कल्पना कीजिये एक स्त्री है, जिन्हें एक राजनेता आज से नहीं कई वर्षों से प्रताड़ित कर रहा है। वह बार बार हर चौखट पर न्याय के लिए जाती हैं, मगर फिर भी उन्हें न्याय मिलने की संभावना इतनी कम है कि वह प्रधानमंत्री को लिखे गए एक पत्र में लिखती हैं कि “मैं सभी से ऊब गयी और अदालत का दरवाजा खटखटाया। लेकिन यहाँ की गति को देखते हुए, मेरे जीवित रहने तक न्याय नहीं मिलने की गुंजाइश नहीं है। ” आगे वह लिखती हैं “शायद हिरेन मनसुख और पूज्चा चव्हाड़ की मौत के तर्ज पर मेरी मौत के बाद ही मदद की जायेगी। क्या एक जीवित व्यक्ति को न्याय मिलता है?”
यह प्रश्न एकदम सटीक हैं? क्या वाकई में जीवित व्यक्ति के लिए न्याय की कोई आस नहीं है? यह प्रश्न तब और भी अधिक ज्वलंत होकर आता है जब, हमारे आसपास के कथित निष्पक्ष पत्रकार चुप्पी साध लेते हैं। जब डॉ. स्वप्ना पाटकर भारतीय संविधान के इस अधिकार की बात करती हैं कि उन्हें शांति से अपना जीवन जीने का अधिकार है, तो क्या आपके मन में यह प्रश्न नहीं उठता कि वह ऐसा क्यों कह रही हैं या फिर कर रही हैं? बहुत सारे प्रश्न हैं। और यह भी आपके मन में नहीं आता कि यदि उस स्त्री की यह पीड़ा है, जो इतने वर्षों से यहाँ वहाँ न्याय के लिए भटक रही है तो हमारा मीडिया क्या कर रहा है? अंतत: वह स्त्री कौन है, जिसकी पीड़ा ट्विटर पर आई तो सभी को पता चली, परन्तु हमारे निष्पक्ष पत्रकारों को नहीं, और हमारे सेलेब्रिटी तो एकदम ही चुप हैं।
जब भी निष्पक्ष पत्रकार न बोलें और न ही फिल्मी सेलेब्रिटी कुछ बोलें तो समझ जाना चाहिए कि किसी ऐसे व्यक्ति के प्रति मामला है जो मीडिया का प्रिय है। 30 मार्च को एक ट्विटर हैंडल पर एक पत्र आता है। वह पत्र माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को संबोधित था जिसमें कई वर्षों से चले आ रहे यौन उत्पीड़न और मानसिक उत्पीडन का उल्लेख है। यह कहानी है महाराष्ट्र की एक डॉक्टर की, जिन्होनें शिव सेना के संस्थापक श्री बाल ठाकरे के जीवन और उनके आदर्शों पर आधारित फिल्म का निर्माण किया था। और उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी हैं और साथ ही वह सामना के लिए भी कॉलम लिखती थीं। वह एक प्रख्यात उद्यमी भी हैं।
पर उनकी यह पहचान कहीं खो रही हैं। रह रही है तो वह पहचान जिसमें वह शिव सेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत से पीछा छुड़ाती हुई नज़र आ रही हैं। वह पीड़ित हैं। वह उस सनक का शिकार हैं कि हर कीमत पर संजय राउत को वह चाहिये ही चाहिये। जब उन्होंने शिव सेना के संस्थापक श्री बाल ठाकरे जी के जीवन पर आधारित फिल्म बालकडू बनाई थी, तो उन्हें भी यह विश्वास नहीं रहा होगा कि एक दिन यही पार्टी उनके लिए इस प्रकार मानसिक उत्पीडन का कारण बनेगी।
I reached out to @MumbaiPolice @pmo @cmo @AmitShah @PawarSpeaks @NCWIndia & every politician of every party on #sanjayraut harassment issue. Nobody helped me. I won’t die like #SSR I won’t give up.I will fight.Join my fight.This hashtag is my identity #myrightmyfight Please RT. pic.twitter.com/IZCJi9Ol6p
— MYRIGHTMYFIGHT (@drswapnapatker) April 5, 2021
वह अपने पत्र में स्पष्ट लिखती हैं कि उन्हें सहानुभूति नहीं इन्साफ चाहिए और फिर उन्होंने शिवसेना के सांसद संजय राउत द्वारा किये जा रहे उत्पीडन का उल्लेख किया। उन्होंने लिखा है कि पिछले आठ सालों से पुलिस और शिवसेना ने सिस्टम का दुरूपयोग करके गालियाँ दी हैं और इसी के साथ उन्होंने यह भी लिखा है कि कैसे उनका साथ देने वाले रिश्तेदारों और लोगों का उत्पीड़न किया गया। संजय राउत की खुशी को उन्होंने राक्षसी खुशी कहते हुए लिखा है कि जब तक संजय राउत की राक्षसी खुशी संतुष्ट नहीं होती तब तक पुलिस मुझे प्रताड़ित करते हैं। मुझे बदनाम करती है और मुझे परेशान करती है। संजय राउत को किसी का डर नहीं है। इतना ही नहीं उन्होंने यह भी लिखा है कि शिवसेना भवन की तीसरी मंजिल पर मेरे रिश्तेदारों को बुलाकर धमकाया और मारपीट की गयी।
