HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
23.2 C
Sringeri
Thursday, June 8, 2023

नवरात्रि के नौ दिन- हिन्दू स्त्रियों की कुछ कथाएँ – आज की कथा – शबरी

नवरात्रि आते ही वाम पोषित फेमिनिज्म हिन्दू स्त्रियों के विषय में रोना आरम्भ कर देता है कि हिन्दू स्त्रियाँ दुर्बल थीं, और शोषण होता था, स्त्रियों को पहले सबल बनाया जाए आदि आदि! आइये इन नौ दिनों तक हम अपने अतीत में झाँकने का प्रयास करते हैं कि क्या वास्तव में ऐसा कुछ था या फिर यह मानसिक रूप से हिन्दू स्त्रियों को तोड़ने का षड्यंत्र था।

जब बात आती है स्त्री योद्धाओं की तो यह लोग यह कहते हैं कि वह तो रानियाँ होती थीं, उनके पास समस्त सुख सुविधाएं थीं, तो वह हो सकती थीं योद्धा! दरअसल यह पूरी की पूरी कवायद हिन्दू स्त्रियों के भीतर एक हीनभावना का विस्तार करने की थी, जिससे वह अपने अस्तित्व तक से घृणा करने लगें एवं समाज में स्त्री और पुरुष के मध्य विवाद उत्पन्न हो। इस हेतु उन्होंने स्त्रियों को पहले उनके गौरवपूर्ण अतीत से दूर करने का मार्ग चुना।

कहा गया कि स्त्रियों के भीतर कला नहीं थी। स्त्रियों को कला करने की अनुमति नहीं थी। जबकि वाल्मीकि रामायण में जब अयोध्या का वर्णन वाल्मीकि जी कर रहे हैं, उनमें स्त्रियों के लिए रंगशाला का वर्णन है। बालकाण्ड में वह लिखते हैं:

वधू

नाटकसंघैश्च संयुक्ताम सर्वत: पुरीम

उद्यानाम्र्वणोंपेतां महतीं सालमेखलाम (बालकाण्ड- सर्ग पांच 12)    

अर्थात

स्त्रियों की नाट्य समितियों की भी उसमें कमी नहीं थी एवं सर्वत्र जगह जगह उद्यान थे।

आगे वह लिखते हैं

प्रासादै रत्नविक्रतै: पर्वतैशोभिताम

कूटागारैश्च सम्पूर्णामिन्द्रस्येवामरावतीम

रत्नों से भरे महलों और पर्वतों से वह पुरी शोभायमान हो रही थी, वहां पर स्त्रियों के क्रीड़ागृह भी बने हुए थे, जिनकी सुन्दरता देखकर यही जान पड़ता था, मानो यह दूसरी अमरावती पुरी है।

यह आम स्त्रियों की बात है कि आम स्त्रियों के लिए नाट्यशाला एवं क्रीड़ागृह हुआ करते थे।

रामायण में ही कई स्त्री योद्धाओं का उल्लेख प्राप्त होता है, जिसमें कैकयी सबसे मुख्य हैं। यह कथा सभी को ज्ञात है कि कैकयी द्वारा युद्ध में प्राणों की रक्षा के कारण ही महाराज दशरथ ने उन्हें दो वरदान दिए थे।

इसी प्रकार रामायण में ही यह प्राप्त होता है कि जहाँ मानवों में कैकयी योद्धा थीं, तो वहीं सुमित्रा का उल्लेख ऐसी स्त्री के विषय में होता है जो प्रबंधन में कुशल थीं। रामायण में शबरी हैं। जो इस कथा का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव है, और जिन्हें मात्र शबरी के झूठे बेर तक सीमित कर दिया है। वाल्मीकि रामायण में शबरी का उल्लेख किस प्रकार है वह देखते हैं।

राम ने शबरी से उसकी तपस्या के विषय में अवश्य पूछा जो यह प्रमाणित करता है कि शबरी एक ज्ञानी स्त्री थी।

