पिछले कुछ दिनों से रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर काफी हलचल रही थी। जम्मू में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों की जांच की बात भी सामने आई और फिर अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों की पहचान भी की गयी, हंगामा हुआ, शोर हुआ और फिर अब शान्ति है। खैर उसके बाद याचिका डाली गयी कि उन्हें जम्मू से न हटाया जाए। जबकि कई आपराधिक घटनाओं में इनका हाथ मिल चुका है, यहाँ तक कि जम्मू के सुंजवां मिलिट्री स्टेशन पर हुए आतंकी हमले में भी इनकी भूमिका सामने आई थी। फिर भी प्रश्न यह है कि हिन्दू बहुल जम्मू क्षेत्र में इन्हें बसाने में कोई योजना थी या फिर यह स्वाभाविक था।
प्रश्न यह भी है कि आखिर इनके मददगार इतने क्यों और कैसे हैं? यहाँ तक कि प्रशांत भूषण भी अंतर्राष्ट्रीय क़ानून का हवाला लेकर इनके बचाव में आ गए हैं और उन्होंने ही बहस की है। जब भी रोहिंग्या मुसलमानों की बात आती है तो एक बहुत ही हैरानी की बात आती है कि सारा मीडिया केवल इसी बात पर ध्यान केन्द्रित करता है कि इसे हिन्दू-मुसलमान क्यों बनाया जा रहा है।
एक बात स्पष्ट रूप से समझनी चाहिए कि मुस्लिमों के 50 से अधिक देश हैं, उन्हें कोई भी मुस्लिम देश शरण दे सकता है, मगर बांग्लादेश के अलावा किसी भी मुस्लिम देश ने रोहिंग्या मुसलमानों को शरण नहीं दी है। यह भी एक प्रश्न है कि यदि यह इतने ही पीड़ित हैं तो उनकी सहायता हर मुस्लिम देश को करनी चाहिए थी, पर उन्होंने नहीं की।
खैर, भारत पर आते हैं। इस बात के हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं कि रोहिंग्या कहीं न जाएं। परन्तु कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर कई जनहित याचिकाओं को दायर करने के लिए मशहूर अधिवक्ता एवं भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने इस मामले पर भी एक याचिका उच्चतम न्यायालय में दायर की थी तथा उसी के आधार पर कल उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार से जबाव माँगा है।
इस याचिका में केंद्र और राज्य सरकार दोनों को ही यह नोटिस जारी करने का अनुरोध किया गया था कि वह एक वर्ष में बांग्लादेशी, रोहिंग्या समेत सभी अवैध घुसपैठियों को उनके मूल देश वापस भेज दें। इसी याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार एवं सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को नोटिस जारी किया है।
कल अर्थात 27 मार्च को टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक खबर के अनुसार केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया था कि वह इस मामले से दूर रहें। सरकार की ओर से कहा गया है कि वह अवैध प्रवासियों की राजधानी नहीं हो सकता है। इतना ही नहीं सरकार ने यह भी उच्चतम न्यायालय से कहा कि विदेशों में कोई सरकार कैसे सम्बन्ध रखती है, यह निर्धारित करना न्यायालय का कार्य नहीं है।
केंद्र सरकार ने यह उत्तर एक रोहिंग्या मुसलमान की याचिका पर दिया था, जिसे प्रशांत भूषण प्रस्तुत कर रहे थे। इसी याचिका में प्रशांत भूषण ने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के निर्णय का हवाला देते हुए कहा था कि म्यांमार में सैन्य सरकार इनके साथ अत्याचार करेगी। पर प्रशांत भूषण यह नहीं बताते कि आखिर अपने ही नागरिकों पर कोई सरकार अत्याचार कैसे कर सकती है?
परन्तु अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि ऐसे अवैध नागरिकों से भारत को बहुत खतरा है, उन्होंने याचिका में कहा कि म्यांमार और बांग्लादेश से आने वाले यह समस्त रोहिंग्या मुसलमान देश का जनसँख्या संतुलन बिगाड़ रहे हैं और यह न केवल देश की सुरक्षा बल्कि अखंडता के लिए भी खतरा है।
अश्विनी उपाध्याय अपनी याचिका में कई अनुरोध किए हैं, जिनमें एक अनुरोध यह भी है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा केंद्र एवं राज्य सरकारों को यह निर्देश दिया जाए कि जाली रूप से पैन, आधार कार्ड, पासपोर्ट, राशन और वोटर पहचानपत्र और शेष दस्तावेजों को बनाना गैर कानूनी और अवैध घोषित किया जाए।
अश्विनी उपाध्याय के अतिरिक्त यदि अन्य रिपोर्ट पर नज़र डालते हैं तो एक बहुत ही अजीब बात दिखती है कि एक ही लॉबी है जो नागरिकता संशोधन के खिलाफ न्यायालय में जाती है और रोहिंग्या और बंगलादेशी अवैध नागरिकों के पक्ष में न्यायालय में जाती है। बलात्कार के बढ़ते आंकड़ों के खिलाफ भी यह लोग सड़क पर उतरते हैं और बलात्कारियों को फाँसी न दी जाए, इसबात पर भी वह लोग सड़क पर उतरते हैं।
और यह लोग इस बात को लेकर भी सड़क पर उतरते हैं, कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से हिन्दुओं को वापस लाने के लिए कानून न बनें। इतना ही नहीं, एक विशेष मीडिया वर्ग तो उन्हें भड़काने के लिए भी तैयार हो जाता है। वर्ष 2017 में बीबीसी में शकील अख्तर ने नजरिया पेश किया था कि क्या नरेंद्र मोदी रोहिंग्या संकट पर हिंदू कार्ड खेल रहे हैं।
यह बेहद ही अजीब बात है कि जो मसला देश की सुरक्षा और देश के संसाधनों पर अधिकार से जुड़ा हुआ है उसे एक विशेष मीडिया जानबूझ कर हिन्दू और मुसलमान कर रहा है, जबकि अश्विनी उपाध्याय स्पष्ट अपनी याचिका में कहते हैं कि आज भारत में कम से कम चार करोड़ घुसपैठिये रह रहे हैं। यह भी एक प्रश्न है कि क्या यह चार करोड़ लोग भारत के उन संसाधनों का प्रयोग नहीं कर रहे हैं, जो केवल और केवल इस देश के नागरिकों के लिए हैं?
अब यह उच्चतम न्यायालय पर निर्भर है कि वह क्या निर्णय लेते हैं?
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