पंद्रह अगस्त को भारत जब अंग्रेजों के भारत छोड़ने की सालगिरह मना रहा था तो उसी समय उसके पड़ोसी देश में राजनीतिक परिस्थितियों में उथलपुथल मची हुई थी और ऐसा कुछ हो रहा था जिसके तमाम विश्लेषण हो सकते हैं, और हो भी रहे हैं। यहाँ पर भारत नए स्वप्न गढ़ रहा था तो वहीं अफगानिस्तान में स्वप्न टूट रहे थे। काबुल तालिबानियों के हाथों ढह रहा था। और अफरातफरी मची हुई थी।
अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान से अपनी सेनाएं हटाने के एक ही महीने बाद तालिबान ने अफगानिस्तान पर अधिकार जमा लिया। अफगानिस्तान के लोगों के दिल में अभी तक वह घाव ताजा हैं जो उन्होंने अफगानी जनता को दिए थे। उनका जाना सरल नहीं था, और न ही सरल है। आज तक अफगानिस्तान की औरतें उन दिनों को याद कर के सिहर उठती हैं और अपने अनुभव सुनाती हैं। फिर भी यह बेहद दुखद है कि भारत के लिबरल जो हिन्दू घृणा से इस हद तक भरे हुए बैठे हैं कि वह पहले तो एकदम मौन रहे थे, जब तालिबान आगे बढ़ रहा था, तब तो कुछ नहीं बोले थे।
दरअसल वह इसलिए चुप थे क्योंकि तालिबान की निंदा का अर्थ था इस्लाम की निंदा, फिर वह उनके प्रिय पत्रकार दानिश की मौत ही क्यों न हो, इन पत्रकारों और लेखकों ने निंदा नहीं की। वह निंदा नहीं कर सकते। क्योंकि वामपंथ और इस्लाम एक ही सिक्के के दो चेहरे हैं। जबकि वह यह भूल जाते हैं कि तालिबान का उदय उनके प्रिय देश सोवियत संघ के विनाश के लिए हुआ था।
ऐसा क्या कारण था कि वह लोग जो तब तक चुप थे जब तक तालिबान आगे बढ़ रहा था और उनके प्रिय दानिश सिद्दीकी के साथ साथ नजर मोहम्मद एवं एक कवि और इतिहासकार की हत्या कर चुका था, एक लड़की को बुर्का न पहनने पर मार चुका था, वह एकदम से काबुल पर तालिबान के अधिकार के बाद बोलने लगे। न न, वह अभी भी तालिबान के खिलाफ नहीं बोल रहे हैं, वह बोल रहे हैं अमेरिका के खिलाफ, जिसने उनके अनुसार उन्हें अकेला छोड़ दिया।
यह सत्य है कि अमेरिका ही इस सारे कत्लेआम के पीछे है, और चीन, पाकिस्तान आदि भी सब अपने अपने फायदे के लिए अफगानिस्तान और तालिबान का प्रयोग कर रहे हैं। अमेरिका की थू थू हर जगह हो रही है और साथ ही अमेरिका में बसे अफगानिस्तानी भी विरोध कर रहे हैं और कह रहे हैं कि बाईडेन ने उन्हें धोखा दिया। और उन्होंने व्हाईटहाउस में सामने प्रदर्शन किया।
#WATCH | "Biden you betrayed us, Biden you are responsible," chanted Afghan nationals outside the White House against the US President after Afghanistan's capital Kabul fell to the Taliban pic.twitter.com/giMjt2grNW
— ANI (@ANI) August 16, 2021
वह लोग कह रहे हैं कि बीस वर्षों में हम फिर से घूम फिर कर वहीं पहुँच गए हैं।
यहाँ तक कि ट्रंप ने भी कहा है कि जो बाइडेन ने धोखा दिया। अफगानिस्तान में लोग हैरान हैं, विश्व के अफगानों में गुस्सा है, परन्तु फिर भी भारत में तालिबान प्रेमी वर्ग खुलकर तालिबान का समर्थन कर रहा है और यह वही लिब्रल्स हैं, जिनकी रग रग में हिन्दुओं के प्रति घृणा भरी हुई है।
We can’t be okay with Hindutva terror & be all shocked & devastated at Taliban terror.. &
We can’t be chill with #Taliban terror; and then be all indignant about #Hindutva terror!
