spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
23.2 C
Sringeri
Saturday, April 20, 2024

तरुण तेजपाल की यौन शोषण के मामले में रिहाई: महिलाओं के लिए और लम्बी लड़ाई?

खोजी पत्रकार तरुण तेजपाल को भले ही गोवा के स्थानीय न्यायालय ने वर्ष 2013 में हुए बलात्कार मामले में आरोपों से मुक्त कर दिया हो, परन्तु गोवा सरकार ने मुम्बई उच्च न्यायालय में अपील की है और आज मुम्बई उच्च न्यायालय ने पीड़ित का नाम हटाने के लिए कहा है।  इस हाई प्रोफाइल मामले पर सभी की निगाहें थीं और कहीं न कहीं सोशल मीडिया पर इस फैसले के बारे में सुगबुगाहट थी।

वर्ष 2013 में स्टार निष्पक्ष पत्रकार तरुण तेजपाल के खिलाफ एक मामला सामने आया। तरुण तेजपाल की सहकर्मी ने उस पर बलात्कार का आरोप लगाया। वर्ष 2013 में नवम्बर में गोवा में एक फाइव स्टार होटल में तहलका का एक आयोजन किया था। उसी कार्यक्रम के दौरान उन पर एक महिला युवा सहकर्मी ने यह आरोप लगाया था कि उनका तरुण तेजपाल ने यौन उत्पीड़न किया था।

चूंकि तरुण तेजपाल हमेशा से ही भाजपा के विरोध में लिखते रहे थे, एवं उसके नेताओं के खिलाफ स्टिंग करते रहे थे, तो यह भी आरोप लगे कि उसे जानबूझकर ही फंसाया जा रहा है। इधर महिला अधिकारों का समर्थन करने वाले समूहों एवं भाजपा के युवा मोर्चा द्वारा तरुण तेजपाल के खिलाफ प्रदर्शन किया गया था और साथ ही इसके कारण बार बार इसे राजनीतिक मामला कहा गया और कहा गया कि चूंकि तरुण तेजपाल द्वारा भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण को रिश्वत लेते हुए दिखाया गया था तो, अब भाजपा की बारी है। राजनीतिक आरोपों और प्रत्यारोपों के बीच यह हाई प्रोफाइल मामला आगे बढ़ा था। जिसमें तरुण तेजपाल की महिला सहकर्मी अपनी बात पर अडिग रही और इसके साथ ही तरुण तेजपाल ने एक मेल के द्वारा माफी भी माँगी थी, जिसमें उसने साफ़ कहा था कि “मैं बिना शर्त उस गलत निर्णय के लिए माफी माँगता हूँ, जिसके कारण मैंने तुम्हें 7 और 8 नवम्बर 2013 को यौन रूप से सम्बन्ध बनाने के लिए विवश किया, और वह भी तब जब तुम इंकार कर रही थीं।”

ऐसा पुलिस द्वारा प्रस्तुत चार्जशीट में था। परन्तु जब निचली अदालत से तरुण तेजपाल को आरोपमुक्त करने का निर्णय आया तो सहज किसी को विश्वास नहीं हुआ। परन्तु कल जब निर्णय की प्रति सामने आई तो उसे पढ़कर सहज ही विश्वास करना कठिन हो रहा था। इस निर्णय में न केवल पीड़ित पर प्रश्न उठाए गए हैं बल्कि साथ ही जांच करने वाली अधिकारी पर भी प्रश्न उठाए गए हैं और साफ़ कहा गया है कि

“जांच अधिकारी ने फर्स्ट फ्लोर पर मेहमानों की लिफ्ट के सीसीटीवी देखे और यह जानते हुए भी कि वही सीसीटीवी फुटेज यह दिखाते हैं कि आरोपी एवं अभियोजक को पहले तल पर दो मिनट के दौरान बाहर निकलते हुए दिखाया गया, और यह कि यह आरोपी को पूरी तरह से दोषमुक्त कर देगा, फिर भी इस तथ्य के बावजूद कि सीसीटीवी फुटेज रखने वाले डीवीआर को महत्वपूर्ण फुटेज को संरक्षित करने के लिए जांच अधिकारी द्वारा संलग्न किया जाना चाहिए, डीवीआर को जानबूझकर देरी से जब्त किया गया, तथा फर्स्ट फ्लोर के सीसीटीवी को नष्ट कर दिया गया, और यही कारण हैं कि आरोपी के बचाव के सबूत नष्ट हो गए।”

यह बहुत अजीब सी बात है और प्रश्न उठाती है कि किसे बचाने के लिए सबूत नष्ट किए गए?