परन्तु राम कहते हैं न कि भक्त और ज्ञानी में से भक्त महान होता है, इसी प्रकार शबरी का तपस्या वाला रूप भक्ति के रूप के कहीं पीछे दब जाता है।  राम उनसे पूछते हैं:

“कच्चिते निर्जिता विघ्ना कच्चिते वर्धते तप:

कच्चिते नियत: क्रोध आहाराश्च तपोधने।

(वाल्मीकि रामायण अरण्य काण्ड 74/8)

अर्थात कामादि छ: रिपुओं को जो तपस्या में विघ्न डाला करते हैं वह तुमने जीत तो लिया है? तुम्हारी तपस्या उत्तरोत्तर बढ़ती तो जाती है? तुमने क्रोध को वश में कर रखा है? हे तपोधने, तुम आहार में संभल कर तो रहती हो?

फिर उसके उपरान्त वह लिखते हैं:

कच्चिते नियम: प्राप्त: कच्चिते मनस: सुखम

कच्चिते गुरुशुश्रषा सफला चारुभाषिणी

(वाल्मीकि रामायण अरण्य काण्ड 74/9)

अर्थात  हे चारुभाषिणी, तुम्हार सभी व्रत तो ठीक ठाक चले जाते हैं? तुम्हारा मन संतुष्ट तो रहता है? क्या तुम्हारी सेवा शुश्रुषा सफल हुई?

राम के इन प्रश्नों का शबरी उत्तर देते हुए कहती हैं

अद्य प्राप्ता तप: सिद्धिस्तव संदर्शनानम्या

अद्य में सफलं तप्तं गुरुवश्च सपूजिता:

(वाल्मीकि रामायण अरण्य काण्ड 74/11)

अर्थात आपके दर्शन करके मुझे आज तप करने का फल मिल गया। आज मेरा तप करना और गुरु की सेवा करना सफल हुआ।

वाल्मीकि रामायण में आगे लिखा है कि जब शबरी राम से कहती हैं कि उन्होंने पम्पा सरोवर के निकटवर्ती वन से वन में उत्पन्न होने वाले अनेक कंदमूल फलों को इकट्ठा कर रखा है।

वाल्मीकि रामायण में आदि  कवि वाल्मीकि शबरी को अति दुर्लभ परमात्मा का ज्ञान रखने वाली की संज्ञा देते हैं।

शबरी कोई बेचारी वृद्ध स्त्री नहीं है जो राम की प्रतीक्षा में है, अपितु वह तो इतनी मजबूत स्त्री है कि वह इतने बड़े आश्रम का रखरखाव एवं देखभाल कर रही है, अकेली। इसीके साथ वह तप और जप भी कर रही है।

राम और लक्ष्मण को भली भांति आश्रम दिखाने के उपरान्त वह आज्ञा मांगती है और स्वयं को अग्नि में समर्पित कर इस देह को त्याग देती है।

अब प्रश्न यह है कि जिस शबरी को श्रमणी कहकर संबोधित किया गया है एवं जिस शबरी को तप जप एवं यज्ञ का ज्ञान है उसे मात्र झूठे बेर खिलाने तक ही सीमित क्यों किया गया? वह अध्यात्म की वह गंगा है जो कईयों को राह दिखा सकती है। शबरी को तप के समस्त नियमों का ज्ञान है, अर्थात वह शिक्षित है। वह महानारी है जो अपने गुरु के आदेश का पालन कर रही है।

परन्तु भक्ति की धारा में वह मात्र प्रभु श्री राम को झूठे बेर खिलाने तक ही सीमित रह गईं और इसका लाभ वामपंथियों ने उठाया, और उन्हें एक ऐसी निरीह स्त्री के रूप में परोसा गया, जो विवशतावश ही प्रभु श्री राम की प्रतीक्षा में थी।

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.