हिन्दुओं के साथ सैंकड़ो वर्षों से अत्याचार होते आ रहे हैं, ऐसा प्रतीत होता था कि स्वतंत्रता मिलने और विभाजन होने के पश्चात इस स्थित में थोड़ा सुधार होगा। लेकिन उसके बाद तो स्थिति और भी बिगड़ गयी, छद्म सेकुलरिज्म और वोट बैंक की राजनीति के दुष्प्रभावों के कारण हिन्दुओं के साथ छल पर छल किये जाते गए।
ऐसे-ऐसे कानून बना दिए गए, कि हिन्दू चाह कर भी अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहरों को फिर से वापस नहीं ले सकते हैं, वहीं कुछ कानून ऐसे भी बनाये, जिसमे देश के ख़ास अल्पसंख्यक समुदाय को इतनी शक्तियां दे दी गयी कि वह देश भर में जहां चाहे वहां कब्ज़ा कर सकें। पिछले ही दिनों उच्चतम न्यायालय में एक याचिका प्रस्तुत हुई है, जिसमें अन्य धर्मों से भेदभाव का आरोप लगाते हुए वक्फ कानून 1995 के प्रावधानों को चुनौती दी गई है।
वक्फ कानून 1995 , मुस्लिमों को हिन्दुओं की संपत्ति पर अधिकार देने वाला अँधा कानून
न्यायालय से यह आदेश देने की मांग की गई है कि वक्फ एक्ट 1995 के अंतर्गत दिया गया कोई भी नियम, अधिसूचना, आदेश अथवा निर्देश हिंदू अथवा अन्य गैर इस्लामी समुदायों की संपत्तियों पर लागू नहीं होना चाहिए । वक्फ कानून के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देते हुए कहा गया है कि इनमें वक्फ की संपत्ति को विशेष दर्जा दिया गया है जबकि ट्रस्ट, मठ और अखाड़े की संपत्तियों को वैसा दर्जा प्राप्त नहीं है।
याचिका में कहा गया है कि वक्फ कानून के अंतर्गत वक्फ बोर्ड को किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति दर्ज करने की असीमित शक्ति दी गई है। इसमें हिंदू और गैर इस्लामिक समुदाय को अपनी निजी और धार्मिक संपत्तियों को सरकार या वक्फ बोर्ड द्वारा जारी वक्फ सूची में शामिल होने से बचाने के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है। यह हिंदू और अन्य गैर इस्लामिक समुदायों के साथ भेदभाव है।
वक्फ कानून की धारा-40 देती है वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां
वक्फ कानून को कांग्रेस सरकार ने 1995 में बनाया था, इस कानून की धारा-40 भेदभाव वाली है, जो वक्फ बोर्ड को किसी भी संपत्ति के वक्फ संपत्ति होने या नहीं होने की जांच करने का विशेष अधिकार देती है। अगर वक्फ बोर्ड को लगता है कि यह उनकी संपत्ति है तो वह उस संपत्ति के स्वामी या ट्रस्ट को कारण बताओ नोटिस जारी कर सकता है कि क्यों न इस संपत्ति को वक्फ संपत्ति की तरह दर्ज कर लिया जाए। इस बारे में बोर्ड का फैसला अंतिम होगा उस फैसले को मात्र वक्फ ट्रिब्युनल में चुनौती दी जा सकती है। वक्फ ट्रिब्युनल एक ऐसी संस्था है जिसमे कट्टर इस्लामिक तत्व भरे हुए हैं।
ज्ञात जानकारी के अनुसार पिछले दस साल में वक्फ बोर्ड ने हिन्दुओं की असंख्य संपत्तियों पर कब्जा करके उन्हें वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया है। पिछले ही दिनों तमिलनाडु में कई गाँवों को वक्फ बोर्ड ने अपनी संपत्ति घोषित कर दिया है, और स्थानीय लोगो को अपनी सम्पत्तियाँ बेचने खरीदने से पहले वक्फ बोर्ड का अनापत्ति प्रमाणपत्र लेने को कहा गया था ।
वक्फ के आंकड़ों के अनुसार जुलाई, 2020 तक कुल 6,59,877 संपत्तियां वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज हैं, जिसमें देशभर की करीब आठ लाख एकड़ जमीन है। वक्फ बोर्ड को अवैध कब्जे हटाने का विशेष अधिकार प्राप्त है, वहीं वक्फ संपत्ति का कब्जा वापस लेने के लिए लिमिटेशन यानी समयसीमा से छूट है। जबकि ट्रस्ट, मठ, मंदिर, अखाड़ा आदि धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधक, सेवादार, महंत और प्रबंधन व प्रशासन देखने वालों को इस तरह का अधिकार और शक्तियां नहीं मिली हुई हैं।
