आजकल समाचार पत्रों और समाचार चैनलों में एक विषय काफी चर्चा का केंद्र बना हुआ है। यह विषय है सुरेश चव्हाणके के सुदर्शन टीवी द्वारा कार्यक्रम प्रसारण का दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा रोक। दिल्ली उच्च न्यायालय ने 28 अगस्त को “जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय “के छात्रों एवं पूर्व छात्रों द्वारा दायर एक याचिका पर सुदर्शन टीवी द्वारा सरकारी सेवा में मुसलमानों की घुसपैठ की साजिश को उजागर करने के लिए कार्यक्रम के प्रसारण पर रोक लगा दी है। इस कार्यक्रम की झलकी ने भारत के उदार वादियों के क्रोध को आकर्षित कर लिया और उन्होंने सुदर्शन टीवी के प्रधान संपादक सुरेश चव्हाणके को सार्वजनिक रूप से कट्टर धर्मांध जैसी संज्ञाओं का उल्लेख करते हुए तीव्र आलोचना की। सुरेश चव्हाणके पर आरोप लगाया कि वो मुसलमानों के प्रति विशेषकर जामिया के छात्रों के लिए घृणा को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं ।
कार्यक्रम की झलकी में चव्हाणके ने “जामिया के जिहादियों” का जिलाधीश एवं मंत्रालयों में सचिव जैसे पदों पर आसीन होने के भय का उल्लेख किया है।उनकी भाषा भले अशिष्ट प्रतीत हो परन्तु इस विषय मे यूपीएससी के मुसलमानों का पक्षधर होने की पड़ताल तो होनी चाहिए।
यूपीएससी में मुसलमानों के प्रति झुकाव – तथ्य अथवा कोरी कल्पना?
यूपीएससी (संघ लोक सेवा आयोग ) की चयन प्रक्रिया के भीतर में मुसलमानों के प्रति झुकाव को लेकर बहुत बहस होती रहती है ।परन्तु किसी भी निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचने हेतु दोनो पक्षों के तर्कों की निष्पक्ष रूप से पड़ताल होनी चाहिए।
लोगों का यह कहना है की मुस्लिमों का सेवा आयोग में अधिक चयन अनुपात का कारण “इस्लामिक अध्ययन” और “अरबी” जैसे विषयों की वजह से है।और इन विषयों की प्रतियों की जांच भी मुस्लिम समुदाय के लोग ही करते हैं इसलिय उन्हें उदारता पूर्वक अंक मिलते हैं।तथ्य ये है कि सेवा आयोग परीक्षा में ऐसे कोई विषय होते ही नही हैं।
हाँ, कोई इस तथ्य से मुँह नही मोड़ सकता कि एक उर्दू साहित्य में अन्य वैकल्पिक विषयों की तुलना में चयन का अनुपात अधिक है।और इन विषयों के जांचकर्ता सभी तो नहीं पर अधिकतर मुस्लिम समुदाय के ही होते हैं।
चयन प्रकिया के साक्षात्कार स्तर पर मुस्लिमों के प्रति पक्षपात और वरीयता को लोगों ने डेटा विश्लेषण के माध्यम से सिद्ध कर दिया है।संजीव नेवार, जो डेटा विज्ञान के क्षेत्र में काम करते हैं, ने पिछले साल ट्विटर पर परिणामों का खुलासा किया। उनके विश्लेषण के अनुसार, चयनित हिंदू उम्मीदवारों की तुलना में औसतन, चयनित मुस्लिम उम्मीदवारों को साक्षात्कार में काफी अधिक अंक मिलते हैं।
This is summary of interview score difference between M and non-M in UPSC selection for last 6 yrs.
Data before & after this is not available.
Should there not be review since 1947?
Watch https://t.co/khDgXuaB9x for complete analysis, Zakat Foundation and Sharia Council angle. pic.twitter.com/XrQL2DiYpH— Sanjeev Newar संजीव नेवर (@SanjeevSanskrit) August 29, 2020
यह बात बिल्कुल किसी के गले से नहीं उतरेगी कि एक विशेष धार्मिक समूह ही साक्षात्कार में बेहतर कर रहा है , इसका अर्थ है कि मुसलमानों के पक्ष में पूर्वाग्रह एक तत्व है। यह कोई हाल की घटना नहीं है और लंबे समय से यह होता आ रहा है।कुछ वर्ष पूर्व ही 2017 में हिंदू पोस्ट ने सेवा आयोग में मुस्लिमों के प्रति साक्षात्कार चरण में पक्षधरता पर विश्लेषणात्मक प्रकाश डाला था ।
यह अल्पसंख्यको के पक्ष में पक्षपात सरकार द्वारा स्वीकृत है ।ज्ञात हो कि ‘नई उड़ान’ नामक योजना जिसके अंतर्गत सरकार यूपीएससी की प्रारंभिक परीक्षाओं में उतीर्ण होने वाले छात्रों, जिनकी पारिवारिक आय 4.5 लाख रुपये सालाना से कम है, उनको 1 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देती है।यह योजना, जिसके सूत्रधार केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री श्री मुख्तार अब्बास नकवी हैं, ने वर्ष 2019 में 22 परीक्षार्थियों को सेवा आयोग में चयनित होने में सहायता प्रदान की थी।यह घोर आश्चर्य का विषय है कि इसमें से 12 छात्र मुस्लिम समुदाय से हैं।अन्य समुदायों के आर्थिक रूप से असहाय छात्रों के लिए ऐसी कोई भी सरकारी योजना नहीं हैं।
जकात फाउंडेशन – क्या है और क्या है इसका ध्येय?