ऊपर जिस ईमेल का उल्लेख है, उस ईमेल को भी जज द्वारा नहीं माना गया। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, न्यायालय ने कहा “व्यक्तिगत क्षमा को आरोपी द्वारा नहीं भेजा गया था, बल्कि इसे अभियोजन द्वारा दबाव के कारण अभियोजन गवाह 45, तहलका के तत्कालीन प्रबंध निदेशक, के पास भेजा गया कि वह कठोर कदम न उठाएं, तथा साथ ही यह अभियोजन गवाह 45 द्वारा अभियोजन पक्ष के लिए किए गए वादे एवं प्रलोभन के कारण किया गया, तथा मामले को संस्थागत स्तर पर ही निपटाया जाएगा यदि आरोपी माफी मांग लेता है तो। इसलिए यह मानते हुए कि व्यक्तिगत मेल आरोपी की मर्जी के खिलाफ भेजा गया था, तो इसे भारतीय प्रमाण अधिनियम की धारा 24 द्वारा ख़ारिज किया जाता है।”

जज ने अपने निर्णय में कई ऐसी बातें कहीं हैं, जो कहीं न कहीं काफी हैरान करने वाली हैं। उन्होंने लिखा है कि 8 नवम्बर 2013 को आरोपी से मिलने के बाद जब आरोपी ने अभियोजन को उसके कार्य में लापरवाही के लिए डांटा हो तो उसने आरोपी की बेटी के पास जाकर झूठे यौन उत्पीडन की कहानी कह दी हो। इस सम्भावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।”

इसी के साथ कुछ ऐसी और बातें हैं जो बहुत ही चकित करती हैं जैसे पीड़िता के फोन पर मेसेज के रिकार्ड्स देखकर उन्होंने टिप्पणी की कि उसका तो व्यवहार वैसे ही फ्लर्ट करने वाला रहा है। यह कहा गया कि मेसेजिंग रिकार्ड्स यह दिखाते हैं कि अभियोजन के लिए दोस्तों और साथियों के बीच फ्लर्ट करने वाली और सेक्सुअल बातें आम हैं। और उसके व्हाट्सएप चैट से यह बात सामने आई है कि उसके लिए यौन संकेतों वाली बात आम है और इतना ही नहीं वह आरोपी के साथ भी वैसी बातें करते रही थी, और वह खुद कहती है कि आरोपी भी उस के साथ उसके काम से अधिक उसके साथ यौन संबंधी बातें अधिक करता था, काम के विषय में बात नहीं होती थी, जो यह साबित करता है कि आरोपी और अभियोजन में 7 नवम्बर 2013 की रात को ऐसा ही कोई फ्लर्टियस संवाद हुआ होगा।”

तरुण तेजपाल निर्णय पृष्ठ 246

इतना ही नहीं जब पीडिता ने निजता की बात कहकर अपना ईमेल साझा नहीं किया क्योंकि वह उसके लिए पहले ही उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर चुकी थी तो न्यायालय ने फोन द्वारा इस मामले के लिए अप्रासंगिक व्यक्तिगत विवरण लाकर उसे यौनिक रूप से शर्मिंदा किया।

उसके बाद निर्णय में लिखा है कि अभियोजन ने दावा किया कि उसने शारीरिक रूप से अपनी पूरी ताकत से आरोपी का विरोध किया। उसने दावा किया कि वह लगातार उसे जबरन छूने की कोशिश कर रहा था, पर फिर भी न ही आरोपी के और न ही अभियोजन के कोई शारीरिक चोट आई है।

इसके साथ ही उन्होंने इस फैसले में पृष्ठ 290 से 293 तक पीड़िता के साथ आरोपी ने कैसे सम्बन्ध बनाने के प्रयास किये एवं उसके कौन से अंगों को छुआ, चुम्बन लेते समय कितनी ताकत से धकेला आदि के विषय में प्रश्न हैं।

पृष्ठ 292 पर यह पूछा गया है कि यदि वह तेजपाल की ओर मुंह नहीं किये थी तो वह अपनी जीभ को उसके मुंह में कैसे डाल सकता है? यदि उसने अपना जबड़ा कसकर बंद किया था तो वह अपनी जीभ कैसे डाल सकता है और आखिर उसने यह सब करने से पहले क्यों उसे धकेला नहीं? इस कहानी पर विश्वास नहीं किया जा सकता!

