spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
20.3 C
Sringeri
Thursday, December 5, 2024

तालिबानी अफगानिस्तान में हजारा शिया समुदाय का कत्लोआम हुआ शुरू

अफगानिस्तान में हजारा समुदाय के नेता अब्दुल अले मजारी की मूर्ति का सिर कलम कर दिया है और यह उसी बामियान में तोड़ी गयी हैं, जहाँ पर महात्मा बुद्ध की मूर्ति को पहले ही उड़ाया जा चुका था।  तालिबान द्वारा हजारा समुदाय के लड़कों को भी मारे जाने की खबरें आई हैं।  इंटरनेट पर यह खबरें वायरल हैं, कि तालिबान अब चुन चुन कर शिया हजाराओं की हत्या कर रहे हैं।

समानता का दावा करने वाले इस्लाम में सुन्नी और शिया ही नहीं बल्कि अहमदिया आदि के बीच कत्लेआम चलता रहता है। कहा जाता है कि इस्लाम में हर कोई बराबर है, मगर फिर भी तालिबान ने सत्ता में आते ही हजारा समुदाय के लोगों का कत्लेआम तो शुरू किया ही बल्कि साथ ही उस समुदाय से जुड़े नेता की मूर्ति भी तोड़ दी है।

परन्तु क्या हजारा समुदाय का यह पहला ही कत्लेआम है या फिर यह सिलसिला काफी समय से चला आ रहा है। दरअसल हजारा शिया मुसलमान हैं और वह सुन्नियों से भाषाई, सांस्कृतिक और नैतिक रूप से एकदम अलग हैं। कहा जाता है कि हजारा चंगेज़ खान के वंशज हैं। जो भी हो, यह सत्य है कि सुन्नी तालिबान उन्हें पसंद नहीं करता है और इस समुदाय को न ही पाकिस्तान और न ही अफगानिस्तान में मुस्लिम माना जाता है। एक खामोश या कभी कभी उग्र कत्लेआम उनका चलता रहता है।

आज जिस हजारा समुदाय का कत्लेआम तालिबान कर रहा है, उसकी संख्या 1880 तक पूरे अफगानिस्तान में 67% थी। और उनका अपना हजारिस्तान के नाम से क्षेत्र हुआ करता था। अफगानिस्तान नाम का कोई क्षेत्र था ही नहीं। वह लोग मूलत: गेंहू, जौ और साथ ही कई फल और सब्जियां उगाते थे।

अफगानिस्तान में हजारा समुदाय की उपस्थिति का कोई प्रमाणिक इतिहास प्राप्त नहीं होता है, परन्तु यह अवश्य सत्य है कि मुगलों के शासनकाल से उनका उल्लेख प्राप्त होता है। हजारा समुदाय के साथ कत्लेआम आरम्भ हुआ अब्दुर रहमान खान के हाथों। वह एक सुन्नी कट्टरपंथी था और जिसका विश्वास था कि शिया और गैर मुस्लिमों को भयानक से भयानक दंड देना चाहिए।

वर्ष 1890 में अब्दुर्रहमान खान ने हजारा समुदाय के साथ जो किया, उसे और कुछ नहीं केवल और केवल नरसंहार कहा जा सकता है। उसने उन्हें कत्ल करना, उसे दास बनाना और फिर शेष जनसंख्या को गायब करना शुरू कर दिया। उनके साथ ऐसे अत्याचार किए गए जिन्हें पढ़कर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते थे। सरकारी सैनिकों को इस बात की आज़ादी दी गयी कि वह जितना चाहे लोगों पर दंड लगा दें, या फिर लोगों को निशस्त्र करने के बहाने हजारा समुदाय के लोगों के साथ अत्याचार करें।

जब हजारा समुदाय के लोगों ने अफगानी सैनिकों के इस अत्याचार का विरोध किया। वर्ष 1892 में हजारा समुदाय ने विद्रोह किया और मौसवी के शब्दों में “पहले विद्रोह का कारण था, तैंतीस अफगानी सैनिकों द्वारा एक पहलवान हजारा की पत्नी का बलात्कार किया जाना। सैनिक पहले तो हथियारों की तलाशी लेने के बहाने उस व्यक्ति के घर में घुस गए और फिर उस आदमी को बांधा और उसकी पत्नी के साथ उसके सामने ही बलात्कार किया। उस व्यक्ति और उसकी पत्नी और दोनों के परिवार ने सोचा कि इन स्थितियों से बेहतर तो मृत्यु ही है, तो उन्होंने उन सभी सैनिकों को मार डाला और स्थानीय किले पर हमला कर दिया, जहाँ से उन्होंने यह हथियार लिए थे।

