नुपुर शर्मा पर अपनी आक्रामक टिप्पणियों के चलते न्यायमूर्ति द्विय जनता के विरोध का निरंतर सामना कर रहे थे। न्यायमूर्तियों ने व्यक्तिगत मत देते हुए कहा था कि नुपुर को टीवी पर आकर माफी मांगनी चाहिए, इसके अतिरिक्त न्यायालय ने नूपुर शर्मा को देश भर में हो रही जिहादी हिंसक घटनाओं के लिए भी जिम्मेदार ठहरा दिया है।
न्यायालय ने याचिका तो निरस्त की, परन्तु अकारण टिप्पणियाँ भी कीं!
नुपुर शर्मा पर कई स्थानों पर एफआईआर दर्ज हुई थी तो उन्होंने उच्चतम न्यायालय से यह अनुरोध किया था कि वह एक ही स्थान पर उनकी सभी एफआईआर को सुनने का आदेश दे दें? परन्तु न्यायमूर्ति द्विय ने जो टिप्पणियाँ कीं, वह कहीं न कहीं लोगों को लगा कि उसी जिहादी सोच का समर्थन कर रही हैं, जिसने नुपुर शर्मा को धमकी ही नहीं दी है, बल्कि कन्हैया लाल और उमेश कोल्हे की हत्या भी की है!
अपने व्यक्तिगत मतों द्वारा न्यायालय ने एक बहुत ही गलत परिपाटी रख दी है, और भविष्य में उनके कथन का दुरूपयोग किया जाएगा। इस्लाम के किसी प्रतीक या नबी का अपमान हुआ है या नहीं, यह अभी जाँच का विषय है, परन्तु इस मामले की शुरुआत हुई थी काशी के ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंग मिलने से, जिसका अपमान किया गया था। टीवी चैनल पर इस्लामिक पक्षकारों ने ना सिर्फ शिवलिंग का अपमान किया, बल्कि हिन्दू धर्म की मान्यताओं का भी मखौल उड़ाया, लेकिन किसी हिन्दू ने कोई हिंसक प्रतिक्रिया नहीं दी। क्या न्यायमूर्तियों को यह नहीं दिखता?
इस तरह की आपत्तिजनक टिप्पणी कर के न्यायालय ने नूपुर शर्मा को एक बहुत बड़े खतरे में डाल दिया है, और उसके पीछे पड़े लोगो को एक बहाना दे दिया है उसे निशाना बनाने का। ऐसा उदाहरण आपको भारत के इतिहास में दूसरा नहीं मिलेगा, जहां इस तरह खुल कर न्यायाधीशों ने किसी वादी को इस तरह से निशाना बनाया हो। क्या न्यायाधीश भूल गए कि वह स्वयं ऐसे पद पर हैं, जहाँ पर उनके द्वारा व्यक्त कथनों का प्रभाव जनता पर कितना अधिक हो सकता है?
जनता ने किया विरोध तो आलोचना से क्षुब्ध हुए न्यायमूर्ति पादरीवाला
जैसा कि आशा थी, जनता ने इस मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध सोशल मीडिया पर प्रतिरोध करना शुरू कर दिया था। कुछ लोगों ने दोनों न्यायाधीशों के राजनीतिक सूत्र निकालने का प्रयत्न किया, कुछ ने इनके पुराने निर्णयों का हवाला दे कर इनकी क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगाए। उच्चतम न्यायलय के विरुद्ध इस तरह का आक्रोश पहले देखने को नहीं मिला है, और इसके लिए कहीं ना कहीं न्यायपालिका ही दोषी है।
जनता अत्यंत कुपित है एवं जनता अपना क्रोध और क्षोभ सोशल मीडिया के माध्यम से निकाल रही है, यही कारण है कि अब इस स्वतंत्रता पर भी चाबुक चलाने की तैयारी हो रही है!
इस विषय पर सोशल मीडिया पर चहुओर हो रही आलोचना से विचलित हुए न्यायाधीश पादरीवाला ने सोशल मीडिया पर लगाम लगाने की ही सलाह दे दी। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर लोग आधी अधूरी जानकारी रखते हैं, उन्हें न्यायायिक प्रक्रिया के बारे में जानकारी नहीं होती, और यही कारण है कि लोग आधा अधूरा सत्य ही परोसते हैं। उन्होंने न्यायाधीशों पर निजी हमलों का भी विरोध किया और कहा कि सोशल मीडिया द्वारा न्यायायिक प्रक्रिया और संस्थानों की गरिमा को गिराने के प्रयास होते हैं।
हालांकि वह इस बात को भूल गए कि उन्होंने स्वयं नूपुर शर्मा मामले में निजी टिप्पणियां की हैं। यह मामला अभी विधिक प्रक्रिया से गुजर रहा है, और बिना किसी साक्ष्य के उन्होंने एक आरोपी को दोषी बता दिया है। क्या उन्होंने नूपुर शर्मा को देश भर की जिहादी घटनाओं के लिए उत्तरदायी बता एक व्यक्तिगत हमला नहीं किया है?
क्या न्यायमूर्ति अब जनता का अपनी बात रखने का अंतिम मंच भी छीन लेना चाहते हैं? प्रश्न यही उभर कर आता है!