उत्तर प्रदेश में चुनाव परिणाम आते ही कथित निष्पक्ष लेखकों और पत्रकारों का रोना आरम्भ हो गया है। ऐसा क्यों है कि वह जनता का आदेश स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। यह भी देखा गया कि उन्हें इस बात का बहुत अफ़सोस है कि मुस्लिम ही केवल कथित धर्मनिरपेक्षता का पालन कर रहे हैं, और दलित भाग लिए। उन्हें इस बात का बहुत क्षोभ है कि उत्तर प्रदेश की जनता ने कुछ भी याद नहीं रखा, प्रदेश की जनता इतनी कृतघ्न है कि वह सभी कुछ भुला बैठी है। उसने इन लेखकों का बना बनाया खांचा तोड़ दिया कि योगी कसाई हैं!
पाठकों को याद होगा कि जैसे ही कोरोना की प्रथम लहर में जैसे ही लॉक डाउन की घोषणा की थी, और यह कहा गया था कि राशन फ्री में दिया जाएगा, तो एकदम से ही उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रवासी श्रमिक पैदल ही अपने घरों की ओर चल पड़े थे। उस समय उन लोगों के दृश्य लोगों ने बहुत लगाए थे और न जाने कितनी कविताएँ और कहानियां लिखी थीं, और कई लेखकों ने तो यह तक कल्पना कर ली थी कि कितना मजा आए यदि यह लोग विद्रोह कर दें?
यह लोग उन सभी श्रमिकों की विवशताओं का दोहन कर रहे थे और उन्हें संभावित रूप से सरकार का विरोधी घोषित कर रहे थे। परन्तु यह या विपक्ष क्या कर रहा था, यह नहीं देखा? और सरकार ने क्या कदम उठाए यह नहीं देखा। सरकार के बस में नहीं था कि वह पंजाब या महाराष्ट्र या कहीं और से आने वाले लोगों को वहीं रुकने के लिए बाध्य कर सके, परन्तु उसके अपने हाथ में था कि जैसे ही वह उत्तर प्रदेश पहुंचें, अर्थात अपने घर पहुंचे, उनके लिए राशन पानी की व्यवस्था करें। वह सरकार ने किया, और लेखक इस बात के लिए कलप रहे हैं कि यह मजदूर लोग “फ्री राशन” पर बिक गए?

पर क्या इसे बिकना कहेंगे? यह इन लेखकों और लेखिकाओं की कृतघ्नता का एक बहुत बड़ा उदाहरण है। वे श्रमिक दुखी थे, और परेशान थे, क्योंकि उन्हें ऐसा लग रहा था कि कब से काम शुरू होगा और यदि स्थिति लम्बी खिंच गयी तो हमारी रोटी कैसे चलेगी? जिस रोटी को आधार मानकर यह लेखक गृहयुद्ध करने के लिए तैयार रहते हैं, उसी रोटी को वह ऐसा मान रहे हैं, जैसे वह रिश्वत है।
यह लेखकों की हद दर्जे की निकृष्ट सोच है? जब जनता सड़क पर थी, तब विपक्ष कहाँ था और क्या कर रहा था? वह ट्विटर और फेसबुक पर उन लोगों के दर्द बेच रहा था, वह किसी न किसी वेबसाईट से उन मजदूरों की तस्वीर खींचता और फिर उसे अपनी फेसबुक या ट्विटर वाल पर लगाते और फिर अंतत: यह कहते कि कुछ नहीं होगा इस सरकार में और फिर लिखते? परन्तु उस वैश्विक महामारी से निपटने के लिए सरकार क्या कदम उठा रही थी और अन्य विकसित देशों की तुलना में वह कितनी आगे थी, यह लेखकों ने जानने का न श्रम किया और न ही प्रयास!
अब वह जनता को ही कोस रहे हैं:

फेसबुक पर ऐसे ही लेखकों का मंच है जनविचार संवाद!
इस पेज पर और कुछ नहीं, बस भाजपा और हिन्दुओं के प्रति घृणा को उकेरा जाता है। जबसे भारतीय जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश में जीत हुई है, तब से वहां पर अजीब सी भड़ास निकाली जा रही है। यह भड़ास क्यों है और किसलिए है, यह समझा जा सकता है। यह उस दिमागी श्रम के विफल होने का दुःख है, जो उन्होंने इतने दिनों से किया था।

