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Wednesday, April 24, 2024

स्वामी विवेकानंद – आधुनिक भारत के प्रणेता और हिन्दू धर्म, आध्यात्म, एवं सनातन चेतना के संवाहक

हिन्दू धर्म के संवाहक और सनातन के बहुत बड़े प्रतीक स्वामी विवेकानंद जी की आज, 12 जनवरी को जयंती है। इस दिन को देशभर में राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है । स्वामी विवेकानंद वेदांत के महानतम आधुनिक आचार्य और विश्व भर में भारतीय ज्ञान परम्परा के सबसे बड़े संवाहक माने जाते रहे हैं। वह हमेशा से युवाओं के प्रेरणास्त्रोत रहे हैं, और कहीं ना कहीं आज के युवा भारतीयों पर भी उनके विचार और दर्शन का सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है। आज राष्ट्रीय युवा दिवस के उपलक्ष्य में जानते हैं स्वामी विवेकानंद जी के बारे में कुछ रोचक तथ्य।

स्वामी जी का बचपन

विश्वभर में ख्याति प्राप्त संत, स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था। बचपन में उन्हें नरेन्द्र नाथ दत्त के नाम से जाना जाता था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था, जो कलकत्ता उच्च न्यायालय में अधिवक्ता थे, वहीं उनकी माता श्री भुवनेश्वरी देवी एक गृहणी थीं। वह अपने माता पिता के आठ बच्चों में से एक थे। बचपन से ही अत्यंत मेधावी थे, लेकिन उनकी शिक्षा बहुत अनियमित थी। वह बचपन से ही अत्यंत धार्मिक और आध्यात्मिक थे और अपने संस्कृत और हिन्दू धर्म के ज्ञान के लिए लोकप्रिय थे।

कैसे पड़ा स्वामी विवेकानंद नाम?

नरेंद्र नाथ स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी के विचारों से प्रभावित थे, और उन्होंने उन्हें अपना गुरु मान लिया था। कुछ समय पश्चात उन्होंने सन्यास धारण कर लिया था। अपने परिव्राजक जीवन के दौरान जून 1891 में स्वामी जी राजस्थान के खेतड़ी पहुंचे, जहां उनकी भेंट खेतड़ी नरेश राजा अजीत सिंह से हुई थी। राजा अजीत सिंह स्वामी जी को अपना गुरु मानते थे और दोनों के सम्बन्ध आजीवन प्रगाढ़ रहे। राजा अजीत सिंह के कहने पर ही स्वामी जी ने अपना नाम विवेकानंद रखा था।

स्वामी विवेकानंद – एक सच्चे गुरुभक्त

स्वामी विवेकानंद हमेशा सत्य बोलने के लिए जाने जाते थे, वह अच्छे विद्वान होने के साथ ही एक अच्छे खिलाड़ी भी थे। वह बचपन से ही परमेश्वर की प्राप्ति के लिए जिज्ञासा रखते थे। एक दिन वह श्री स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी से मिले, और उसके पश्चात उनके अंदर आध्यात्मिकता का एक नया ज्वार ही आ गया था। स्वामी विवेकानंद वास्तव में एक सच्चे गुरुभक्त भी थे क्योंकि इतनी प्रसिद्धि पाने के बाद भी उन्होंने सदैव अपने गुरु को याद रखा और रामकृष्ण मिशन की स्थापना करते हुए, अपने गुरु का नाम रोशन किया।

शिकागो धर्म महासभा में चमका हिंदुत्व और भारतीय संस्कृति का सितारा

स्वामी विवेकानंद को जाना जाता है 11 सितंबर 1893 को शिकागो धर्म महासभा में हिंदुत्व और भारतीय संस्कृति का परचम लहराने के लिए। उनके इस कृत्य ने सम्पूर्ण विश्व का ध्यान भारत की ओर आकृष्ट किया था और उन्हें अपार ख्याति प्राप्त हुई थी। उन्होंने ज्ञान तथा शब्दों द्वारा पूरी दुनिया में हिंदु धर्म के विषय में लोगो की मानसिकता को बदल कर रख दिया था, और साथ ही लोगो को अध्यात्म तथा वेदांत से परिचित कराया।

अपने इस भाषण में उन्होंने विश्व भर को भारत के अतिथि देवो भवः, सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकार्यता के विषय से परिचित कराया। उन्होंने बताया था कि जिस प्रकार भिन्न-भिन्न नदियां अंत में समुद्र में ही मिलती हैं, उसी प्रकार विश्व के सभी धर्म अंत में ईश्वर तक ही पहुंचाते हैं और समाज में फैली कट्टरता तथा सांप्रदायिकता को रोकने के लिए, हम सबको आगे आना होगा क्योंकि बिना सौहार्द तथा भाईचारे के विश्व तथा मानवता का पूर्ण विकास संभव नही है।