Our humanitarian & ethical values should not be based on identity of the oppressor or oppressed.— Swara Bhasker (@ReallySwara) August 16, 2021
स्वरा भास्कर ने कहा कि हमें हिन्दू टेरर को अनदेखा नहीं कर सकते और साथ ही तालिबान टेरर पर शोक नहीं जता सकते।
हिन्दुओं को लेकर इनकी घृणा असीम है, और इसके लिए वह हर हद पार करने के लिए तैयार हैं यहाँ तक कि उस तालिबान को समर्थन देने के लिए भी जो मुसलमानों को मार रहा है और साथ ही औरतों की बेसिक आज़ादी छीन रहा है। वहीं क्लब हाउस में चर्चा हुई और भारत में भी जल्द ऐसा करने की योजना पर बात की गयी
https://twitter.com/ghargharbhagwa/status/1427633124775706635
लिब्रल्स में और लेखन जगत में जैसे तालिबान का समर्थक होने की होड़ मच गयी। बॉलीवुड से वह कोई स्वर नहीं आए, और यहाँ तक कि जो लोग पूर्व में हिन्दू होने के लिए शर्मिंदा हो रहे थे, वह चुप थे। जब लानत मनालत हुई तो दिया मिर्जा जैसे लोगों ने ट्वीट तो किये, पर कहीं पर भी तालिबान का उल्लेख नहीं था, बस यही था कि अफगान के लोगों को बचाया जाए। उन्होंने ट्वीट किया
Save Afghanistan. Save the women and children from the horrors being unleashed on them.
— Dia Mirza (@deespeak) August 16, 2021
अफगानिस्तान को बचाया जाए, महिलाओं और बच्चों को उन पर किए जा रहे अत्याचारों से बचाया जाए।
परन्तु उन्होंने भी यह नहीं कहा कि किससे बचाया जाए, लोगों ने पूछा कि किससे बचाएं? आरएसएस से, मोदी से? योगी से, कपिल मिश्रा से?
दरअसल अब इन लोगों ने इसलिए शोर मचाना शुरू किया जिससे वह एलन कुर्दी वाली भूमिका निभा पाएं, इस मजहबी त्रासदी की कहानियों को पूरे संसार में फैलाया जाए और फिर शरणार्थी बना जाए, और फिर वहां जाकर उस देश की सभ्यता को नष्ट कर वहां भी शरिया का शासन लाने की मांग की जाए।
एक सर्वे के अनुसार अफगानिस्तान में 90% लोग शरिया का शासन चाहते हैं, और तालिबान तो शरिया के हिसाब से ही शासन दे रहा है, तो ऐसे में क्या है जिसके कारण वह भाग रहे हैं? क्या उन्हें शरिया नहीं चाहिए? क्या वह खुलकर यह कह सकते हैं कि तालिबान का शासन सच्चे इस्लाम का शासन नहीं है? यदि नहीं? तो ऐसा वह खुलकर क्यों नहीं कह रहे हैं?
और इस्लाम की इस लड़ाई में दुनिया के एक मात्र हिन्दू बहुल देश पर उनकी नज़र है क्योंकि बांग्लादेश और तुर्की सहित इस्लामिक देश अफगानिस्तान से अपने ही हमवतनों को शरण देने से इंकार कर चुके हैं और अब वह लोग भारत आना चाहते हैं, पर प्रश्न यही है कि वह उस देश में ही शरण लेने के लिए क्यों आना चाहते हैं जिसे मुस्लिम और वाम मीडिया मुस्लिमों के लिए सबसे खतरनाक देश बताता है? या फिर उनका उद्देश्य अंतत: गजवा ए हिन्द है? और प्रश्न यही कि आखिर बीस वर्षों के बाद विफलता किसकी है? क्योंकि भारतीय मुस्लिम सांसदों और राजनेताओं की दृष्टि में तालिबान ने आज़ादी दिलाई है और बिना खून बहाए सत्ता हासिल की है!
फिर रोते बिलखते लोग कौन हैं और फिर शरण मांगते कौन लोग हैं?
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