वह उन गरीबों को दोषी ठहरा रहे हैं जिन्हें सरकारी राशन मिला:
बार बार निष्पक्ष चुनावी विश्लेषकों द्वारा यह कहा जा रहा था कि लाभार्थी वर्ग किसी जाति से बंधा नहीं है और वही योगी-मोदी का सबसे बड़ा वर्ग है। यूट्यूब पर कई चैनल्स ऐसे हैं जो बार बार यह कह रहे थे कि एक बड़ा वर्ग है, जो भारतीय जनता पार्टी की जीत में बड़ी भूमिका निभाएगा। जैसे आपका अखबार में वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह, इंडिया स्पीक्स डेली पर संदीप देव, मतांतर, सुशांत सिन्हा आदि। जो बार बार यह कह रहे थे कि भारतीय जनता पार्टी ने जातिगत संरचना को तोडा है, और महिलाओं का अपना एक वोटबैंक तैयार किया है।
परन्तु फर्जी आन्दोलन पर अपना सब कुछ बलिदान करने वाले और फर्जी आन्दोलन के सहारे सरकार को गिराने का सपना लिए कई पोर्टल्स बार बार यही कह रहे थे कि भारतीय जनता पार्टी हार रही है, मोदी और योगी हार रहे हैं। जैसे अभिसार शर्मा, जैसे सत्य हिन्दी और जैसे 4पीएम जैसे पोर्टल्स! इनके जैसे सभी पोर्टल्स यह मानकर चल रहे थे कि मुख्यमंत्री योगी हार रहे हैं, भारतीय जनता पार्टी हार रही है और इन्हीं कथित क्रांतिकारियों के पोर्टल्स के आधार पर वामपंथी और कांग्रेसी लेखक अपने अपने विचार बना रहे थे।

सत्य हिन्दी पर जो पैनल आता था, उसमें वही सब लोग हैं, जिन्होनें राजनीति को मात्र वर्ग संघर्ष, यह जाति, वह जाति के आधार पर देखा है। जाति के आधार पर नौकरी देने वाले अखिलेश यादव और मुलायम सिंह को देखा है, अपनी पार्टी के ही लोगों को जमकर यशभारती बांटने वाले अखिलेश यादव को देखा है, और भाजपा और हिन्दू विरोध करने वाले लोगों को हर प्रकार का फायदा देते हुए देखा है।

पत्र-पत्रिकाओं में हिन्दुओं को गाली देने को प्रगतिशीलता मानने वाले लोग यह नहीं समझ पा रहे हैं, कि उनकी सरकारी चंदे वाली पत्रिकाओं का सर्कुलेशन आज भी नहीं है, और अब उनके जो यूट्यूब चैनल्स हैं उनके भी दर्शक गिने चुने हैं, और वह वही मुट्ठी भर लोग हैं, जो किसी न किसी लाभ के कारण इन जातिवादी नेताओं से जुड़े हुए हैं।
इन पत्रकारों ने अपने व्यक्तिगत हितों को जनता के हितों से ऊपर रखा और बार बार यह प्रमाणित करने का प्रयास किया कि योगी आदित्यनाथ की सरकार जा रही है क्योंकि कोरोना में लोग वापस अपने घर आए थे। परन्तु वह कहाँ से आए थे? वह किन राज्यों से वापस आए थे? इस पर यह लोग मौन हैं! यह लोग वापस आए थे कांग्रेस शासित महाराष्ट्र से, यह लोग वापस आए थे कांग्रेस शासित पंजाब से? यह लोग उत्तर प्रदेश में आए थे तो उन्हें राशन मिला, यह लोग वापस आए तो उन्हें आर्थिक छाँव मिली, उन्हें जिस पार्टी ने पंजाब से भगाया, उन्होंने उस पार्टी को पंजाब से क्या उत्तर प्रदेश से भी साफ़ कर दिया?
कोरोना काल की आपदा में जो सरकार जनता के साथ रही, क्या जनता ने उसका साथ देकर बुरा किया? क्या उसे इन लेखकों का घर भरने वाले विपक्षी नेताओं के पाले में जाना था? प्रश्न कई हैं, परन्तु दुर्भाग्य से इन लेखकों के पास कोई उत्तर नहीं है!