कोई इस बात का खण्डन नहीं कर सकता कि मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार स्तर तक पहुँचने के लिए प्रतिभा और उत्कृष्ट मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।”ज़कात फाउण्डेशन” नामक संस्था ऐसी ही उन कई संस्थाओं में से एक है जो मुस्लिम छात्रों को ऐसा मार्गदर्शन और सहायता उपलब्ध कराती है।यदि निष्पक्षता के साथ बोला जाए तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी संकल्प नामक संस्था के माध्यम से सेवा आयोग में चयन हेतु कई छात्रों को छात्रावास, अनुशिक्षा और साक्षात्कार की तैयारी के लिए कक्षायें जैसी सुविधाएं उप्लब्ध कराती है।
वास्तव में, सभी धर्मों में से अधिकांश चयनित उम्मीदवार वास्तव में संकलप द्वारा आयोजित उच्च गुणवत्ता वाले मॉक साक्षात्कार में भाग लेते हैं।
समस्या तब है जब संगठन की साख अपने आप संदेह में है। ज़कात फाउंडेशन के भगोड़े इस्लामी अपराधी ज़ाकिर नाइक और अन्य विदेशी इस्लामी संगठनों के साथ संबंध हैं। हिंदू पोस्ट ने हाल ही में एक कहानी प्रकाशित की थी। दरअसल, लोक सेवा आयोग, 2009 में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने वाले शाह फैसल ने ज़कात फाउंडेशन में पढ़ाई की थी। यह याद रखना चाहिए कि साक्षात्कार में असाधारण रूप से उच्च अंक प्राप्त करने के बाद उन्होंने परीक्षा में टॉप किया था। प्रकाश राजपुरोहित, उस वर्ष में द्वितीय स्थान प्राप्त करने वाले वास्तव में लिखित परीक्षा में फ़ेसल के बहुत आगे थे, लेकिन साक्षात्कार में फ़ेसल से 60 अंक कम पाए गए! यह एक संदेहात्मक विषय है।
ज़कात फाउंडेशन चलाने वाले लोगों की विचारधारा भारत को मुस्लिम देश बनाने की है। संजीव नेवार ने हाल ही में कलीम सिद्दीकी का चलचित्र साक्षात्कार पोस्ट करने के बाद उसे उजागर किया, जो कि ज़कात की सर्वोच्च समिति, शरिया सलाहकार परिषद के सदस्य हैं। साक्षात्कार में सिद्दीकी ने हिंदू धर्म को नीचा दिखाया और हिन्दुओं को ‘जहन्नुमि ‘या ‘नरक-बाध्य’ कहा। वह चर्चा करता है कि वह हिंदुओं का कैसे धर्मान्तरण करता है और बताता है की कैसे मुसलमानों को हिन्दुओं का पहले विश्वास जीत कर बाद में उनका धर्मान्तरण करना चाहिए। वीडियो नीचे देखे जा सकते हैं: –
This is Zakat Foundation Shariah Council member Kalim Siddiqui.
Is he not a psychopath that he wants to convert all Hindus to Islam so that they don't burn in Hell forever? Mocks that H call their Jahannumi dead Swargeeya!
