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Friday, April 19, 2024

क्या यूनाइटेड किंगडम ‘इस्लामिक कट्टरता’ से लड़ने के नाम पर करदाताओं के पैसे से जिहादी संगठनों और तालिबान समर्थकों को वित्तपोषित कर रहा है?

पिछले कुछ वर्षों में यूनाइटेड किंगडम के सामने कट्टर इस्लाम एक बहुत बड़ी समस्या बन कर उभरा है। यूके में कई शहरों में जनसांख्यिकी बदलाव देखने को मिले हैं, वहीं यह भी देखने को आया है कि स्थानीय इस्लामवादी आंदोलनों का स्वरुप और महत्वाकांक्षाएं दुनिया के विभिन्न स्थानों पर कट्टर इस्लामवादियों और उनके वैचारिक अनुयायियों के समान हैं। इनका एकमात्र उद्देश्य देश में शरिया कानून द्वारा शासित एक इस्लामी राज्य का गठन करना होता है। यह लोग इस्लामी गुट लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नियोजित करके स्थानीय व्यक्तियों और समुदायों के इस्लामीकरण करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

पिछले कुछ वर्षों से कट्टरपंथी इस्लामिक समूह देश में राजनीतिक प्रभाव बढ़ा रहे हैं, वह स्थानीय राजनीतिक दलों और राजनेताओं कि अनुकम्पा के कारण अपना प्रभुत्व बढ़ाते जा रहे हैं। कुछ ब्रिटिश मीडिया आउटलेट्स, मानवाधिकार समूहों और विश्वविद्यालयों की सहायता से इन कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों को देश में एक अनुकूल मंच भी मिला है, जो इस्लामिक कट्टरता को बढ़ावा दे रहा है।

यह एक बड़ा कारण है कि अधिकांश यूरोपीय देशों के समान ही यूनाइटेड किंगडम में मुसलमानों की आबादी बेतहाशा बड़ी है। यूरोप में मुसलमानों की संख्या निकट भविष्य में उल्लेखनीय रूप से बढ़ने की भविष्यवाणी की गई है, वहीं यूनाइटेड किंगडम में मुस्लिमों की आबादी 2016 में 6.3 प्रतिशत से बढ़कर 2050 में 17.2 प्रतिशत तक हो सकती है।

बड़ी ही आश्चर्य की बात है कि ब्रिटेन और उत्तरी आयरलैंड में इस्लाम दूसरा सबसे बड़ा धर्म बन चुका है, जबकि हाल ही में 2018 के राष्ट्रीय सांख्यिकी स्रोतों के कार्यालय ने इसे कुल आबादी का मात्र 5.1% ही बताया गया है। यूनाइटेड किंगडम में मुसलमानों की विशाल जनसँख्या ब्रिटेन में रहती है (5.02% जनसंख्या), वहीं स्कॉटलैंड में (1.45%), और वेल्स में 1.50% जनसँख्या मुस्लिम है। वहीं राजधानी लंदन में देश में मुसलमानों की सबसे बड़ी आबादी रहती है।

कट्टर इस्लाम बना एक ज्वलंत समस्या

यूनाइटेड किंगडम पिछले कई दशकों से इस्लामवादी गतिविधियों का केंद्र बिंदु रहा है।1960 और 1990 के दशक के बीच ब्रिटेन में स्थापित कई संगठनों के यूरोप में कट्टरपंथी इस्लामवादियों से संबंध रहे हैं, उत्तर अफ्रीकी मुस्लिम ब्रदरहुड और दक्षिण एशियाई जमात-ए-इस्लामिक कुछ नाम हैं। कई अध्ययनों से पता चलता है कि यूके दुनिया भर में आतंकवादी कारणों के लिए धन उगाहने और इस्लामिक कट्टरता फैलाने का आधार रहा है। कुछ समूह जो सक्रिय रूप से धर्मांतरण और कट्टरवाद में सम्मिलित है, वह हैं “इस्लामिक फोरम ऑफ यूरोप”, “यू.के. इस्लामिक मिशन”, “द मुस्लिम काउंसिल ऑफ़ ब्रिटेन”, और “मुस्लिम एसोसिएशन ऑफ़ ब्रिटेन”।

पिछले कुछ वर्षों में हमने देखा कैसे ढेरों ब्रिटिश मुस्लिम पासपोर्ट धारक आतंकवादी संगठन आईएसआईएस के लिए लड़ने के लिए सीरिया चले गए थे। इनमे से कई आज भी जीवित हैं और दुनिया के विभिन्न भागों में जिहादी कारणों में लगे हुए हैं। आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि 7 जुलाई, 2005 को लंदन के सार्वजनिक परिवहन नेटवर्क पर आत्मघाती बम विस्फोट करने वाले आतंकवादियों में से एक ब्रिटिश नागरिक भी था। उसे अल-कायदा ने भर्ती किया था और उसे इतना कट्टर बना दिया कि उसने अपने ही देश में आतंकवादी हमला कर दिया।

इन घटनाओं से यह पता लगता है कि यूनाइटेड किंगडम में इस्लामिक कट्टरवाद किस स्तर तक बढ़ चुका है। यह जिहादी समूह स्थानीय व्यक्ति और फिर समुदाय का इस्लामीकरण करने के उद्देश्य में आगे बढ़ रहे हैं। ब्रिटिश सरकार आतंकवाद में तेजी से वृद्धि की आशंका से घबराई हुई है। कई सरकारी रिपोर्ट से पता चला है कि “एक साल में पाकिस्तानी मदरसों में लगभग 3,000 ब्रिटिश बच्चे नामांकित होते हैं, जिन्हे जिहाद की शिक्षा दी जाती है।

