एक पुरानी कहावत है – “गिद्धों के कोसने से गाय नहीं मरती।”
परन्तु मौलाना मदनी जैसे लोग जो अभी भी देश के एक और बंटवारे का दिवास्वप्न देख रहे हैं, उन्हें मजहब के आधार पर 1947 में देश के दो टुकड़े करने के लिए उत्तरदायी व्यक्ति जिन्ना का सच अवश्य जानना चाहिए!
जिन्ना की अचकन एवं टोपी वाली फोटो देखकर भ्रमित न हों। यह वाली फ़ोटो तो पाकिस्तानियों ने पता नहीं कहां से खोजकर निकाली है एवं इसी चित्र का प्रयोग उन्होंने पाताल की ओर जाती पाकिस्तानी मुद्रा और तमाम सदनों, भवनों में किया। अन्यथा जिन्ना ने अपने पूरे जीवन भर कोट- पैंट, विदेशी पहनावे का ही प्रयोग किया था।
पहनावे के मामले में जिन्ना का हठ इस सीमा तक था कि अंतिम समय तक जिन्ना ने परम्परागत पहनावा जैसे कि पायजामा आदि नहीं पहना। शायद ही कोई ऐसा नशा रहा होगा, जिसकी लत जिन्ना को न हो। एक “नान प्रैक्टिसिंग मुस्लिम” होने के नाते जिन्ना का नमाज, अजान से दूर- दूर तक कोई वास्ता नहीं था।
ऐसा भी प्रतीत होता है कि मोहम्मद अली जिन्ना कभी भी जनता से जुड़े हुए नेता नहीं रहे, क्योंकि न तो उन्हें अपनी मातृभाषा गुजराती आती थी और न ही देश की भाषा हिंदी। लेकिन उनके भीतर महत्वाकांक्षा बहुत थी। जिन्ना की इसी महत्वाकांक्षा का अंग्रेजों ने खूब उपयोग किया और मुस्लिम लीग का सहयोग कर “टू नेशन” थ्योरी को हवा दी।
यहां पर यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि कांग्रेस के पास अधिकतर राशि आम लोगों और उद्योगपतियों से आती थी जबकि मुस्लिम लीग को फंड अंग्रेजों और रियासतों से मिलता था। क्योंकि जिन्ना ने रियासतों को यह वादा कर रखा था कि आजादी के बाद भी रियासतों का वर्चस्व कायम रहेगा। वे किसी भी राष्ट्र में शामिल होने या न होने के लिए स्वतंत्र रहेंगी।
महत्वाकांक्षी जिन्ना ने गांधी को कभी “राष्ट्रपिता, महात्मा और बापू” कभी नहीं कहा । जिन्ना के लिए वह सदा “मिस्टर गांधी” ही रहे। चूंकि जिन्ना, गांधी को अधिक महत्व नहीं देते थे एवं उन्हें अंग्रेजों का समर्थन प्राप्त था तो जिन्ना का तुष्टीकरण करने के लिए गांधी ने उन्हें “कायदे आजम” कहना आरम्भ कर दिया तथा जिन्ना की मान मनौवल करने लगे। गांधी जिन्ना को रिझाने के लिए बड़े आत्मीय पत्र लिखते। ईद के दिन उन्हें भोजन भेजते लेकिन जिन्ना उन्हें साधारण औपचारिक ही उत्तर भेजते थे।
पाकिस्तान के निर्माण अर्थात स्वतंत्रता से पूर्व मुसलमानों के बीच भी जिन्ना की कोई खास पहचान नहीं थी । उस समय के आम मुसलमानों के मन में जिन्ना के प्रति कोई श्रद्धा या लगाव नहीं था। लेकिन जब उन्होंने देखा कि गांधी जैसा बड़ा जननेता जिन्ना के आगे- पीछे घूमता रहता है तब उन्हें यह अनुभव हुआ कि अवश्य ही कोई महान व्यक्तित्व होगा।
अब एक और विडंबना देखिए कि आज पाकिस्तान जिस हिस्से पर बना हुआ है , वहां के लोगों ने कभी पाकिस्तान की मांग की ही नहीं । इन क्षेत्रों में आजादी से पूर्व मुस्लिम लीग का शायद ही कोई नामलेवा रहा हो। जिन क्षेत्रों जैसे- भोपाल, हैदराबाद, गुजरात, उत्तर प्रदेश और बिहार आदि के मुसलमान पाकिस्तान बनाए जाने के घोर समर्थक थे और जिन्ना के कट्टर अनुयायी भी थे, वह सभी यहीं रह गए और जिनको पाकिस्तान नहीं चाहिए था, उनको जबरन पाकिस्तान दे दिया गया।