इसके साथ ही आगे जाकर यह कहा गया है कि एक गवाह पर इसलिए विश्वास नहीं किया जा सकता है क्योंकि वह अभियोजन पक्ष से दोस्ती करना चाहता था।

इतना ही नहीं इस निर्णय में यह भी कहा गया कि इसमें कोई भी मेडिकल प्रमाण नहीं हैं और साथ ही वह तथ्य हैं जो पीड़िता के आरोपों की सच्चाई के विषय में संदेह व्यक्त करते हैं। न्यायालय ने कहा कि पीड़ित महिला के जो मेसेज हैं वह यह स्थापित करते हैं कि वह न ही “डरी हुई है और  न ही वह सदमे में है।”

तरुण तेजपाल पर भारतीय दंड विधान की धारा 376 (बलात्कार), 341, धारा 342 (जबरन बंधक बनाने), 354 ए (यौन उत्पीडन) तथा 354बी (आपराधिक अपराध) के अंतर्गत आरोप थे। उत्तरी गोवा की अतिरिक्त जिला एवं सेशन जज क्षणा जोशी ने उपरोक्त फैसला सुनाते हुए उन्हें हर आरोप से बरी कर दिया था।

हालांकि इस अजीबो गरीब निर्णय के खिलाफ गोवा सरकार ने कल मुम्बई उच्च न्यायालय में अपील की है और साथ ही यह भी एसजी तुषार मेहता ने यह उच्च न्यायालय में कहा कि इस फैसले में पीड़िता के ईमेल एवं उसके पति का नाम बार बार आने के कारण उनकी निजता का हनन हुआ है, पहचान प्रकट हुई है। और इसी के साथ तुषार मेहता ने यह आग्रह किया कि इस फैसले पर शीघ्र ही सुनवाई हो क्योंकि यह निर्णय बलात्कार पीड़ितों के खिलाफ है और इस विषय में नियम बनाता है कि कैसे उसे बलात्कार के बाद व्यवहार करना है।

अब इस मामले की अगली सुनवाई अगले सप्ताह होगी।

परन्तु यह निर्णय महिलाओं के लिए बहुत घातक है क्योंकि यह निर्णय महिलाओं के लिए नैतिक दायरे एवं सीमाएं तय करता है कि यदि किसी लड़की का बलात्कार हो जाए तो उसे रोते रहना चाहिए, उसे समाज से कटा हुआ जीवन जीना चाहिए। और यदि कोर्ट ने इन बातों को ध्यान में रखते हुए निर्णय दिया है कि पीडिता का निजी व्यवहार कैसा था और वह पुरुषों से फ्लर्ट प्रकार की बातें करती थी, तो क्या आरोपी को या किसी को भी लड़की के साथ बलात्कार का अधिकार मिल जाएगा? और सबसे बड़ी बात यह है कि यह कौन निर्धारण करेगा कि कौन से शब्द फ्लर्ट की श्रेणी में आते हैं? कैसे किसी स्त्री का अतीत उसके साथ हुए वर्तमान शोषण का आधार बन सकता है?

इस निर्णय में लड़की के सहज व्यवहार को ही दोषी की श्रेणी में ला दिया है, यह निर्णय बलात्कार की लड़ाई लड़ने वाली स्त्रियों का मनोबल तोड़ने वाला है क्योंकि इसमें कई बातें आपत्तिजनक है, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण है स्त्री का सहज और स्वाभाविक जीवन जीने का अधिकार! इसके साथ ही जैसे न्यायालय यह निर्धारित करेगा कि “बलात्कार पीड़िता का क्या आदर्श व्यवहार होना चाहिए?”  कैसे उसे हंसना चाहिए, कैसे उसे बोलना चाहिए? शायद यही कारण था कि इन संहिताओं के खिलाफ आवाज़ उठीं!

क्या लड़की के साथ बलात्कार के बाद यदि वह सामान्य जीवन जी रही है, तो वह चरित्रहीन हो जाएगी? इस निर्णय का सार तो यही कह रहा है। हालांकि इस निर्णय के खिलाफ दिल्ली में आईडब्ल्यूपीसी जो महिला पत्रकारों की सबसे प्रतिष्ठित संस्था है, ने भी विरोध दर्ज कराया तथा यह वक्तव्य दिया कि इस निर्णय से यौन शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाने वाली स्त्रियों को निराशा होगी और वह न्याय न मिलने पर आवाज़ उठाने से डरेंगी और कहा कि जिस प्रकार से यह मामला आगे बढ़ा है वह सत्ता असंतुलन को दिखाता है जहाँ पर अन्य महिला शिकायतकर्ताओं की निष्पक्ष सुनवाई नहीं होगी।”

फिर भी कुछ महिला पत्रकारों का यह भी मानना था कि विरोध करने में आईडब्ल्यूपीसी ने देरी की।

कई महिला पत्रकार इस निर्णय के विरोध में अपना मत व्यक्त कर रही हैं


क्या आप को यह  लेख उपयोगी लगाहम एक गैर-लाभ (non-profit) संस्था हैं। एक दान करें और हमारी पत्रकारिता के लिए अपना योगदान दें।

हिन्दुपोस्ट अब Telegram पर भी उपलब्ध है। हिन्दू समाज से सम्बंधित श्रेष्ठतम लेखों और समाचार समावेशन के लिए  Telegram पर हिन्दुपोस्ट से जुड़ें ।

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.