अधिक दिन नहीं हुए थे, जब ट्विटर के सीईओ के भारतीय होने का भारत में जश्न मनाया गया था। हालांकि तब भी यही आशंका थी कि क्या ट्विटर अपनी पुरानी ही चाल पर चलेगा या उसमें कुछ परिवर्तन होगा? क्योंकि ट्विटर का इतिहास हिन्दुओं की आवाज दबाने का रहा है, और अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय वामी इकोसिस्टम के प्रभाव में रहता है। ट्विटर पर कंगना रनावत का तो खाता नहीं है, परन्तु कंगना को गाली देने वाले कई लोगों के खाते अभी तक है, खैर कंगना को अपना शिकार बनाने के बाद अब ट्विटर ने अपना हिन्दू विरोधी रूप फिर से दिखाते हुए फिल्म निर्देशक विवेक अग्निहोत्री का ट्विटर खाता सस्पेंड कर दिया है।
वैसे बार-बार हिन्दू आवाज़े ट्विटर दबाता है, जैसे हाल ही में पत्रकार आरती टिक्कू का ट्विटर खाता केवल कश्मीर की बात उठाने पर सस्पेंड कर दिया था और फिर आरती टिक्कू ने क़ानून की मदद ली थी और उन्होंने लड़कर अपना खाता वापस पाया था।
परन्तु विवेक अग्निहोत्री का ट्विटर खाता क्यों सस्पेंड किया गया? क्या उनकी आने वाली फिल्म कश्मीर फाइल्स के कारण? क्योंकि अर्बन नक्सलस के विषय में वह बहुत समय से बोलते आ रहे हैं। और उनकी फिल्म जो शहरी नक्सलियों पर बनी थी, अर्थात बुद्धा इन अ ट्रैफिक जाम, उसने भी सोशल मीडिया पर बहुत हलचल मचाई थी। अर्बन नक्सल पर उन्होंने अपनी पुस्तक में भी इस तथ्य को रेखांकित किया है कि आज के समय में सोशल मीडिया एक बहुत बड़ा हथियार है। इसमें उन्होंने अपने अनुभवों के माध्यम से यह प्रमाणित किया था।
और विवेक अग्निहोत्री अपनी आने वाली फिल्म कश्मीर फाइल्स को लेकर सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय थे और वह बार बार उन तथ्यों पर बात कर रहे थे, जो वामपंथियों के एक बड़े वर्ग को तो असहज करते ही हैं, अपितु वह अंतर्राष्ट्रीय लॉबी पर भी प्रश्न उठाती है। विवेक अग्निहोत्री ने अर्बन नक्सलस की मानसिकता पर प्रहार किया था, और उन्होंने बार बार कहा था कि कैसे यह शहरी वामपंथी असंतोष को भुनाते हैं। इस फिल्म और पुस्तक दोनों के कारण ही उन्हें वामपंथियों ने निशाने पर लिया था।
परन्तु कश्मीर फाइल्स उससे भी बहुत बड़ा मुद्दा है। वह बहुत ही उत्साहित होकर इस फिल्म के प्रमोशन में लगे थे, तो क्या यह माना जाए कि उसी कारण उनका खाता सस्पेंड किया गया है?
क्या कश्मीर एक ऐसा सूत्र है जो आरती टिक्कू के ट्विटर खाते को ब्लॉक करने और विवेक अग्निहोत्री के twitter खाते के सस्पेंशन को आपस में जोड़ता है? यह भी याद रखा जाए कि ट्विटर पर ऐसे कई खाते सक्रिय है जो कश्मीर को लेकर झूठ फैलाते हैं और कश्मीर में जो भारत से प्रेम करने वाली आवाजें हैं, उन्हें दबाने का कार्य करते हैं। आरती टिक्कू ने श्रीनगर में मौजूद अपने भाई की सुरक्षा के विषय में चिंता व्यक्त करते हुए ट्वीट किया था कि
“श्रीनगर में रहने वाले मेरे भाई साहिल टिक्कू को कश्मीर-भारत में बैठे जिहादी आतंकवादियों, पाकिस्तान, ब्रिटेन और अमेरिका में उनके हैंडल से खुलेआम धमकाया जा रहा है। क्या कोई देख रहा है? क्या हम बस ऐसे ही बैठे बैठे अपनी मौत का इंतज़ार करेंगे या फिर कोई कदम उठाया जाएगा?और फिर उन्होंने गृह मंत्रालय को टैग किया था
परन्तु ट्विटर ने उनके इस ट्वीट को ‘घृणित आचरण’ कहा था।
अब इसमें क्या घृणित था, यह समझना बहुत कठिन था। क्या भारत से प्यार करने वाली आवाजों को वहां पर दबाया नहीं जाता? क्या पाकिस्तान का समर्थन करने वाले लोग क्रिकेट में भारत पर पाकिस्तान की जीत का जश्न नहीं मनाते? फिर ऐसा क्या है जो इसमें घृणा फ़ैलाने वाला लगा था?
