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Tuesday, May 30, 2023

क्या वास्तव में यूरोप की हो रही है रहस्यमयी मृत्यु?

यह शीर्षक देखने में अटपटा लग सकता है, परन्तु ऐसा नहीं है। डगलस मुर्रे की पुस्तक The strange death of Europe यूरोप की इस मृत्यु की कहानी कह रही है। इसमें वह इंट्रोडक्शन अर्थात प्रस्तावना में ही कह देते हैं कि यूरोप आत्महत्या कर रहा है, या कम से कम इसके नेताओं ने आत्महत्या करने का निर्णय ले लिया है, अब यूरोप के नागरिक किस दिशा में जाते हैं, यह उन पर निर्भर करता है।

इस पुस्तक में मध्य पूर्व से आने वाले इस्लामी शरणार्थियों के कारण उत्पन्न हुए सांस्कृतिक खतरों के विषय में बात की गयी है। इसमें वह यूरोप की इस मौत के विषय में आरम्भ की कहानी लिखते हुए कहते हैं कि वर्ष 2002 में “इस बात की कल्पना कीजिये कि जब किसी ने यह कहा होता कि “श्वेत ब्रिटेन वासी इस दशक के अंत तक अपनी ही राजधानी में अल्पसंख्यक हो जाएँगे और मुस्लिम जनसँख्या अगले दस वर्षों में दोगुनी हो जाएगी।”

ऐसे वक्तव्यों का स्वागत कैसे किया जाता? चेतावनी देने वाले या फिर सजग करने वाले का नाम दिया जा सकता था, या फिर “रेसिस्ट” कहा जा सकता था या फिर सही कहा जाए तो “इस्लामोफोब” कहा जाता। सुरक्षित रूप से कहा जा सकता है कि इस प्रकार के किसी भी डेटा का स्वागत तो होता नहीं!”

वह लिखते हैं कि वर्ष 2002 में टाइम्स के एक पत्रकार ने आने वाले शरणार्थियों के विषय में कुछ टिप्पणियाँ की थीं, जिन्हें तत्काल गृह सचिव डेविड ब्लंकेट ने संसदीय विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए “फासीवाद के समान” बता दिया था।

इसी पुस्तक में आगे लिखा है कि श्वेत ईसाइयत के अनुयायी एकदम से कम हुए, और यह गिरावट मुस्लिम जनसँख्या के बढ़ने से आई। मास माइग्रेशन अर्थात जो बहुत बड़ी संख्या में यूरोप में लोग आए उनके कारण मुस्लिम जनसँख्या दोगुनी हो गयी। 2001 और 2011 के बीच इंग्लैण्ड और वेल्स में मुस्लिम जनसंख्या 1।5 मिलियन से बढ़कर 2।7 मिलियन हो गयी। जहाँ यह आधिकारिक संख्या थी, तो वहीं अवैध प्रवासियों ने इस संख्या में और वृद्धि ही की थी।

इस पुस्तक में यह भी बताया गया है कि कैसे इन प्रवासियों के बीच अपराध बढ़ रहे हैं।

इसी पुस्तक में पृष्ठ 26 पर लेखक ने लिखा है कि 2011 की जनगणना के आंकड़े जारी किए जाने से पहले, नौ मुस्लिम पुरुषों के एक गिरोह को 11 से 15 वर्ष उम्र के बीच के बच्चों की यौन तस्करी के आरोप में लंदन में ओल्ड बैली में दोषी पाया गया और उन्हें दंड दिया गया। इस अवसर पर एक 11 साल की बच्ची को उसके मालिक के नाम के आरंभिक अक्षर के रूप में ब्रांडेड कर दिया गया था। इन नौ मुस्लिम युवकों में 7 पाकिस्तानी मूल के थे और दो उत्तरी अमेरिका के थे। वह कहते हैं कि इसे गुलाम के रूप में ही माना जा सकता है। न्यायालय ने सुना कि मुहम्मद ने उसे अपनी जागीर के रूप में प्रस्तुत किया था, कि लोग उसे ऐसे ही जानें। और वह कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि यह सब सऊदी या पाकिस्तान में हुआ था, और न ही यह किसी उत्तरी जिले में हुआ था, कि जहाँ पर लोग भूल जाएं, बल्कि यह वर्ष 2004 और 2012 के बीच ऑक्सफ़ोर्डशायर में घटी हुई घटनाएं थीं।

