरिकी विदेश नीति विश्लेषक हैं, उन्होंने अमेरिकी वायु सेना के एयर वॉर कॉलेज के ‘नैतिकता प्रोफेसर’ डैनियल स्ट्रैंड के विचारों को साझा किया है। डेनियल ने रूसी सरकार के सैन्य अभियान के लिए वहां एक आम नागरिको को ही दोषी ठहरा दिया है।
एक अन्य ट्वीट में, एर्लिच ने जर्मनी में हो रही खतरनाक घटनाओ को साझा किया है, जहां स्थानीय लोग एक रूसी स्टोर को तोड़ रहे हैं, सिर्फ इसलिए कि उन्हें लगता है कि यूक्रेन के आक्रमण के लिए हर रूसी जिम्मेदार है।
अमेरिकी अभिजात वर्ग की तो यह स्थिति हो गयी है कि उन्होंने वरिष्ठ रिपब्लिकन सीनेटर और पूर्व राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार लिंडसे ग्राहम द्वारा किए गए पुतिन की हत्या के आह्वान का भी खुले दिल से स्वागत किया है।
यहां यह जानना महत्वपूर्ण है कि कई रूसी सांस्कृतिक हस्तियों और खेल सितारों ने यूक्रेन में पुतिन की सैन्य कार्रवाई की निंदा की है। हजारों रूसियों ने अपनी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया है, हालांकि अधिकतर रूसी नागरिक अपनी सरकार के साथ खड़े हैं, और उसका कारण कहीं ना कहीं इतिहास में है। यूक्रेन ऐतिहासिक रूप से सोवियत संगठन का ही भाग रहा है, और इसी वजह से आम रूसी इस इलाके पर अपना अधिकार मानता है।
लेकिन फिर भी रूसी लोग अपनी सरकार के खिलाफ खड़े हैं, क्योंकि उन्हें भी मानवीय मूल्यों की परवाह है। इसकी तुलना हम अगर कनाडा में वैक्सीन नियम के खिलाफ ट्रक चालकों के विरोध पर कनाडाई सरकार की कार्रवाई से करंगे तो पाएंगे कि रूस की सरकार किसी भी तरह की असहमति के प्रति अधिक सहिष्णु है।
क्या आप भूल गए हैं, कि कैसे 9/11 हमले के बाद 2003 में ईराक पर आक्रमण किया गया, जिसके लिए एक झूठ फैलाया गया था कि ईराक के पास खतरनाक सामूहिक विनाश के हथियार थे और वह अलकायदा का समर्थन कर रहा था। लेकिन आप देखेंगे तो पाएंगे कि इस अनावश्यक युद्ध ने न केवल आम इराकियों को बर्बाद कर दिया, बल्कि दुनिया में एक और खतरनाक आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट के उदय का रास्ता भी साफ़ कर दिया । क्या इस वजह से हम सभी को अमेरिकी नागरिको को दोष देना चाहिए?
भारत-पाकिस्तान संघर्ष पर पश्चिमी दुनिया के दोहरे मानदंड
पश्चिमी देशो और अभिजात वर्ग को लगता है कि भारत सहित हर देश को शांति और सद्भाव पर व्याख्यान देना उनका जन्मसिद्ध अधिकार है। एक तरफ वे यूक्रेन समस्या के लिए रूस को दोष दे रहे हैं, हर पटल पर रूस और उसके नागरिको का अहित कर रहे हैं, लेकिन यही लोग पाकिस्तान जनित आतंकवाद के मुद्दे पर भारत शान्ति और सद्भाव बनाये रखने का ज्ञान देते हैं। ये लोग हमे पाकिस्तान से बात करने को कहते हैं, जो ऐसा देश है जिसका एक ही ध्येय है, भारत की बर्बादी।
जब भी पाकिस्तान भारत पर आतंकवादी हमला करता है, और भारत के नागरिक हमारी सरकार द्वारा प्रतिशोध की मांग करते हैं और सभी संबंधों को तोड़ते की बात करते हैं, यही पश्चिमी उदारवादी अभिजात वर्ग और उनके भारतीय सहयोगी पाकिस्तान के बचाव में आते हैं और खेल, कला, व्यापार को इन सबसे दूर रखने की सलाह देते हैं, और बातचीत करने पर जोर देते हैं।
जब हम पाकिस्तानी समाज में व्याप्त हिंदू विरोधी कट्टरवाद, उसके मुल्ला-सैन्य गठजोड़ और पाकिस्तानी हिंदुओं के क्रूर उत्पीड़न (पाकिस्तान में हर साल कम से कम 1000 नाबालिग हिंदू लड़कियों का अपहरण, बलात्कार और जबरन इस्लाम में परिवर्तन की घटनाएं होती हैं ) के बारे में बात करते हैं, तो ये कुलीन वर्ग हमें लोगों के बीच संपर्क विकसित करने और ‘नफरत’ फैलाने वाले तत्वों की बात नहीं सुनने को कहते हैं। यहाँ नफरत फैलाने वाले लोग उन्हें बोला जाता है, जो पाकिस्तान में व्याप्त इन घटनाओ पर सवाल उठाते हैं।
यहां, सच्चाई यह है कि रूस संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए कोई सीधा खतरा नहीं है, जबकि पाकिस्तान हमारी सीमा पर है। ये एक ऐसा देश है जो अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से हिंदुओं के क्रूर उत्पीड़न के लिए जाना जाता है, वहीं पिछले ३० सैलून से भारत में आतंकवाद को भी प्रायोजित करता है। खैर, हम आश्चर्यचकित नहीं हैं, क्योंकि ऐसे कुलीन और वामपंथी अपने दोहरेपन और पाखंड के लिए जाने जाते हैं, और ये अपने कुत्सित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए मनमुताबिक नैरेटिव बदलते और बिगाड़ते हैं।