परन्तु कश्मीर की जो अंतर्राष्ट्रीय घृणा फ़ैलाने वाली लॉबी है, जिसके लिए कश्मीर का अर्थ पकिस्तान का ही दृष्टिकोण है, वह इतनी शक्तिशाली है, कि उसने आरती टिक्कू को ट्विटर से ब्लॉक कर दिया था। हालांकि उससे पहले ट्विटर की ओर से यह कहा गया था कि वह माफी मांगे, परन्तु आरती टिक्कू ने इंकार कर दिया था।
क्या पश्चिम का वामपंथी मीडिया और वामपंथी वर्ग अब इस हद तक कमजोर हो चुका है कि वह भारत से उन आवाजों को सोशल मीडिया पर शांत करा रहा है, जो तथ्यों पर बात करते हैं, जो दरअसल वह तथ्य दिखाते हैं, जो पश्चिम का वह समाज देखना नहीं चाहता, जिसने भारत और हिन्दुओं के विषय में अब तक झूठ ही झूठ फैलाए हैं। तभी वह भारत के इतिहास के तथ्यों को सामने लाने वाले True Indology को भी सस्पेंड कर चुका है।
वह कौन सा डर है अंतर्राष्ट्रीय वामपंथियों को, जो वह भारत के उन लोगों से डर रहे हैं, जिनकी कोई बड़ी राजनीतिक पहचान भी नहीं है? जहाँ एक ओर भारत की कथित “फासीवादी” सरकार के मंत्री यह सगर्व कहते हैं कि उन्होंने एक कोमा तक पाठ्यपुस्तकों में नहीं बदला है तो वही “लिब्ररल” सोशल मीडिया स्वतंत्र आवाजों को दबा रहा है क्योंकि वह असहज करने वाले तथ्य दिखा रहे हैं।
यह याद रखा जाना चाहिए कि बड़े से बड़े एजेंडा पत्रकारों के झूठ को और बड़े से बड़े एजेंडा इतिहासकारों के झूठ को इस सोशल मीडिया के उन निस्वार्थ योद्धाओं ने जनता के सामने रखा है, जिनकी न ही कोई राजनीतिक हैसियत है और न ही कोई बड़ी पहचान।
उनके पास तथ्य हैं, और तथ्यों का समर्थन करती हुई वह पुस्तकें, जिन्हें इस वामपंथी इकोसिस्टम ने कभी बाहर ही नहीं आने दिया था। क्या वामपंथ पुस्तकों से डरता है? क्या वह असहज करने वाले प्रश्नों से डरता है तभी केवल कुछ चुनिन्दा ही अतीत में जाता है, इस्लाम की कट्टरता में सहारा खोजता है और झूठ को सत्य बनाकर प्रस्तुत करता है?
विवेक अग्निहोत्री क्या कदम उठाते हैं यह देखा जाएगा, परन्तु वामपंथियों तक यह सन्देश बार बार जाना चाहिए कि उनका एकतरफा विमर्श अब नहीं चलेगा, विमर्श पर उनका ही एकाधिकार अब बीते समय की बातें हैं,
परन्तु ऐसी घटनाएं इस बात की आवश्यकता पर बल देती है कि इस डिजिटल संसार में भारत का अपना एक डिजिटल मंच हो, जहाँ पर भारत का विमर्श हो, जहाँ पर भारत की बात हो और जहाँ पर अब्राह्मिक रिलिजन के झूठ न हों!