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Friday, April 19, 2024

जालौर मटकी कांड: बच्चे की असमय मृत्यु में नहीं था छुआछूत का कोई कोण, चार्जशीट में मटकी का उल्लेख नहीं!

अगस्त के महीने में राजस्थान का जालौर जिला अचानक से ही विमर्श का केंद्र बन गया था और तरह तरह के प्रदर्शनों का केंद्र बन गया था। ऐसा लगने लगा था कि जैसे भारत में सवर्ण हिन्दू अभी तक छुआछूत के माध्यम से भेदभाव कर रहे हैं। दलितों पर अत्याचार होता है और दलित, कथित रूप से दूसरे वर्ण के लोगों के हाथों मारे जा रहे हैं।

जालौर में एक बच्चे की एक अपने ही शिक्षक के हाथों थप्पड़ से मृत्यु हो गयी थी। यह घटना दुखद थी एवं हर कोई इस घटना से द्रवित हो उठा था। परन्तु इस घटना के उपरांत जो हुआ था, वह और भी अधिक भयानक था। वह ऐसा था जैसे कि एजेंडावादियों को अपना एक नया एजेंडा मिल गया हो, नई योजना भारत तोड़ने की मिल गयी हो! लोग टूट पड़े और एजेंडा बनाया जाने लगा कि  बच्चे ने चूंकि सवर्ण शिक्षक के मटके से पानी पी लिया था, इसलिए बच्चे को इतना मारा कि वह मर गया। जैसे ही यह समाचार आया, वैसे ही हर जगह हंगामा हो गया क्योंकि यह मामला था ही इतना गंभीर कि इस पर हाहाकार मचना ही था। यह कहा गया कि छैल सिंह ने एक बच्चे को इतना मारा कि वह बेचारा मर गया। और इसे लेकर जाहिर है कि राजनीति भी तेज हो गयी।

और पाठकों को स्मरण होगा कि कैसे एजेंडे वाली कविताएँ बनने लगी थीं। लोगों को भड़काया जाने लगा था।

हालांकि सोशल मीडिया पर इसका विरोध हुआ था और फिर यह बात सामने आई थी कि वहां पर कोई मटकी थी नहीं। एक टंकी है, जिससे पानी लिया जाता है। यहाँ तक कि द प्रिंट तक की रिपोर्ट ने यह लिखा था कि पूरे गाँव के लोग, फिर चाहे वह किसी भी जाति के रहे हों, मेघवाल परिवार के लोगों के दावे का खंडन कर रहे थे। पिछले छ वर्षों से वहीं पास में ही एक प्राइवेट स्कूल चला रहे सुखराज झिंझर ने कहा कि छैल सिंह पिछले 18 वर्षों से यह स्कूल बिना किसी ऐसी घटना एके चला रहे हैं। उन्होंने कहा कि

मैं छैल सिंह को अच्छी तरह जानता हूं; हमारे स्कूल एक दूसरे के ठीक बगल में हैं, इसलिए वह हमसे मिलने आते रहते हैं। हम भाइयों की तरह रहते हैं,” झिंगर, जो खुद एक दलित भी हैं, ने कहा कि सिंह उनके साथ खाते-पीते हैं। उन्होंने कहा कि वह भी उसी टंकी से पानी पीते हैं!

कृपाचारी पब्लिक स्कूल नाम से एक निजी स्कूल चलाने वाले महेंद्र कुमार झिंगर ने यह भी कहा कि वह छैल सिंह को कई सालों से जानते हैं और जातिगत भेदभाव की घटना कभी नहीं हुई।

मृतक तीन साल से स्कूल में पढ़ रहा था, उन्होंने कहा, ऐसी कोई घटना नहीं हुई है।

झिंगर के अनुसार, स्कूल की फीस 3,200 रुपये से लेकर 3,800 रुपये प्रति वर्ष है।

यह उस समय की रिपोर्टिंग थी। अब जो निकल कर आ रहा है, उसके अनुसार एसआईटी ने शिक्षक को विद्यार्थी की हत्या के लिए तो दोषी ठहराया है, परन्तु उसमें मटकी से पानी पीने पर पिटाई का कोई भी उल्लेख नहीं है।

जबकि जब आन्दोलन चल रहे थे तो दलित संगठनों ने इस हद तक इसे छुआछूत का मामला बना दिया था कि गुजरात का एक संगठन तो पेंतिंव वाली विशाल मटकी लेकर ही वहां आ गया था।

भास्कर के अनुसार पुलिस ने इंद्र मेघवाल के स्कूल के ही 4 छात्रों का १६१ और १६४ में बयान दर्ज किया था। चार्जशीट में यह लिखा है कि इन छात्रों ने स्कूल में मटकी नहीं होने की बात कहते हुए बताया था कि सभी बच्चे टंकी से पानी पीते हैं। दो छात्रों के बीच झगड़े के कारण थप्पड़ मारने की बात कही।

शिक्षकों व ग्रामीणों ने भी पुलिस बयान में बताया कि स्कूल में कभी मटकी नहीं थी। छैल सिंह और इंद्र के पिता के बीच हुए राजीनामे में शामिल 2 लोगों ने भी बयान में कहा कि उस दिन मटकी को लेकर थप्पड़ मारने वाली बात हमारे सामने नहीं आई,

जबकि इंद्र के पिता देवाराम, चाचा किशोर, दादा पोलाराम, भाई नरेश, मां पवनी देवी ने पुलिस बयान में मटकी की बात बताई थी।

चूंकि बच्चे को पहले से ही समस्या थी तो सिविल अस्पताल के डॉ हर्षद ने जांच में बताया कि विसरा रिपोर्ट के अनुसार बच्चे को लम्बे समय से गंभीर बीमारी के लक्षण थे। चोट से हृदय गति रुक गयी। पुलिस का कहना है चूंकि 20 जुलाई को थप्पड़ मारने के बाद इंद्र कुमार की मौत तक उसका अस्पताल में इलाज चला, इसलिए चालान धारा ३०२ के अंतर्गत पेश किया है।

इसका अर्थ यह है कि आरोपी शिक्षक को ह्त्या का आरोपी अवश्य बनाया है, परन्तु शिक्षक ने किसी मटकी से पानी पीने पर, या उनकी भाषा में कहें तो सवर्ण मटकी से पानी पीने पर नहीं मारा था, बल्कि दो बच्चों की लड़ाई में थप्पड़ मारा था।

परन्तु एजेंडा फैलाने वाले समाज में विद्वेष फ़ैलाने के लिए हर सीमा तक गए थे और वर्ग विशेष के लिए मात्र अपनी राजनीति के लिए घृणा फैला रहे थे।  

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