शिकागो में ऐतिहासिक भाषण देने के पश्चात सो नहीं पाए थे स्वामी जी

शिकागो में दिए गए ऐतिहासिक भाषण के पश्चात स्वामी जी को एक धनकुबेर ने अपने सुसज्जित भवन में राजकीय सम्मान के साथ ठहराया था। लेकिन कहा जाता है कि वह पूरी रात सो नहीं पाए थे। स्वामी जी रोते हुए धरती पर लेट गए और मां काली को पुकार कर कहने लगे, मां मैं इस नाम-यश-प्रसिद्धि का क्या करूँ जबकि मेरा देश गरीबी गुलामी और अशिक्षा में जकड़ा हुआ है। वास्तव में, स्वामी विवेकानंद के भीतर पीड़ितों और असहायों के लिए अथाह संवेदना थी। जितना अधिक वह पाश्चात्य का वैभव देखते उतना ही भारत की गरीबी-गुलामी को याद कर उनका हृदय चीत्कार उठता। संवेदना के इन्हीं क्षणों ने उनके भीतर शिव भाव से जीव सेवा करने के विचार को तीव्रता दी, और इसी ने उनके जीवन की दिशा भी बदली।

स्वामी विवेकानंद ने किया विश्व भ्रमण और फैलाया वेदांत का सन्देश

परिव्राजक के रूप में स्वामी जी ने सम्पूर्ण भारत की यात्राएं की। उन्होंने भारत समेत और विश्व के कई देशों में यात्राएं कर एक ओर जहां समाज की बुनावट को जाना तो वहीं विश्व को वेदान्त का सार्वभौम संदेश भी सुनाया। स्वामी विवेकानंद के पाश्चात्य देशों की यात्रा करने के दो ही उद्देश्य थे। प्रथम, भारत के अविनाशी जीवन तत्व आध्यात्म से विश्व का परिचय करवाना और दूसरा विदेशी संस्कृति के छद्म प्रभाव में डूबे लोगों को राह दिखाना। स्वामी जी ने भारत में कश्मीर, असम , रामेश्वरम, राजस्थान, मेरठ,दिल्ली, रायपुर, पुणे, कलकत्ता और मद्रास समेत अधिकांश नगरों और अन्य ग्रामीण इकाईयों की यात्रा की थी। वहीं विदेशों में अमेरिका के प्रमुख नगरों जैसे न्यूयॉर्क, सैनफ्रांसिस्को, शिकागो, फ्रांस में पेरिस, विएना, हंगरी, नेपाल,श्रीलंका इत्यादि देशों की यात्रा भी की थी।

सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध थे स्वामी विवेकानंद

भारतीय समाज की तत्कालीन कुरीतियों पर स्वामी विवेकानंद ने खूब प्रहार किया। जातिवाद, शोषण, भुखमरी और अन्याय से देशवासियों की दुदर्शा को देखकर उनका अंतःकरण कराह उठता था। वह कहते कि जब तक करोड़ों लोग गरीबी, भुखमरी और अज्ञान का शिकार हो रहे हैं, तब तक मैं हर उस व्यक्ति को शोषक मानता हूं, जिसने इनके पैसों से शिक्षा प्राप्त की, लेकिन अब उनकी ओर जरा भी ध्यान नहीं दे रहा है। पूर्वाग्रह और अंधविश्वास से भरे-बंटे समाज को उनके कठोर आघात ने करवट बदलने पर मजबूर किया। वास्तव में स्वामी विवेकानंद ने भारत को दीर्घकालव्यापी सम्मोहन की निद्रा से जगाया और नागरिको को उनका खोया हुआ आत्मविश्वास और व्यक्तित्व भी वापस लौटाया।

हम यही कहेंगे कि स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुष सदियों में एक बार ही जन्म लेते हैं, जो अपने जीवन के पश्चात भी लोगो को निरंतर प्रेरणा देने वाले पुंज के रूप में प्रकाशित होते रहे हैं। यदि हम उनके बताई गई बातों पर अमल करें, तो हम समाज से हर तरह की कट्टरता और बुराई को दूर करने में सफल हो सकते हैं। उनके हिन्दू धर्म और संस्कृति के प्रति विचारों को हमें याद करना चाहिए, क्योंकि आज जो सभ्यता का युद्ध हमे लड़ने के लिए विवश हैं, उसमे जीतने के लिए स्वामी जी के विचार ही हमारी सहायता कर सकते हैं।

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