धार्मिक और सांस्कृतिक ग्रंथों का अनुवाद कितना कठिन और कितनी परतों में होता है, वह आसानी से समझ नहीं आता। किसी भी देश की धार्मिक आत्मा को समझना और उससे जुडी संस्कृति को समझना बहुत कठिन होता है, यद्यपि हम अनुवाद के माध्यम से थोडा बहुत जान सकते हैं, परन्तु बहुत ज्यादा नहीं क्योंकि अनुवादक उतना भीतर धंस पाता है या नहीं,यह उसकी क्षमता पर निर्भर करता है। एक ग्रन्थ है, जिसे सर्वाधिक कोसा जाता है, और जिसके अनेकोनेक अनुवाद हुए हैं, उसीके एक श्लोक के उदाहरण से समझते हैं, कि कैसे धार्मिक ग्रन्थों के अनुवाद की तहों में जाना महत्वपूर्ण होता है:
मनुस्मृति प्रथम अध्याय श्लोक संख्या 15
महान्तमेव चाऽऽत्मानं सर्वाणि त्रिगुणानि च,
विषयाणा गृहीतुणि शनै: पञ्चेन्द्रियाणि च
इसका बहलर द्वारा किए गए अनुवाद इस प्रकार है:
Moreover, the great one, the soul, and all (products) affected by the three qualities, and, in their order, the five organs which perceive the objects of sensation.
और विलियम जोन्स ने किया है
And, before them both, he produced the great principles of the soul or first expression of the divine idea; and all vital forms endued with the three qualities of goodness, passion and darkness; and the five perceptions of sense and five organs of sensation.
इसका हिंदी में अनुवाद प्रोफ़ेसर सुरेन्द्र कुमार ने इस प्रकार किया है:
और फिर उससे (सर्वाणि त्रिगुणानि) सब त्रिगुणात्मक पांच तन्मात्राओं – शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध को (च) तथा (आत्मानम् और महान्तम) आत्मोपारक अथवा निरंतर गमनशील मन इन्द्रिय को (च) और (विषयाणा गृहीतुणि) विषयों को ग्रहण करने वाली (पञ्चेन्द्रियाणि) दोनों वर्गों की पाँचों ज्ञानेन्द्रियों – आँख, नाक, कान, जिह्वा, त्वचा और चकार से पांच कर्मेन्द्रियों – हाथ, पैर, वाक्, उपस्थ, पायु को (शनै:) यथाक्रम से उत्पन्न कर दिया।
बहलर द्वारा किया गया अनुवाद देखेंगे तो कुछ भी समझ नहीं आएगा क्योंकि कौन से त्रिगुण हैं और क्या ज्ञानेन्द्रियाँ हैं, और यह गुण क्यों महत्वपूर्ण हैं, पांच ज्ञानेन्द्रियाँ किस लिए महत्वपूर्ण हैं, विषय क्या हैं? इसमें कुछ भी स्पष्ट नहीं किया गया है। जबकि विलियम जोन्स द्वारा किया गया अनुवाद जब देखते हैं तो हम पाते हैं कि वह थोड़ा विस्तारित है और त्रिगुण और पाँचों ज्ञानेन्द्रियों एवं पांच कर्मेन्द्रियों के विषय में स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। उन्होंने त्रिगुणानि को सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण अर्थ लिया है एवं ज्ञानेन्द्रियों और पांच कर्मेन्द्रियों को बताया है। किन्तु वह यहाँ पर उन पाँचों की और व्याख्या करने से चूक गए हैं। यद्यपि जिसे ज्ञान होगा वह समझ जाएगा।
और जब इसका हिंदी में प्रोफ़ेसर सुरेन्द्र कुमार ने और व्याख्यापूर्ण अनुवाद किया है। उन्होंने सर्वाणि त्रिगुणानि को सांख्य दर्शन के उत्पत्ति सिद्धांत से जोड़ा है। वह लिखते हैं सत्व (शुद्ध), रज (मध्य) और तम (जड़ता), तीन वस्तु मिलकर जो एक संघात है, उसका नाम प्रकृति है। उससे महत्तत्व = बुद्धि, उससे अहंकार, उससे पांच तन्मात्रा, सूक्ष्म भूत और दश इन्द्रियाँ तथा ग्यारहवां मन, पांच तन्मात्राओं से वृधिव्यादि पांच भूत ये चौबीस और पच्चीसवां पुरुष अर्थात जीव और परमेश्वर हैं।
प्रथम अध्याय सृष्टि की उत्पत्ति से सम्बन्धित है।
धार्मिक ग्रंथों के निकटतम समतुल्य अनुवाद पढ़ने का प्रयास होना चाहिए, क्योंकि यही हमारे विचारों और सोच का निर्माण करते हैं। बहलर द्वारा किया गया अनुवाद काफी अधूरा अनुवाद है और यदि इस अनुवाद को स्रोत के रूप में लिया जाएगा तो इस श्लोक का अर्थ जरा भी समझ नहीं आएगा। और जब आधे अधूरे अनुवाद को ही स्रोत या रीसोर्स के रूप में लिया जाएगा तो कैसे वह सम्पूर्ण अर्थ को परिलक्षित करेगा, यह भी एक समस्या है।
जैसे ऊपर के ही श्लोक के अनुवाद में बहलर ने three qualities शब्दों का प्रयोग किया है। परन्तु त्रिगुण क्या वास्तव में क्वालिटी हैं या क्वालिटी से बढ़कर बहुत कुछ? और वह तीन गुण यदि हैं तो क्या हैं? इस प्रकार के सतही अनुवाद से मूल ग्रन्थ की हानि तो होती ही है, साथ ही आने वाली पीढ़ियों के लिए सतही ग्रन्थ ही स्रोत के रूप में उपलब्ध रहते हैं।
परन्तु यह संयोग नहीं हो सकता है कि हर स्थान पर बहलर का ही अनुवाद मनुस्मृति के अनुवाद के रूप में उपलब्ध है एवं व्याख्यापरक अनुवाद उपलब्ध नहीं है।
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