लव जिहाद के मामले अब और मुखर होकर आ रहे हैं। अब तो दुस्साहस यहाँ तक है कि लड़कियों को बात न मानने पर सरेआम मारने की धमकी दी जा रही है। हिन्दू लड़कियों को नष्ट करने का दो तरफ़ा अभियान है, या तो बात मानो या फिर मरने के लिए तैयार रहो! दोनों ही मामलों में लड़की का विनाश निश्चित है। इन दोनों मामलों को देखने पर उस दुस्साहस पर विचार करना ही चाहिए कि आखिर क्या कारण है कि पूरा का पूरा परिवार ही हिन्दू लड़की को मुस्लिम बनाने पर तुल जाता है, न ही किसी क़ानून का भय है और न ही दंड का!
मध्यप्रदेश में खंडवा में जांबाज मंसूरी ने एक नर्सिंग की छात्रा के अपहरण का प्रयास किया। उसने लड़की के सिर पर फूल बिखेर दिए और फिर कहा कि वह उससे शादी करे। धर्म बदले और उसके साथ चले। इतना ही नहीं उसने लड़की का हाथ पकड़कर बाइक पर बैठा लिया, मगर जैसे ही वह बाइक की स्पीड बढ़ाता, उससे पहले ही लड़की कूद गई और शोर मचाने लगी। भीड़ को देखकर वह भाग गया, हिन्दू संगठन इस मामले की जानकारी मिलते ही वहां पर पहुँच गए।
भास्कर के अनुसार लड़की ने कहा कि
“मैं शहर के एक प्राइवेट नर्सिंग कॉलेज में फर्स्ट ईयर की स्टूडेंट हूं। सोमवार दोपहर 3 बजे मैं अपने घर आशापुर जा रही थी। गांव का ही मोनू उर्फ जांबाज मंसूरी एक साल से परेशान कर रहा है। जब मैं हरसूद कॉलेज में पढ़ती थी, तब भी वह पीछा कर रास्ता रोकता था। वह शादी के लिए दबाव डालता था। मैंने अपने परिवार को भी ये बात बताई थी। मेरे परिजनों ने आरोपी के पिता पीरू मंसूरी के घर जाकर शिकायत भी की थी। कुछ दिन पहले आरोपी ने मेरा मोबाइल नंबर किसी से ले लिया। वो मुझे वाट्सऐप पर मैसेज करने लगा। कहता है शादी कर लो, वरना परिवार को जान से मार दूंगा। उसने कई बार बंदूक और पिस्तौल हाथ में थामे हुए फोटो भेजे और धमकाया कि धर्म परिवर्तन करके शादी कर लो, नहीं तो गोली मार दूंगा। पिछले महीने भी उसने खंडवा आकर रास्ता रोक लिया था, तब मुंह पर एसिड फेंकने की धमकी दी थी।“
यह कितना दुस्साहस है कि हिन्दुओं की लड़कियों को यूंही उठा लेने की धमकी भी कोई दे देता है और धमकी देता ही नहीं है, बल्कि अमल में भी ले आता है। क़ानून, सजा आदि किसी का भी डर नहीं, कौन देता है ऐसे वर्ग को यह साहस? कौन करता है समर्थन? समर्थन के लिए पूरी की पूरी लॉबी है!
वहीं मीडिया के अनुसार आरोपी 9 महीने पहले भी लव जिहाद के मामले में जेल गया था, अभी जमानत पर बाहर है और फिर इस घटना को अंजाम दिया
एक पैटर्न है कि लड़की के साथ नकली नाम के साथ पहले दोस्ती करो, प्रेम प्रसंग करो और फिर फोटो सबूत के लिए रखे जाएं कि लड़की तो प्यार करती थी। जबकि अधिकाँश मामलों में लड़की उस हिन्दू नाम से दोस्ती करती है, जो उसे बताया जाता है। और फिर उन तस्वीरों के माध्यम से लड़की को चरित्रहीन घोषित किया जाता है, या फिर मुस्लिम पहचान सामने आने के बाद लड़की को प्रताड़ित करने के बाद मुस्लिम लड़कों को क्लीनचिट देने के लिए उन तस्वीरों का प्रयोग किया जाता है।
हिन्दुओं की नैतिक ब्रिगेड उन तस्वीरों की सत्यता जाने बिना लड़की को कोसने लगती है
यह भी दुखद है कि हिन्दुओं का एक बड़ा वर्ग है, जो नैतिकता के नाम पर उन तस्वीरों की सत्यता जांचे बिना उन लड़कियों को ही दोषी ठहराने लगता है। जैसा हाल ही में झारखंड की अंकिता के मामले में देखा गया था!
