भारत एकमात्र ऐसा देश है, जिसके पास अथाह नायक होते हुए भी फिल्मों आदि के कलाकारों में अधिक नायक खोजे जाते हैं! भारत एकमात्र ऐसा देश है, जहाँ पर देश केलिए बलिदान हुए वीरों की कहानियां अनसुनी हैं, नहीं पता है कि कितनों ने बलिदान दिए थे और कितनों ने अपने सपने समर्पित कर दिए थे! नहीं पता है कि कितने लोगों ने रक्तस्नान किया था? भगत सिंह ने असेम्बली में बम फेंका था, यह सभी को स्मरण है, परन्तु बम किसने बनाया था, और फिर उनका क्या हुआ, यह कम ही लोगों को ज्ञात है!
आइये जानते हैं कि आज का दिन किसलिए इतना महत्वपूर्ण है और हमने क्या भुला दिया है? जब भी स्वतंत्रता संग्राम के वीरों की बात होती है तो कुछ गिने चुने पर ही आकर लॉट टिक जाते हैं! भगत सिंह, राजगुरु, चंद्रशेखर आजाद, जैसे वीरों की बात होती है, मगर जतीन्द्र दास? जतीन्द्र दास क्यों स्मृति से विलुप्त हैं? जतीन्द्र दास थे कौन, सबसे पहले तो लोगों को यह भी याद नहीं है!
भगत सिंह के लिए बम बनाने वाले जतीन्द्र नाथ दास का जन्म आज ही के दिन अर्थात 27 अक्टूबर 1904 को कोलकता में हुआ था! उनका जीवन मातृविहीन रहा क्योंकि जब वह नौ वर्ष के थे तभी उनकी माँ का देहांत हो गया था!
उनके पिता ने उनका पालन पोषण किया और पढ़ाई के दौरान ही गांधी जी ने असहयोग आन्दोलन आरम्भ किया और देश सेवा की भावना लेकर वह भी आन्दोलन में कूद पड़े थे और फिर आरम्भ हो गया था उनका आन्दोलन वाला जीवन! वह अपने जीवन की राह चुन चुके थे! उन्हें इस आन्दोलन में भाग लेने के चलते अंग्रेजों ने जेल में डाल दिया था!
मगर वह नहीं झुके और जब आन्दोलन धीमा पड़ा तो उन्हें भी शेष क्रांतिकारियों के साथ छोड़ दिया गया! जतीन्द्र दास को राह मिल गयी थी! उनके हृदय में अपनी मातृभूमि को स्वतंत्रता दिलाने के लिए अथाह स्वप्न थे! असहयोग आन्दोलन की विफलता के बाद उनके स्वप्न टूटने लगे थे! आम क्रांतिकारियों की भांति उन्हें भी इस आन्दोलन का वापस लेना समझ नहीं आय था! उसके बाद शचीन्द्रनाथ सान्याल के साथ वह जुड़े! उन्होंने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की थी और जतीन्द्र नाथ उसमें सम्मिलित हो गए!
वर्ष 1928 में उनकी भेंट भगत सिंह से हुई और फिर भगत सिंह ने उन्हें हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के लिए बम बनाने के लिए कहा! उसके बाद की कहानी लोगों को पता ही है कि कैसे भगत सिंह को हिरासत में लिया गया!
उसके बाद जतीन्द्र नाथ सहित कई और क्रांतिकारियों को भी हिरासत में लिया गया! जेल में उन्हें बहुत सड़ा गला खाना दिया जाता था! भगत सिंह, जतीन्द्र दास ने साफ़ जगह, अच्छे भोजन, पढने के लिए अखबार एवं किताबों के लिए भूख हड़ताल आरम्भ कर दी!
यह भूख हड़ताल ऐसी हुई कि इसकी चर्चा हर जगह होने लगी! जेल के अधिकारियों ने उनकी भूख हड़ताल तुड़वाने का निर्णय लिया! उनके शरीर में जबरन रबड़ की नली से दूध डालने का प्रयास किया, इस प्रयास में दूध उनके फेफड़ों में चला गया!
वह पीड़ा से भर उठे! मगर उन्होंने हार नहीं मानी! उनकी स्थिति बिगड़ती चली गयी! जतीन्द्र दास की भूख हड़ताल की कहानियाँ बाहर जाने लगी थीं! लोगों के दिल में आक्रोश उत्पन्न हो रहा था! यह ऐसा आक्रोश था, जिसके विषय में सरकार को भी पता था! और एक ऐसे समय में जब न ही सोशल मीडिया था और न ही मीडिया, उस समय जतीन्द्र दास के इस बलिदान को लोग अनुभव कर रहे थे!
जतीन्द्र दास ने 13 सितम्बर 1929 को अंतिम सांस ली थी, और वह भूख हड़ताल का 63वां दिन था! उनके निधन की सूचना ने लोगों के क्रोध को भडका दिया! उनकी अंतिम यात्रा का एक वीडियो भी मीडिया में है!
तत्कालीन रिपोर्ट्स के अनुसार लगभग पांच लाख लोगों ने उनके अंतिम संस्कार में भाग लिया था! हालांकि स्रोत के विषय में पता नहीं था, मगर कहा जाता है कि इसे बोर्स्टल जेल के प्रवेश पर खींचा गया था! ट्रिब्यून के अनुसार जतीन्द्र दास के अंतिम समय में साथ रहे उनके भाई ने एक पुस्तक प्रोफाइल ऑफ मार्टायर जतिन दास में लिखा था कि यह तस्वीर 13 सितम्बर को जेल के प्रवेश द्वार पर ली गयी थी!
चंडीगढ़ आधारित हरीश जैन, जिन्होनें “हैंगिंग ऑफ भगत सिंह” क्रांतिकारी घटनाओं की पूरी श्रृंखला में से एक का सम्पादन किया है, उन्होंने कहा कि यह जतिन दास का बलिदान और उनकी मृत्यु की प्रतिक्रिया का ही परिणाम था कि अंग्रेजों ने किसी भी राजनीतिक कैदियों के शव उनके परिजनों को सौंपने से इनकार कर दिया। “इसलिए भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के शवों का सतलुज के तट पर आधी रात को गुप्त रूप से अंतिम संस्कार किया गया।”
आज जब जतीन्द्र दास के विषय में बच्चों को, देश के युवाओं को बताना चाहिए, उस समय देश में केवल एक परिवार के त्याग और बलिदान का ही उल्लेख होता है! ऐसा लगता है जैसे स्वतंत्रता मात्र गांधी, एवं नेहरू परिवार के कारण ही प्राप्त हुई थी! जतीन्द्र दास जिनकी अंतिम यात्रा में लाहौर से लेकर कलकत्ते तक लोग श्रद्धांजलि देने आए, जिनके अंतिम दर्शन के लिए कानपुर रेलवे स्टेशन पर जवाहर लाल नेहरु एवं गणेश शंकर विद्यार्थी के नेतृत्व में लाखों लोग उमड़ पड़े थे और जिन्हें हावड़ा रेलवे स्टेशन पर सुभाष चन्द्र बोस ने नेतृत्व में पचास हजार लोगों ने श्रद्धांजलि दी थी, उन जैसे युवाओं की कहानियों को विमर्श का हिस्सा ही बनाया नहीं जाता है!
जतीन्द्र दास की लोकप्रियता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके निधन के समाचार से सड़के लोगों से पट गयी थीं और लोग बस उनके अंतिम दर्शन करना चाहते थे!
परन्तु आज ऐसी कहानियों के लिए विशेष दिन की प्रतीक्षा की जाती है, वह सहज विमर्श का हिस्सा नहीं हैं!