एक और चमत्कार यह कि गांधी के तमाम प्रयासों के बावजूद जब भारत पाकिस्तान का बंटवारा निर्धारित हो गया तो दोनों देशो के मध्य की लाइन खींचने के लिए मिस्टर रेडक्लिफ को बुलाया गया। मिस्टर रेडक्लिफ को अविभाजित भारतवर्ष के भौगोलिक ,राजनीतिक, सामाजिक जीवन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। वह न तो पहले कभी भारत आया था और न “रेडक्लिफ लाइन” थोपने के बाद फिर कभी भारत आया । इसलिए उसने मनमाने ढंग से बँटवारे की लाइन खींची। उसकी बेवकूफी का आलम यह कि धर्म के आधार पर बंट रहे अविभाजित भारत के हिन्दू बहुल लाहौर को पाकिस्तान में शामिल करने के पीछे उसने बचकाना सा तर्क दिया कि चूंकि पाकिस्तान के पास कोई बड़ा शहर नहीं है, इसलिए लाहौर को पाकिस्तान के नक्शे में दर्शाया गया है।
गांधी जी यह कहा करते थे कि पाकिस्तान उनकी लाश पर ही बनेगा। देश का विभाजन न हो , इसके लिए गांधी ने जिन्ना का खूब तुष्टीकरण किया लेकिन जैसे ही 16 अगस्त 1946 को जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शन का ऐलान किया और फिर बंगाल सहित देश के कई हिस्सों में कत्लेआम करके भी दिखा दिया तो गांधी घबरा गए और जिन्ना की इस नाजायज मांग को मान लिया।
जिन्ना ने भारत के टुकड़े करके पाकिस्तान बना लिया। पाकिस्तान रुपए में छप भी गया। जिन्ना ने पाकिस्तान के गवर्नर जनरल , कायदे आजम और बाबा -ए -आजम का भी पद सम्हाला। परन्तु यह जिन्ना का दुर्भाग्य ही था कि उनके अपने सपनों के देश पाकिस्तान में क्षय रोग के मरीज जिन्ना को कोई बड़ा अस्पताल ही नहीं मिला। बीमार जिन्ना की देखभाल उनकी बहन द्वारा उनके घर में ही की जा रही थी। जब जिन्ना की तबीयत कुछ ज्यादा ही बिगड़ गई तो उनकी बहन ने पाकिस्तान के तत्कालीन हुक्मरानों से एंबुलेंस की मांग की ताकि जिन्ना को अस्पताल पहुंचाया जा सके। तब पाकिस्तान के हुक्मरानों ने यह कहकर जिन्ना के घर एंबुलेंस भिजवाई कि “किसी मरीज” को अस्पताल पहुंचाना है ।
और
जिन्ना के पापों का परिणाम देखिये की उस एंबुलेंस का डीजल रास्ते में ही खत्म हो गया (या कर दिया गया) और जिन्ना रास्ते में ही तड़प -तड़प कर मर गए। उनका शव घंटों सड़क पर यूं ही पड़ा रहा।
जिस इस्लामी मुल्क पाकिस्तान की मांग के लिए जिन्ना ने लाखों निर्दोष लोगों का कत्ल कराया और करोड़ों परिवारों को बेसहारा होने पर मजबूर कर दिया और जिन्ना की बोई जहरीली फसल का शिकार अभी तक लोग हो रहे हैं, उसी नापाक पाकिस्तान के बन जाने पर उन्हें एक अदद डीजल टैंक से भरी हुई एंबुलेंस भी नसीब नहीं हुई। वह लावारिसों की मौत मर गए।
इसे ही कर्मों का फल कहा गया है!
(विनय सिंह बैस)
स्रोत: https://www.dawn.com/news/826902/excerpt-quaid-i-azam-and-9-11
https://zeenews.india.com/home/jinnahs-body-was-taken-away-in-a-faulty-ambulance_325093.html