ब्रिटिश सरकार को डर है कि इन कट्टर इस्लामिक मदरसों में युवाओं को कट्टरपंथी बना दिया जाता है और एक विकृत मानसिकता के साथ यह लोग समाज में मिल जाते हैं, और भविष्य के आतंकवादी बनने का जोखिम भी पैदा करते हैं। मुस्लिम ब्रदरहुड आंदोलन और उनके साहित्य से पता चलता है कि “पश्चिमी समाज स्वाभाविक रूप से मुस्लिम आस्था और हितों के प्रति शत्रुतापूर्ण है और मुसलमानों को अपनी दूरी और स्वायत्तता बनाए रखते हुए जवाब देना चाहिए”।

यही कारण था कि यूनाइटेड किंगडम की सरकार ने कट्टर इस्लाम पर लगाम लगाने का दावा किया था। लेकिन क्या वह इसमें सफल हुए? आइये जानते हैं

जोनाथन हॉल, जो 2020 में यूके के “आतंकवाद कानून के स्वतंत्र समीक्षक” थे, ने उस समय कहा था कि ‘कट्टरपंथ से मुक्ति कार्यक्रम’ जैसी योजनाएं आमतौर पर बुरी तरह से विफल रहते हैं। लेकिन सरकार ने उनकी बात नहीं मानी, और अपने इस कार्यक्रम में जनता के दिए गए टैक्स के पैसे को खर्च करती रही। सांसद सर डेविड एम्स की हत्या करने वाले जिहादी को भी सरकार ने ‘प्रिवेंट कार्यक्रम’ में भेजा था। इन प्रिवेंट कार्यक्रमों के माध्यम से जहाँ ब्रिटिश करदाता अनजाने में जिहादी समूहों को वित्त पोषित कर रहे हैं, वहीं जिहादी तत्व इस इस वित्तीय सहायता का दुरूपयोग ब्रिटिश समाज के विरुद्ध कर रहे हैं।

चार महीने पहले ही यूके के प्रधान मंत्री ऋषि सुनाक ने कहा था कि “‘ब्रिटेन से अत्यधिक घृणा’ वाले लोगों को प्रीवेंट की ‘डीरैडिकलाइज़ेशन योजना’ द्वारा कट्टरता से दूर किया जा सकता है। इसके साथ ही उन्होंने इस्लामिक चरमपंथ की परिभाषा को व्यापक बनाने का वादा किया था।” दूसरे शब्दों में कहें तो उन्होंने इस्लामिक कट्टरता के बारे में ख़ुफ़िया एजेंसियों द्वारा दी गयी चेतावनियों को अनदेखा करते हुए यह कार्यक्रम बनाया और कट्टरता को रोकने के नाम पर और अधिक धन खर्च करने का काम है।

ब्रिटिश कंज़र्वेटिव पार्टी और अन्य राजनीतिक दलों ने पिछले कई वर्षों में यह दिखाया है कि वह किस प्रकार अफ्रीका और मध्य पूर्व से आ रहे अवैध मुस्लिम घुसपैठियों को एक योजनाबद्ध तरीके से देश में बसाने का कार्य कर रहे हैं । यह देखने को मिला है कि इंग्लिश चैनल के माध्यम से हर वर्ष हजारों मुस्लिम इस देश में घुसपैठ करते हैं, और यह राजनीतिक दल अपने वोट बैंक को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें स्थानीय समाज में रचने बसने में सहायता करते हैं, जो कहीं ना कहीं देश में इस्लामिक कट्टरता के उभार के लिए उत्तरदायी हैं।

पिछले दिनों सर विलियम शॉक्रॉस (चैरिटी कमीशन के पूर्व प्रमुख) द्वारा ब्रिटिश सरकार की आतंकवाद विरोधी योजना ‘प्रिवेंट’ की समीक्षा के दौरान कई चौंकाने वाले निष्कर्ष सामने आए हैं। द टेलीग्राफ समाचार पत्र द्वारा देखे गए रिपोर्ट के मसौदे से पता चलता है कि कैसे सरकार की डी-रेडिकलाइज़ेशन नीति बुरी तरह से गलत साबित हो गई।

प्रीवेंट द्वारा वित्त पोषित समूहों का नेतृत्व उन लोगों द्वारा किया गया था जिन्होंने तालिबान का समर्थन किया था, प्रतिबंधित उग्रवादी इस्लामी समूहों का बचाव किया था और मजहबी द्वेष फैलाने वाले प्रचारकों की मेजबानी की थी। रिपोर्ट के मसौदे में आरोप लगाया गया है कि सरकार उन समूहों को वित्त पोषित करती है जिन्होंने देश में इस्लामिक कट्टरवाद को बढ़ावा दिया था।

यूनाइटेड किंगडम वर्षों से इस्लामिक कट्टरवाद का केंद्र बन चुका है । हमने देखा है कैसे सरकार ने ब्रिटिश लोगों से बार-बार इस्लामिक कट्टरवाद से लड़ने के खोखले वादे किए हैं और करदाताओं की गाढ़ी कमाई को इस समस्या से लड़ने के छद्म प्रयासों पर खर्च किया है।

सरकार जनता को झूठी सुरक्षा की भावना देती है और यह दिखाती है कि सरकार वास्तव में समस्या को हल करने का प्रयास कर रही है, लेकिन सत्य कुछ और ही है। ब्रिटिश सरकार की ही तरह कई अन्य पश्चिमी देशों की सरकारें भी अपने लोगों के साथ विश्वासघात कर रही हैं। और दुर्भाग्य से इनकी अकर्मण्यता के कारण ना सिर्फ उनके देश में इस्लामिक कट्टरता बढ़ रही है, बल्कि अन्य कई देशों को भी हानि पहुंच रही है।

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