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Tuesday, June 6, 2023

समय हिन्दू धर्म के प्रतीकों के गर्वीले प्रदर्शन का हैं

कल मणिपुर की मीराबाई चानू द्वारा टोक्यो ओलंपिक्स में भारोत्तोलन में रजत पदक के जीतते ही भारत पदक तालिका में आ गया। पहली बार ऐसा हुआ था कि भारत पहले ही दिन पदक तालिका में आया हो, इसलिए पूरे भारत में हर्ष की लहर दौड़ गयी। इस हर्ष के कई कारण थे। एक तो हमारी स्त्री शक्ति ऐसे खेल में पदक लाई, जो वास्तव में शक्ति का प्रतीक है। वेट लिफ्टिंग अर्थात भारोत्तोलन! यह मीराबाई मध्य कालीन मीराबाई जैसी ही मजबूत है, जिसने अपनी भक्ति के साथ ही सफलता की कहानी रची।

मीराबाई चानू के पदक जीतते ही मीराबाई के संघर्ष की कहानियाँ तो तैरने ही लगीं, मगर साथ ही वाम पोषित हिन्दू विरोधी फेमिनिस्ट भी अपनी कारीगरी से बाज नहीं आईं, जब उन्हें मीराबाई चानू में कुछ भी ऐसा नहीं लगा जिससे वह उसे हिन्दू धर्म विरोधी, और कथित प्रगतिशील साबित कर सकें, तो वह यह कहने लगीं कि भक्तों को हनुमान की मूर्ति दिख रही है तो हमें उसकी यात्रा कि उसने कितनी मेहनत की होगी। क्या कोई पुरुष भी बिना श्रम के जीत सकता है? यह इन फेमिनिज्म का झंडा उठाने वाली इस्लाम परस्त औरतों से पूछना चाहिए!  और क्या यह इस्लाम परस्त फेमिनिस्ट यह बता पाएंगी कि क्या इस मुस्कान के पीछे जो श्रम है, उसे मात्र इसलिए नहीं मानेंगी कि वह पुरुषों का श्रम है? हद्द है यह ! भारत में वामपोषित लाल फेमिनिज्म केवल इस मुस्कान को तोड़ने के लिए कार्य करता है!

दरअसल मीराबाई चानू के पदक जीतते ही उनकी हनुमान और शिव जी की भक्ति की कहानी सोशल मीडिया पर प्रसारित होने लगी थी। और लोग इस बात से हर्षित होने लगे थे कि जिस पूर्वोत्तर को एक षड्यंत्र के चलते हिन्दुओं से दूर किया गया था, वहां पर भी मीराबाई नाम ही नहीं है बल्कि साथ ही वह हनुमान जी और शिव जी की भक्त भी है।

कई लोगों ने इस बात को इंगित भी किया कि मीराबाई चानू का नाम ही टुकड़े टुकड़े गैंग के लिए किसी सदमे से कम नहीं है क्योंकि मध्य काल की कृष्ण भक्ति में लीन कवयित्री के नाम पर भारत के पूर्वोत्तर में भी किसी बालिका का नाम ही नहीं रखा गया बल्कि उसमें वही भक्ति है, जो मीराबाई में थी। यह बात जैसे कई लोगों के लिए आघात से कम नहीं थी, और यदि किसी ऐसी लड़की ने कोई पदक जीता होता जिसने हिजाब आदि पहना होता तो उसकी पहचान को भी ग्लोरिफाई कर दिया होता।

जैसा हम पहले भी देख चुके हैं। लिबरल समाज दरअसल सबसे पिछड़ा और कट्टर समाज है, जिसके लिए उसका एजेंडा और विशेषकर हिन्दू विरोधी एजेंडा सबसे महत्वपूर्ण होता है। जैसे ही वह किसी हिन्दू पहचान वाले व्यक्ति को देखते हैं जिसने अपनी हिन्दू होने की पहचान को अपने आचरण में ढाल रखा है। वैसे तो इस्लाम से डरने वाले लिब्रल्स की यह मानसिकता कई वर्षों से चली आ रही है, परन्तु अब यह अपने चरम पर है और अब यह नेताओं से उतर कर आम लोगों पर आ गया है।

हिन्दुफोबिया का सबसे घृणित रूप अब यह लोग देश के हिन्दू युवाओं पर दिखा रहे हैं। जैसे ऑक्सफ़ोर्ड में रश्मि सामंत पर दिखाया था, और फरवरी से चलती हुई रश्मि सामंत की लड़ाई अब आकर समाप्त होती दिख रही है जिसमें ऑक्सफोर्ड की ओर से यह माना गया कि रश्मि सामंत एक घृणा का शिकार हुई।

उसके बाद नासा की इंटर्न की उस तस्वीर पर बवाल मच गया, जिसमें भारत की ओर से चुनी हुई लड़की ने अपनी डेस्क पर हिन्दू भगवान की मूर्तियाँ रखी हुई थीं। उस लड़की प्रतिमा रॉय के लिए घृणा का आलम इतना था कि नासा तक को ट्वीट हो गए।

https://twitter.com/MissionAmbedkar/status/1414079976622546956

हालांकि बाद में भारत से ही नहीं बाहर से भी प्रतिमा रॉय को हिन्दू पहचान के लिए समर्थन मिला और लोग खुलकर इस हिन्दुफोबिया के विरुद्ध आए:

रश्मि सामंत से लेकर मीराबाई चानू तक की यात्रा में कुछ बातें स्पष्ट निकलकर आ रही हैं। उसमें सबसे महत्वपूर्ण है कि अब युवा अपनी हिन्दू पहचान, हिन्दू प्रतीकों के प्रदर्शन और वह किसकी पूजा करते हैं, उससे भय नहीं खा रहे हैं और वह हिन्दू फोबिया में फंसने के स्थान पर गर्व से यह स्वीकारोक्ति कर रहे हैं कि वह अपने भगवान की पूजा करते हैं, मानते हैं उन्हें और पूजते हैं।

मीराबाई चानू हनुमान भक्त हैं और उन्होंने इसे छिपाया नहीं। और पुरुष विरोधी फेमिनिस्ट कैसे मीराबाई चानू को उस फेमिनिज्म के ढाँचे में रख सकती हैं, जिसका मूल प्रारूप ही हिन्दू और पुरुष विरोधी है। क्या मीराबाई चानू बिना पुरुषों के सहयोग के आगे बढ़ सकती थीं? क्या उनकी सफलता में उनके कोच का योगदान नहीं होगा? क्या उनके लिए भारत के पुरुषों ने प्रार्थना नहीं की होगी?

सफलताओं की यह नई कहानियां फेक फेमिनिज्म की काट हैं, यह सनातन के प्रतीकों के प्रदर्शन का समय है। और झूठे विमर्श के समाप्त होने का समय है।

मीराबाई चानू का रजत पदक सनातन प्रतीकों को आचरण में धारण करने का स्वर्णिम प्रतीक है। वह समय अभी और आएगा जब यह कुंठित इस्लाम परस्त वाम पोषित फेमिनिज्म टुकड़े टुकड़े होकर इस देश से भागेगा, जैसा पूरे विश्व से भाग रहा है!


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