Imagine he trains those who get selected in UPSC! pic.twitter.com/ExNLs3XT5V— Sanjeev Newar संजीव नेवर (@SanjeevSanskrit) August 30, 2020
उनकी विचारधारा भी उनके आदर्शों से स्पष्ट है। ज़कात फाउंडेशन की वेबसाइट पर नवाब मोहसिन उल मुल्क की तस्वीर है, जिन्होंने 1867 की लोकसेवा आयोग में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया था। स्पष्ट है, वह ज़कात फाउंडेशन के लिए एक प्रेरणा है और वह चाहते हैं कि उसके निवासी छात्र उससे प्रेरित हों। हालांकि, यह याद रखना चाहिए कि मोहसिन उल मुल्क भारत के विभाजन के लिए जिम्मेदार पार्टी मुस्लिम लीग के संस्थापक भी थे।
सोशल मीडिया पर उनकी गतिविधियों के उजागर होने के बाद, ज़कात फाउंडेशन ने अपनी वेबसाइट से सबूत मिटाना शुरू कर दिया। सोशल मीडिया उपयोगकर्ता अजय शर्मा, जो ट्विटर पर @ajaeys हैंडल से जाते हैं, ने एक और सूत्र में बताया: –
1/n
So Zakat Foundation has silently edited its website. They have removed names of their partner orgs, has put posts about Yoga, Covid, Sabka Sath Sabka Vikas etc on the home page. Thank god, I took the screenshots. Website's old versions can be seen at https://t.co/ImLvdRpjxs.— Ajaey Sharma (@ajaeys) August 30, 2020
यह याद रखना चाहिए कि ज़कात फाउंडेशन और जामिया मिलिया इस्लामिया में आवासीय कोचिंग दो अलग-अलग कार्यक्रम हैं। जामिया के कार्यक्रम में मुसलमानों के लिए 50% आरक्षण है, बावजूद इसके की वह केंद्रीय विश्वविद्यालय है। इस साल जामिया से 30 उम्मीदवारों का चयन किया गया है, और उनमें से 16 मुस्लिम हैं।
उदारवादियों का चयनात्मक दृष्टिदोष और स्मृतिलोप
भारत के उदारवादियों को सेवाओं में मुस्लिमों की गिनती से समस्या है। हिंदुत्व के प्रति थोड़ी सहानुभूति रखने वाले कुछ अधिकारी और पूर्व अधिकारी भी इसी सोच का पक्ष लेते देखे गए। हालाँकि, यह याद रखना चाहिए कि सुरेश चव्हाणके का सेवाओं में मुसलमानों की गणना करना, पूरपक्षपात पर सवाल उठाना और हुतात्मा सैनिकों, क्रिकेटरों या प्रोफेसरों की सूची में शेखर गुप्ता, ज्योति यादव या दिलीप मंडल द्वारा उच्च जाती के आधार पर गिनती करने के बीच में गुणात्मक रूप से कोई अंतर नहीं है।
सुरेश चव्हाणके की मुस्लिम निंदा का उस ब्राह्मण निंदा से कोई मुकाबला नहीं है जो उदारवादी प्रकाशनों में नियमित रूप से होता है। दिन प्रतिदिन, ब्राह्मणों को भरत की सभी समस्याओं के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है और इन झूठों का मुकाबला करने के किसी भी प्रयास को भाषण की स्वतंत्रता पर हमले के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
सुदर्शन टीवी के कार्यक्रम पर रोक उदारवादियों को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर प्रहार जैसा प्रतीत नही होता। दरअसल, हाल के दिनों में, एक अंग्रेज़ ’इतिहासकार’ के नेतृत्व में उदारवादियों ने दिल्ली के दंगों पर तीन हिंदू महिलाओं द्वारा एक पुस्तक के प्रकाशन पर रोक लगा दी। यद्यपि उसी प्रकाशन ने दंगों के दूसरे पक्ष की कहानी को प्रकाशित किया। स्पष्ट है, उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वैचारिक वर्ण के एक विशेष पक्ष के लिए ही है।
निष्कर्ष
ऐसा नहीं है की सभी सेवा पदस्थ मुस्लिम अधिकारी जिहादी मानसिकता के हैं । सय्यद अकबरुद्दीन जैसे देश हित को हमेशा अग्रणी रख कर सेवा करने वाले इसका उत्कृष्ट उदाहरण हैं। वहीं शाह फ़ैसल जैसे भी हैं जिन्होंने समय समय पर अपने गुप्त नीच उद्द्येश्यों को प्रकट किया है।
मुस्लिमों के प्रति इस पक्षपात को कइयों ने अच्छा भी बताया है, यह कहकर की इससे उनकी जनसंख्या के अंश के अनुसार सेवाओं में उनके प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित किया जा सकता है।परंतु इसमें योग्यता के तत्व की अनदेखी की जाती है।हमारे भारत राष्ट्र में जैन, सिख और पारसी समुदाय भी अल्पसंख्यक हैं किन्तु जनसंख्या के अनुपात में कई अधिक श्रेयस्कर हैं, और तो और उनका उच्च शिक्षित का अनुपात भी बहुत अच्छा है।अतः समुचित जनसंख्या के प्रतिशत के आधार पर नहीं अपितु विश्लेषण का मापदंड शिक्षित आबादी के प्रतिशत के आधार पर होना चाहिए।
लोक सेवा आयोग भारतीय प्रशासन का सुदृढ़ ढांचा है। सेवा आयोग के अधिकारी अपने जीवन के अगले तीन दशकों से अधिक समय तक अपार शक्ति से युक्त होते हैं। लोक सेवाओं के लिए भर्ती की प्रक्रिया में किसी भी अनियमितता के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। सरकार को पक्षपात के इन दावों की गहन पड़ताल करनी चाहिए और स्थिति को सुधारने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए।
(प्रमोद सिंह भक्त द्वारा इस अंग्रेजी लेख का हिंदी अनुवाद)
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