भारत के हिन्दू इतिहास के साथ वैसे तो बहुत तोड़ फोड़ हुई है, मिथ्या व्याख्याएं हुई हैं और झूठ को सत्य एवं सत्य को भ्रम बनाकर प्रस्तुत किया है। ऐसे ही जब हम इतिहास पढ़ना शुरू करते हैं, तो प्रागैतिहासिक काल, के बाद मौर्यवंश में प्रवेश करते ही तो हमारे सामने कलिंग युद्ध एवं उसके उपरान्त के विनाश के चित्र तथा अशोक के हिन्दू धर्म का त्याग करने तथा महान बनने की एक कहानी आती है।
कलिंग युद्ध होने की घटना पूर्णतया सत्य है, कलिंग युद्ध में हुआ भीषण रक्तपात भी पूर्णतया सत्य है, परन्तु यह कितना सत्य है कि सम्राट अशोक ने जब यह रक्तपात किया, उसके बाद वह बौद्ध बने या उससे पूर्व ही वह बौद्ध धर्म अंगीकार कर चुके थे। यह एक प्रश्न है क्योंकि बच्चों को अपने इतिहास में यही पढ़ाया जाता है कि कलिंग युद्ध के भीषण रक्तपात से दुखी होकर अशोक ने बौद्ध धर्म अपना लिया था और वह अहिंसक हो गए थे। कुछ तथ्य इतिहास में ऐसे हैं, जो इन सभी व्याख्याओं पर प्रश्न उठाते हैं।
और यहाँ पर और किसी का नहीं बल्कि रोमिला थापर का ही लेख है, जो इस पूरे नैरेटिव पर प्रश्न उठाता है!
रोमिला थापर अपने एक लेख में लिखती हैं कि ऐसा प्रतीत नहीं होता है कि अशोक कलिंग युद्ध में हुए रक्तपात के बाद नाटकीय रूप से बौद्ध धर्म में दीक्षित हो गए थे। बल्कि वह जब उज्जैन के शासक बनाकर भेजे गए थे, तब वह सबसे पहले बौद्ध धर्म के संपर्क में आए थे। वह एक शिला पर उल्लिखित प्रमाणों का उल्लेख करती हुई कहती हैं कि, इस शिलालेख में अशोक लिखते हैं
“I have been an upāsaka for more than two and a half years, but for a year I did not make much progress। Now for more than a year I have drawn closer to the Saṅgha (sangham upagate) and have become more ardent। पुस्तक- किंग अशोक एंड बुद्धिज़्म, हिस्ट्री एंड लिटररी स्टडीज, बुद्ध धर्म एजुकेशन एसोसिएटेड इंक [King Asoka and Buddhism, Historical & Literary Studies, Buddha Dharma Education Association Inc, लेख रोमिला थापर – पृष्ठ 31)
इसके आगे वह लिखती हैं कि बौद्ध परम्परा में यह उल्लेख नहीं प्राप्त होता है कि कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया था। वह लिखती हैं कि
His statements suggest that there was no sudden conversion but rather a gradual and increasingly closer association with Buddhism
अर्थात अशोक ने अचानक से ही बौद्ध धर्म स्वीकार नहीं किया था अपितु वह बौद्ध धर्म के साथ काफी समय तक साथ रहे थे।
इस लेख से एक बात स्पष्ट होती है, कि वह कलिंग युद्ध के समय भी बौद्ध धर्म के उपासक थे और यह बात पूर्णतया मिथ्या है कि सनातन के रक्तपात के कारण उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया। बौद्ध धर्म अपनाने की सहज समयावधि रही है और यह एकदम से नाटकीय रूप से नहीं हुआ।
यही नहीं एगार्मोंट भी इसी तरफ संकेत करते हैं कि अशोक बौद्ध धर्म में कलिंग युद्ध से पूर्व ही मतांतरित हो चुके थे।