पूजा स्थल कानून – हिन्दुओं से उनके आराध्यों के स्थान छीनने का षड्यंत्र
यह अधिनियम सन् 1991 में पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार ने लागू किया गया था। इस कानून के अनुसार 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। इस कानून के अनुसार यदि कोई इस कानून के नियमों का उल्लंघन करता है, तो उसे तीन साल तक की जेल हो सकती है, साथ ही आर्थिक दंड भी लगाया जा सकता है।
यह कानून भी हिन्दुओं के प्रति अत्यंत भेदभाव की भावना से बनाया गया था। इसके अनुसार अगर ये सिद्ध भी हो जाए कि वर्तमान में मौजूद धार्मिक स्थल पूर्व में किसी दूसरे धार्मिक स्थल को तोड़कर बनाया गया था, तो भी उसे न तो तोड़ा जाएगा और न ही नया निर्माण किया जाएगा। हालांकि इस कानून से अयोध्या विवाद को दूर रखा गया था, क्योंकि वह मामला अंग्रेजों के समय से न्यायायिक प्रक्रिया में था।
लेकिन इस कानून के बनने के बाद एक तरह से सरकार ने हिन्दुओं के उनके प्राचीन पूजा स्थलों पर पुनः अधिकार करने के सपनों को तोड़ दिया। इस कानून के अनुसार हिन्दू काशी विश्वनाथ और मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि को उनके सच्चे स्वरुप में नहीं ला सकते, उन पर किये गए इस्लामिक अतिक्रमण को नहीं हटा सकते। पिछले ही दिनों काशी ज्ञानवापी मामले पर सुनवाई न करने के लिए मुस्लिम पक्ष की ओर से बार-बार इसी कानून का हवाला दिया जा रहा था। जबकि वहां तो स्पष्ट दिखता है कि महादेव के मंदिर को नष्ट कर उस पर मस्जिद बनाई गयी है।
हिन्दुओं को क्षीण करने और मुस्लिमों को असीमित शक्ति देने के लिए बनाये गए यह कानून
यह दोनों ही कानून हिन्दुओं को राजनीतिक, मानसिक, और धार्मिक रूप से क्षीण करने के लिए ही बनाये गए हैं। दोनों ही कानून कांग्रेस सरकार ने बनाये, और उनका एक मात्र ध्येय था राम मंदिर आंदोलन के पश्चात इकट्ठे हुए हिन्दुओं को कमजोर करना। जब राम मंदिर आंदोलन अपने उग्र रूप में था, और पूरे देश का हिन्दू राम मंदिर बनाने के लिए हुंकार भर रहा था, तभी कांग्रेस सरकार ने पूजा स्थल कानून को चुपके से लागू कर दिया। हालाँकि उन्होंने राम मंदिर को इस कानून की परिधि से दूर रखा, लेकिन भविष्य में ऐसे किसी धार्मिक आंदोलन की सम्भावना को क्षीण कर दिया था।
वहीं 1995 में कांग्रेस सरकार ने वक्फ कानून बनाया, आज तक यह नहीं समझ आया कि एकाएक ऐसे कानून की क्या आवश्यकता थी, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि बाबरी मस्जिद के ध्वंस से हुए नुक्सान की भरपाई के लिए इस कानून को बनाया गया। इसमें मुस्लिम संस्था वक्फ को देशभर में सम्पत्तियों पर कब्ज़ा करने की असीमित शक्तियां दे दी गयी। आज यह संस्था देशभर में हजारों हिन्दुओं की सम्पत्तियों पर कब्ज़ा कर चुका है, और इस कानून के प्रावधानों के कारण यह हिन्दू अपनी सम्पत्तियाँ भी वापस नहीं ले सकते।
इन दोनों ही कानूनों को चुनौती दी गयी है, क्योंकि इन दोनों ही कानूनों की संरचना धर्म-निरपेक्षता के विपरीत है, और यह कानून मूल रूप से हिन्दू विरोधी ही हैं। ऐसे में हमे यह विश्वास है कि न्यायपालिका इस विषय में हिन्दुओं के साथ न्याय करेगी, ताकि वह अपने प्राचीन पूजा स्थलों पर पुनः अधिकार कर सकें, और साथ ही अपनी सम्पत्तियों को वक्फ के चंगुल से भी बचा सकें।