spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
23.7 C
Sringeri
Saturday, April 20, 2024

अफगानिस्तान में अब सुन्नी मस्जिद में धमाका, कई लोगों की हुई मौत, क्या काफिरों को नष्ट करने के लिए वर्चस्व की लड़ाई है या फिर कुछ और?

अफ्गानिस्तान में जहाँ से हिन्दू और सिखों को भगाया और मारा जा चुका है, और हजारा शियाओं पर हमले लगातार हो रहे हैं, लड़कियों के लिए स्कूल खुले नहीं हैं और भी तरह तरह के अत्याचार हो रहे हैं, वहां पर अब सुन्नी मस्जिद में धमाके का समाचार आया है।

जहाँ गुरूवार को शिया मस्जिद में विस्फोट के साथ ही कई और और विस्फोट हुए थे तो शुक्रवार को सुन्नी मस्जिद में विस्फोट हुआ। इस विस्फोट में भी कई लोगों की मौत बताई जा रही है। यह विस्फोट उस समय हुए जब लोग मस्जिद में नमाज पढने के लिए एकत्र हुए थे।

जिस समय यह विस्फोट हुए उस समय मस्जिद में बहुत भीड़ थी, और कम से कम 33 लोग अभी तक मृत बताए जा रहे हैं, हालांकि यह संख्या बढ़ सकती है क्योंकि कई घायलों का इलाज अभी चल रहा है। डेली मेल के अनुसार तालिबान ने आईएसआईएस को इन हमलों के लिए जिम्मेदार ठहराया है। तालिबान सरकार के प्रवक्ता ज़बिहुल्ला ने कहा कि वह इस अपराध की निंदा करते हैं एवं पीड़ितों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करते हैं!”

शिन्हुआ समाचार एजेंसी के अनुसार प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि यह विस्फोट दोपहर 2.30 बजे मुल्ला सिकंदर मस्जिद में तब हुआ जब जुमे की नमाज के बाद नमाजी ज़िक्र मना रहे थे।

यह भी उल्लेखनीय है कि जिस आईएसआईएस को तालिबान दुश्मन बता रहे हैं, वह भी कट्टर सुन्नी संगठन है और तालिबान भी। फिर ऐसा क्या हो रहा है कि दो परस्पर कट्टर सुन्नी संगठन आपस में लड़ रहे हैं? क्या यह वर्चस्व की लड़ाई है या फिर कौन कितना कट्टर है इसकी लड़ाई है?

और ऐसे में जो मारे जा रहे हैं क्या वह कम मुसलमान हैं? यह भी प्रश्न इसलिए उत्पन्न होता है कि आखिर विस्फोट क्या सोचकर किये जा रहे हैं?

एक और बात ध्यान देने योग्य है कि तालिबान हों या फिर आईएसआईएस, ऐसे संगठनों का आम दुश्मन एक ही है। और वह है काफिर! अर्थात मुख्य रूप से हिन्दू! यही कारण है कि जहाँ तालिबान ने महमूद गजनवी की कब्र पर जाकर सोमनाथ के विध्वंस को याद किया था तो वहीं आईएसआईएस की पत्रिका ने तो हिन्दुओं के महादेव की प्रतिमा को ही खंडित दिखा दिया था।

काफिरों के विरुद्ध एक ही रहना है:

अत: आपस में सुन्नी, शिया अवश्य विस्फोट कर लें, परन्तु जब तालिबान और आईएसआईएस के आम दुश्मन की बात होगी तो वह हिन्दू ही होंगे। इस अवसर पर इतिहास से एक प्रकरण स्मरण होता है। जिसके विषय में हमने लिखा ही है। वह किस्सा है रानी कर्णावती और हुमायूं का!

जब गुजरात के बहादुरशाह के आक्रमण से रक्षा के लिए रानी कर्णावती ने कथित रूप से हुमायूं से सहायता माँगी, तो एक बार तो बहादुरशाह को डर लगा कि कहीं वास्तव में हुमायूं न आ जाए, परन्तु उसके वजीर ने उसे समझाया कि “हुमायूं मेवाड़ की सहायता मात्र इस कारण से नहीं करेगा कि कोई भी मुस्लिम दूसरे मुस्लिम के खिलाफ खड़े होने के लिए किसी “काफिर” को कारण नहीं बना सकता!”

एस के बनर्जी, हुमायूँ बादशाह, अध्याय XI

यह पूरी रणनीति इतिहासकार एस के बनर्जी, अपनी पुस्तक हुमायूँ बादशाह में हुमायूँ और बहादुरशाह के बीच हुए पत्राचार के माध्यम से बतलाते हैं। जिसमें स्पष्ट है कि जब काफिर के खिलाफ युद्ध हो तो अपने भाई के साथ खड़े होना है।

भारत के लिए मुस्लिम शासकों की एकता की रणनीति

वह लिखते हैं कि उस समय मुस्लिम शासकों के मध्य हिन्दू शासकों को लेकर एक अद्भुत एकता थी, कि जब भी कोई मुस्लिम शासक जो दूसरे मुस्लिम शासक का दुश्मन भी है, वह भी आपसी दुश्मनी में भी काफिर शासक का साथ नहीं देगा। जब बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर हमला किया तो हुमायूं भी सरंगपुर में (जनवरी 1553) पहुँच गया। और वह वहां पर एक महीने तक डेरा डाले रहा। बहादुरशाह इतना भयभीत हो गया था कि वह वापस मालवा जाने की सोचने लगा था। परन्तु उसके मंत्री सदर खान ने उसे समझाया कि वह इस मुस्लिम परम्परा पर विश्वास रखें कि हुमायूं उस पर तब तक हमला नहीं करेगा जब तक वह एक काफ़िर से लड़ रहे हैं। उसके बाद जरूर हुमायूं उस पर हमला करेगा। और यही हुआ था। हुमायूं ने बिलकुल भी “भाई-चारे” के इस सिद्धांत को नहीं तोडा था कि काफिरों के खिलाफ किसी भी युद्ध में अपने भाई का विरोध करना!

वहां पर भी आम दुश्मन दोनों के राजपूत ही थे। और यह इतिहास के कई उदाहरणों से देखा जा सकता है कि जहाँ अपने मजहबी भाइयों को देने के लिए माफी थी, मगर हिन्दुओं का कत्लेआम लगभग हर मुस्लिम शासक ने कराया था।

और आपस में वर्चस्व की भी लड़ाई है, अभी तक चल रही है। फिर चाहे वह यमन हो, सीरिया हो, ईरान हो या फिर अब अफगानिस्तान!

वर्चस्व की इस लड़ाई में हर ओर खून है, परन्तु दुर्भाग्य यही है कि “काफ़िर” के साथ लड़ाई में खून बहाने वाले और जिनका खून बह रहा है, दोनों ही एक साथ हैं! एवं अंतिम लक्ष्य एक ही है!

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.