https://iranicaonline.org/articles/hazara-2

जब अब्दुर्रहमान खान को इस विद्रोह का पता चला तो उसने शियाओं के खिलाफ जिहाद का ऐलान कर दिया और तीस से चालीस हज़ार सरकारी सैनिक, दस हजार पहाड़ी योद्धा और एक लाख आम नागरिकों के सेना बनाई और फिर 1892 में ही इस विद्रोह के केंद्र यूरोज्गन पर अधिकार कर लिया और स्थानीय जनसँख्या का भारी संख्या में कत्लेआम करना शुरू कर दिया। मौसवी लिखते हैं कि हज़ारों, हजारा पुरुष और स्त्रियाँ, और बच्चे काबुल में गुलाम बनाकर बेचे गए और विद्रोह करने वाले लोगों के कटे हुए सिर की मीनारें बना दी गईं, जो इस बात की चेतावनी थी कि विद्रोह करने वाले अंजाम देख लें”

हजारा समुदाय की महिलाओं को यौन गुलाम बनाया गया पर कुछ महिलाओं ने मृत्यु को गले लगाना ज्यादा सही समझा। वर्ष 1893 में 47 हजारा महिलाओं ने सुन्नी अफगान सैनिकों के हाथों में पड़ने के बजाय पहाड़ी से कूदकर अपनी जान देना ज्यादा सही समझा।

मगर ऐसा भी नहीं कि इस घटना के बाद हजारा समुदाय के लोगों के साथ अत्याचार रुक गए हों। वर्ष 1970 में हजारात में भी, अफगानिस्तान के शेष भागों की तरह भयकर सूखा पड़ा और उसके बाद सत्ता कम्युनिस्ट के हाथों में चली गयी, जिनमें से अधिकतर युवा थे और समाज में विकास चाहते थे। और उसके कुछ महीनों में, अधिकतर देश क्रान्ति में रहा और फिर 1979 में सोवियत युनियन ने सैन्य रूप से हस्तक्षेप किया, फिर अगले दस वर्षों तक चले युद्ध में 1।5 मिलियन लोग मारे गए।

तालिबानियों के उदय के बाद से तो हजारा समुदाय का कत्लेआम लगातार चल रहा है क्योंकि वह उन्हें मुस्लिम नहीं मानता है और साथ ही शियाओं को मारना तालिबान के अनुसार गलत नहीं है।

यही कारण है कि तालिबान ने आते ही हजरत अली मस्जिद पर अपना झंडा लहराया और हजारा समुदाय के नेता अब्दुल अली मजारी की मूर्ति को तोड़ दिया था।

यह भी सत्य है कि एक समय में अफगानिस्तान की जनसँख्या का बड़ा हिस्सा रहे हजारा अब केवल 10% के करीब ही बचे हैं। और वह कब तक रहेंगे इसमें भी संदेह है क्योंकि अफगानिस्तान में पिछले कई दिनों से हजारा समुदाय की हत्याएं शुरू हो गयी है, 4 से 6 जुलाई के बीच ही 9 पुरुषों की हत्या हो गयी थी

कबीलाई मानसिकता वाली कट्टरपंथी इस्लामी मानसिकता ऐसी है कि वह सुन्नी, शिया, अहमदिया, पठान आदि आदि में बंटी है, जिसके अपनी अलग अलग मस्जिदें हैं, अलग अलग कब्रगाहें हैं, जिनके इतिहास अपने ही लोगों के खून से रंगे हुए हैं, और जिनके बिस्तर अपने ही समुदाय की औरतों के कौमार्य के हत्यारे हैं,

परन्तु फिर भी फेमिनिस्ट और वामपंथी इन कट्टरपंथियों के दीवाने हैं, यह दीवानगी क्यों है और क्यों उन सभी नरसंहारों पर आवाज़ नहीं उठती है जो इतिहास में केवल इस कबीलाई मानसिकता के कारण होते गए, यह भी एक प्रश्न है!


क्या आप को यह  लेख उपयोगी लगा? हम एक गैर-लाभ (non-profit) संस्था हैं। एक दान करें और हमारी पत्रकारिता के लिए अपना योगदान दें।

हिन्दुपोस्ट अब Telegram पर भी उपलब्ध है हिन्दू समाज से सम्बंधित श्रेष्ठतम लेखों और समाचार समावेशन के लिए  Telegram पर हिन्दुपोस्ट से जुड़ें 

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.