जबकि यह ऐसा जाल है जिसमें लड़कियों को पाठ्यक्रम की पुस्तकों से लेकर साहित्य एवं फिल्मों हर माध्यम से फंसाया जाता है। जो मातापिता अपनी बच्चियों को पाठ्यक्रम की पुस्तकों में बार बार यही रटवाते हैं कि हिन्दू धर्म में लड़कियों का शोषण किया जाता था, मुग़ल काल महान था और अंग्रेजों ने सती प्रथा पर रोक लगाई थी, और धर्म के स्थान पर फिल्मों का विमर्श करते हैं, वह भी अपनी बेटियों को भ्रमित करने में कहीं न कहीं सहायक होते हैं।
ऐसे में लडकियां पहले ही भ्रमित होती हैं, अपने ही धर्म के प्रति ऐसी भावना से भरी होती हैं, जिसमें कई गलत जानकारियाँ होती हैं, ऐसे में कई बार रूमानियत भी उसी मजहब से आ जाती है क्योंकि फिल्मों में सूफी गाने ही मोहब्बत का पर्याय बन गए हैं।
लड़की को चारों ओर से घेरकर ऐसा कर लिया गया है, कि बहुत बार उन्हें समझ ही नहीं आता है कि उनके साथ क्या हो सकता है। परन्तु फिर भी एक बड़ा वर्ग ऐसी लड़कियों का हैं जो ऐसी तमाम ब्रेन वाशिंग के बाद भी संघर्ष करता है, जैसा खंडवा की उस लड़की ने किया और पुलिस में रिपोर्ट कराई।
जैसा जबलपुर की उस लड़की ने किया जिसे अपनी शादी के बाद पता चला उसका पति दरअसल उसके धर्म का नहीं है और उसने झूठ बोलकर शादी की थी। इसमें भी वही कहानी है कि लड़की के साथ पहले वह छेड़छाड़ करता था और बहलाफुसला कर प्रेम जाल में फंसाया, और मंदिर में वर्ष 2021 में शादी कर ली थी। मगर जब महिला ने फतेहपुर (पति के निवास स्थान) जाने की इच्छा जाहिर की तो वहां जाकर उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं क्योंकि वह संजय न होकर असलम निकला। वही उस महिला का भी धर्म बदलने का दबाव परिवार ने डाला।
वह महिला किसी तरह से जबलपुर पहुँची और रांझी थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई!
यह दोनों ही घटनाएं उस दुस्साहस की कहानी हैं, जिसमें न ही भारतीय क़ानून का डर है और न ही दंड का खौफ! और यह इसलिए भी है क्योंकि कहीं न कहीं उन्हें भी पता है कि लड़की को चारित्रिक रूप से हानि पहुंचाकर वह हिन्दुओं के एक बड़े नैतिक वर्ग को उसी लड़की के विरुद्ध खड़ा कर देंगे, जो दरअसल अकादमिक, साहित्यिक, फ़िल्मी एजेंडे के साथ साथ नैतिक दोहरे मापदंड का शिकार हो रही हैं!
यहाँ पर उन महिलाओं की बात नहीं हो रही है, जो किसी एजेंडा को खुद चलाती हैं, बल्कि यहाँ पर उन पीड़ित लड़कियों की बात हो रही है जिन्हें वास्तव में ऐसे जाल में फंसा लिया गया है, जहां से बाहर निकलना अत्यंत कठिन है! वह कल्चरल जीनोसाइड से लड़ रही हैं, वह उस संहार से लड़ रही हैं, जो उनकी धार्मिक पहचान मिटाने को उतारू है!
फीचर्ड इमेज: दैनिक भास्कर