इसके बाद उन्होंने खुद पर किये गए हमलों का भी उल्लेख किया है। कैसे उनपर वर्ष 2013 में दो हमले हुए और सबसे हैरानी की बात है कि पुलिस आज तक कोई आरोपी नहीं खोज पायी है और साथ ही वर्ष 2014 में कैसे उनके ही खिलाफ जांच शुरू हो गयी थी। फिर उनके पास धमकी मिलनी शुरू हुई और वह किससे बात करती हैं और किसके साथ बात नहीं करती हैं, इस पर भी नियंत्रण करने की कोशिश की गयी।
न केवल यह पत्र बल्कि उनकी ट्विटर टाइमलाइन भी उनके इस उत्पीड़न की एक पूरी कहानी कहती है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा था? और यह भी ज्ञात रहे कि जब यह उत्पीड़न आरम्भ हुआ था, तब शिवसेना और भाजपा सरकार थी और डॉ। स्वप्ना के अनुसार उन्होंने महराष्ट्र भाजपा से भी मदद की गुहार लगाई, पर कुछ नहीं हुआ। इतना ही नहीं वह कहती हैं कि उन्होंने शरद पवार, आम आदमी पार्टी और कान्ग्रेस सभी से मदद माँगी, मगर उन्होंने कहा कि यदि आपको मदद चाहिये तो आपको सेलेब्रिटी होना होगा! सामान्य लोगों को लड़ने का अधिकार नहीं है।
शिवसेना में महिला शिव सैनिकों पर बात करते हुए उन्होंने ट्वीट किया है कि शिवसेना में महिलाएं मूल भूल चुकी हैं। वह भूल चुकी हैं कि वह महिलाएं हैं और उन्हें अन्य महिलाओं की सहायता करनी चाहिये। राजनीति लेने का नहीं बल्कि देने का काम है। जब स्वार्थ एक वायरस की तरह आक्रमण करता है, तो मानवता अकेली हो जाती है। फिर उन्होंने अपने लड़ने की प्रतिबद्धता जाहिर करते हुए कहा “मैं लडूंगी क्योंकि यह मेरा अधिकार और मेरी लड़ाई है। ”
उनके खिलाफ कई मुक़दमे दायर किये गये और उन्हें कई मामलों में फंसाया गया। डॉ। स्वप्ना ने यह भी लिखा कि उनके साथ के कई लोगों को संजय राउत ने अपनी ओर कर लिया है और फिर उनके साथ मिलकर उत्पीड़न किया जा रहा है, जबकि उन लोगों को वीआईपी सुविधाएँ दी गयी हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि मुम्बई पुलिस और महाराष्ट्र सरकार के लिए यह मामला नया नहीं है और उन्होंने मेल के भी स्क्रीन शॉट लगाये थे।
इस पूरे मामले पर जिस प्रकार से मीडिया का एक धड़ा मौन है, वह स्वयं में कई प्रश्न उठाता है। और जिस प्रकार उन्होंने एक शब्द का प्रयोग किया है, उसे समझना आवश्यक है और जब इसे समझ जाएँगे तो अर्नब और कंगना की पीड़ा को भी समझ जाएँगे। इतना ही नहीं न जाने कितने ऐसे लोग, जिन्हें अभी तक यह राक्षसी हँसी संतुष्ट करने के लिए प्रताड़ित करते रहे थे, वह भी समझ जायेंगे।
डॉ। स्वप्ना जब राजनेताओं से निराश हुईं, तब पुलिस के पास गयीं और जब पुलिस से निराश हुईं तो वह न्यायालय की शरण में गयीं, और अब जब उन्हें लगा कि न्यायालय में भी समय लगेगा, और न्याय मिलने में बहुत बाधाएं हैं तो वह जनता के पास अपना पक्ष लेकर आयी हैं। मुख्यधारा का मीडिया उनके साथ नहीं है। छोटे छोटे मामलों पर आन्दोलन करने वाले सभी स्त्री संगठन शांत है, बस शांत नहीं हैं तो केवल डॉ। स्वप्ना जो अपनी कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं और यह दोहरा रही हैं कि वह हार नहीं मानेंगी और लड़ेंगी क्योंकि संविधान ने उन्हें जीने का अधिकार दिया है और वह इस अधिकार के लिए अंतिम साँस तक लड़ेंगी।
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