इसी प्रकार वर्ष 1928 में इतिहासकार राधाकुमुद मुखर्जी द्वारा लिखित एवं मैकमिलन एंड कंपनी, लन्दन द्वारा प्रकाशित पुस्तक अशोक ASOKA [GJEKWJD LECTURES] में राधाकुमुद मुखर्जी ने भी इसी ओर संकेत करते हुए लिखा है “(पृष्ठ 37)
The chronological scheme of his reign thus works itself out as follows : अशोक के राज्याभिषेक के उपरान्त की घटनाएँ इस प्रकार हैं:
274 ईसापूर्व – Accession (उत्तराधिकार)
270 ईसापूर्व – Coronation (राज्याभिषेक)
265 ईसापूर्व —Conversion to Buddhism as a lay disciple or upasaka
(उपासक के रूप में बौद्ध धर्म अपनाना)
265-262 ईसापूर्व—Two and a half years of indifferent devotion to Buddhism
(बौद्ध धर्म का पालन ढाई वर्ष तक करना)
262 ईसापूर्व —Conquest of Kalinga, followed by his closer connection with the Sariigha and strenuous exertion for his progress in his new faith
(कलिंग का युद्ध और उसके बाद अशोक द्वारा एक नए धर्म की स्थापना करना)
अर्थात जब रक्तपात हुआ तब वह पूरी तरह से हिन्दू नहीं थे बल्कि ऐतिहासिक तथ्य संकेत करते हैं कि वह बौद्ध हो चुके थे, एवं उस रक्तपात के बाद वह अपने उस नए धर्म के और नज़दीक आ गए थे।
परन्तु हमारे इतिहास में से यह तथ्य गायब हैं। हमारे सम्मुख यह तथ्य नहीं लाया जाता है कि अशोक का झुकाव बौद्ध धर्म के प्रति पहले से ही था। बल्कि यही बार बार कहा जाता है कि अशोक सनातन के रक्तपात से दुखी हो गए थे और कलिंग युद्ध के बाद उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाया।
यद्यपि इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखने से भी सम्राट अशोक की महानता कम नहीं होती है कि उन्होंने रक्तपात को त्यागकर शांति और करुणा का संदेश दिया। हाँ यहाँ पर इतिहासकारों की मंशा पर संदेह अवश्य उत्पन्न होता है कि आखिर इतिहासकारों ने सनातन को नीचा दिखाने के लिए सम्राट अशोक का प्रयोग क्यों किया? यह मान्यता हमारे नन्हें बच्चों के हृदय में बचपन से ही पुस्तकों के माध्यम से स्थापित कर दी गयी कि सनातन तो हिंसा, रक्तपात एवं क्रूरता से भरा हुआ धर्म है, और इसका पालन करने वाला व्यक्ति “कलिंग के युद्ध” जैसा युद्ध करा सकता है, जिस युद्ध में हजारों निर्दोष लोगों को अपने प्राणों का बलिदान देना पड़ा था और सनातन धर्म द्वारा किए गए रक्तपात पर बौद्ध धर्म ने मरहम लगाया। जबकि उस समय बौद्ध कोई अलग धर्म नहीं था।
हमारी आस्था पर सबसे पहला प्रहार इतिहासकारों द्वारा शायद यही है और सनातन से ऐतिहासिक रूप से विमुख करने का प्रथम कदम यही था और नैरेटिव युद्ध में प्रथम प्रहार यही है! जब बच्चों के मस्तिष्क में यह भर दिया जाता है कि आपका धर्म तो हिंसा और रक्तपात का ही धर्म था, तो फिर मुस्लिमों ने और हिंसा करके आपको पराजित कर दिया तो क्या हुआ? और बच्चा अपने बचपन से ही अपने ही धर्म के प्रति एक हीनभावना से भर जाता है, वह अपराधबोध से भर जाता है, जबकि यह पूर्णतया मिथ्या है
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