फिर वह कहते हैं कि इस बात पर कोई भी बहस नहीं कर सकता है कि गैंग रेप या बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध इन शरणार्थियों के कारण बढे हैं, परन्तु जिस तरीके से इन अपराधों को किया गया, वह कुछ विशेष तहजीबी विचारों और दृष्टिकोण को बताता है जो कुछ शरणार्थी लेकर आए थे। इनमें महिलाओं के बारे में विचार और विशेषकर दूसरे धर्मों की महिलाओं, दूसरी नस्लों और यौनिक अल्पसंख्यकों के विषय में विचार सम्मिलित हैं, जो “पूर्व मध्यकालीन थे”

इस पुस्तक में वह मीडिया के इस दोगले रवैये पर भी प्रश्न उठाते हैं कि जैसे ही बलात्कार की घटनाएं सामने आने लगीं और यह स्पष्ट होने लगा कि आखिर में कौन लोग इन सबके पीछे हैं, वह कौन सी विचारधारा है, जो यह सब यौन अपराध करा रही है, तो उसे बचाने का हर सम्भव प्रयास किया गया। उन्होंने समाचारों को वह रुख देना शुरू कर दिया, जिसके कारण जनता किसी भी निष्कर्ष पर न पहुँच पाए।

उन्होंने उन नौ मुस्लिम अपराधियों को “एशियाई” कहा। जबकि सच्चाई यही थी कि पीड़ितों को इसी लिए अपना शिकार बनाया गया था कि वह गैर मुस्लिम थे।

डगलस बार बार इसी पर टिप्पणी करते हैं, कि जिस प्रकार से यूरोप की सांस्कृतिक पहचान खो रही है, उस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।  और यह दावा किया जा रहा है कि “ब्रिटेन तो नगर ही प्रवासियों का है, उसकी अपनी पहचान कुछ नहीं है। उन्होंने रोबर्ट विन्डर की पुस्तक के हवाले से लिखा कि सांस्कृतिक पहचान खोने का तर्क यह कहकर कम किया जा रहा है कि हम सभी तो यहाँ पर प्रवासी है, बस यही शर्त है कि हमें यह देखना है कि हम कितना पीछे जा सकते हैं”

वह जिस खतरे की बात करते हैं, बीते कुछ वर्षों में यूरोप से ऐसे समाचार आए हैं, उन्होंने यूरोप की इस स्थिति की पुष्टि की है। यह पुस्तक अरब की क्रान्ति के बाद यूरोप में आने वाली शरणार्थियों की भीड़ और उनके कई उद्देश्यों के विषय में भी बताती है। कि कैसे लोग आए, रिश्वत कितनी दी गयी और उनके आने के वास्तव में क्या उद्देश्य थे।

पिछले वर्ष हमने स्वीडन में ऐसे दंगे देखे थे, जिनमें शरणार्थियों ने अल्लाहु अकबर कहकर हिंसा की थी।

पृष्ठ 77 पर बहुत ही रोचक बात कही गयी है कि शरण लेने वाले अफगानी नागरिक सीरियाई मुस्लिमों से गुस्सा हैं। उनका कहना  था कि “सीरिया में तो केवल पांच वर्षों से ही समस्या है, हम तो पंद्रह वर्षों से यह झेल रहे हैं!”

एक अफगानी युवक ने कहा था कि “अफगानिस्तान में पैसे तो हैं परन्तु सुरक्षा नहीं है!”

यूरोप की इस रहस्यमयी मौत (सांस्कृतिक मृत्यु) के अंश हमें दिख रहे हैं, परन्तु यह भी दिख रहा है कि फ्रांस जैसे देशों में इस्लामी कट्टरता पर कदम भी उठाए जा रहे हैं। जहर उगलने वाली मस्जिदों को बंद किया जा रहा है।

इस पुस्तक में जर्मनी के नागरिक समाज के बदलते व्यवहार पर भी प्रकाश डाला गया है कि कैसे जर्मनी के नागरिकों की कम संतानोपत्ति दर और शरणार्थियों की अधिक संतानोत्पत्ति की दर के कारण इतना परिवर्तन आ रहा है।

वर्ष 2016 में जर्मनी की एक वामपंथी राजनेता ने अपने ही बलात्कार की सच्चाई को छिपा लिया था और पुलिस को यह नहीं बताया था कि उसका बलात्कार किन लोगों ने किया है। उसने कहा था कि इससे शरणार्थियों के विषय में बुरी धारणा बनती।

https://www.dailymail.co.uk/news/article-3675154/Left-wing-German-politician-raped-migrants-admits-LIED-police-attackers-nationality-did-not-want-encourage-racism.html

यह देखना रोचक होगा कि मध्य पूर्व के शरणार्थियों के लिए अपने दरवाजे खोलने वाला इस मजहबी सांस्कृतिक हमले से कब तक बचा रहेगा! या उसी प्रकार मरेगा, जैसा डगलस ने लिख दिया है!

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