उत्तराखंड सरकार ने आज एक बड़ा निर्णय लेते हुए उतराखंड चार धाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड को भंग करने का निर्णय ले लिया। सरकार अब इस अधिनियम को वापस लेगी। मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने इस सम्बन्ध में घोषणा की। उन्होंने कहा कि “हमारी सरकार ने चार धाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड अधिनियम” वापस लेने का निर्णय लिया है।
इस बोर्ड का लम्बे समय से विरोध किया जा रहा था।
क्या था यह बोर्ड
यह बोर्ड दरअसल मंदिरों को सरकार के अंतर्गत लाने का कदम था। इस बोर्ड के माध्यम से पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने चार धामों के अतिरिक्त 51 और मंदिरों का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया था। इस निर्णय के विरोध में मंदिर के पुरोहित और आम लोग भी आ गए थे। हालांकि सरकार का कहना था कि वह लगातार यात्रियों की बढ़ती हुई संख्या को प्रबंधित करने और साथ ही इस क्षेत्र में तीर्थाटन को मजबूती देने के लिए इस बोर्ड के माध्यम से मंदिरों का नियंत्रण अपने हाथ में ले रही है।
और सरकार का यह भी कहना था कि बोर्ड के माध्यम से मंदिरों का रखरखाव और प्रबंधन और बेहतर हो सकेगा!
इस बोर्ड के विरोध में पुरोहित थे। उनका कहना था कि इस बोर्ड के बहाने सरकार उनके सभी अधिकार समाप्त कर रही है।
इस बोर्ड के गठन को लेकर जनता में इतना आक्रोश था कि त्रिवेंद्र सिंह रावत को श्रीकेदारनाथ में दर्शन ही नहीं करने दिए गए थे। 1 नवम्बर को श्री केदारधाम में दर्शन करने के लिए पहुंचे पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद सिंह रावत को पुरोहितों ने काले झंडे दिखाए थे और उन्हें किसी भी मूल्य पर दर्शन नहीं करने दिए थे और उन्हें बिना दर्शन के ही वापस जाना पड़ा था।
प्रधानमंत्री मोदी का भी विरोध किया था
मीडिया के अनुसार हालांकि इस बोर्ड के गठन के कारण प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के दौरे का भी विरोध किया था। परन्तु समझाने पर वह मान गए थे और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने दर्शन किये थे।
वर्तमान मुख्यमंत्री ने समिति के गठन के बाद निर्णय का आश्वासन दिया था
उसी वर्ष जब पुष्कर धामी को मुख्यमंत्री बनाया गया था, तो उन्होंने तीर्थ-पुरोहितों की मांग पर एक समिति के गठन के बाद उसकी रिपोर्ट के आधार पर निर्णय लेने का वचन दिया था। और उन्होंने आज इसकी घोषणा कर दी है।
यह एक बड़ा कदम माना जा रहा है क्योंकि इससे जनता के मन में सरकार के प्रति नाराजगी कम होगी। वहीं सोशल मीडिया पर इस बोर्ड का विरोध करने वाले हिन्दुओं के बीच हर्ष की लहर है और उन्हें लग रहा है कि उनका विरोध काम आया।
सुरेश चाव्हानके ने ट्वीट किया और कहा कि
सरकारी नियंत्रण से मंदिर मुक्ति अभियान की बड़ी विजय।
उत्तराखंड सरकार ने देवस्थान बोर्ड किया भंग, सुदर्शन न्यूज़ पहले दिन से उठा रहा था आवाज़। अन्य राज्य भी इस तरह मंदिरों के मुक्ति में सहयोग करें। केंद्र सरकार केंद्रीय क़ानून बनाए
हिन्दू मंदिरों के लिए लगातार आवाज उठाने वाले संदीप देव ने भी कहा कि यह हिन्दुओं की जीत है
हालांकि कांग्रेस भी मैदान में कूद आई है और कह रही है कि भाजपा का घमंड टूटा:
इस पर यूजर्स ने कांग्रेस से अपील की है कि वह अपने शासित राज्यों में मंदिरों को मुक्त कराएं!
मंदिरों को सरकार से मुक्त कराना एक बड़ा विषय है और दक्षिण में हम देख रहे हैं कि कैसे किसी न किसी विभाग की गिरफ्त में आकर मंदिरों को तोड़ा जा रहा है।
परन्तु कांग्रेस उत्तराखंड में तो ट्वीट कर सकती है, तमिलनाडु में वह नहीं बोलती है जहाँ पर लगभग रोज ही कोई न कोई मंदिर तोड़ा जा रहा है!
कल ही तमिलनाडु से हमने देखा था कि धर्मांतरण में बाधा बने शिव मंदिर को तमिलनाडु में मशीनों से इसलिए ढहा दिया गया था क्योंकि वह कथित रूप से अतिक्रमण वाली भूमि पर था।
यह मंदिर एक विशाल शिवलिंग के आकार में था और इसमें शिव परिवार के समस्त देव परिवार सदस्य थे। और इसका प्रशासन भक्तों के हाथ में था।
भक्तों ने प्रशासन से अनुरोध किया कि कम से कम उन्हें इतना समय दिया जाए जिससे वह प्रतिमाओं को वहां से हटा सकें, परन्तु उनकी बात नहीं सुनी गयी और मंदिर और प्रतिमाओं को तोड़ दिया गया। कहा गया था ।
कांग्रेस के लिए उत्तराखंड में मंदिरों की बात करना फायदेमंद है तो वह वहां पर बोलती है, परन्तु तमिलनाडु में वह मौन रहती है!
हिन्दुओं के साथ यह अत्याचार कब तक चलेगा, यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है!