spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
31.2 C
Sringeri
Friday, April 19, 2024

विश्व कविता दिवस पर राष्ट्रवादी कविता के स्वर

हर वर्ष 21 मार्च को विश्व कविता दिवस (World Poetry Day) मनाया जाता है। वर्ष 1999 में यूनेस्को ने अपने 30 वें सम्मलेन के दौरान कवियों और कविता की सृजनात्मक क्षमता को सम्मानित करने के लिए यह सम्मान देने की घोषणा की थी। भारत प्राचीन काल से ही हर कला का केंद्र रहा है।

भरत मुनि द्वारा रचित नाट्यशास्त्र से लेकर कालिदास के अभिज्ञान शाकुंतलम और जयशंकर प्रसाद की कामायनी तक रचनाओं ने एक लम्बी यात्रा की है।  इस यात्रा में भारत में कई महान कवि हुए, जिन्होनें इस देश के मानस को प्रभावित किया और भारत जब अंग्रेजों के शासनकाल में अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रहा था, उन दिनों कवि भी मौन नहीं थे । वह लिख रहे थे । 

वन्देमातरम से लेकर हिमाद्री तुंग श्रृंग तक व्यक्ति की चेतना को उद्वेलित कर रही थीं । यह वह दौर था जब हर व्यक्ति अपने अपने स्तर पर इस स्वाधीनता यज्ञ में अपनी आहुति देना चाहते थे ।  इस लेख में आइये उसी दौर की कविताओं को याद करते हैं, जिन्हें इस कथित आज़ादी के दौर की कविताओं में भुला दिया गया है । एक वह कवि थे जो सच्ची स्वतंत्रता के लिए लड़े और एक  कवि वह हैं, जो भारत को तोड़ने वाली आज़ादी के नारे लगा रहे हैं ।  

सबसे पहले बात करते हैं कवि शिरोमणि भूषण शिवा बावनी की । हालांकि भूषण रीतिकालीन कवि थे, परन्तु उनकी यह रचना वीर रस का अनुपम उदाहरण है । इसमें उन्होंने शिवाजी की युद्ध यात्रा का वर्णन किया है । वह लिखते हैं: 

साजि चतुरंग बीररंग में तुरंग चढ़ि।

सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है॥

भूषन भनत नाद विहद नगारन के।

नदी नद मद गैबरन के रलत हैं॥

ऐल फैल खैल भैल खलक में गैल गैल,

गाजन की ठेल-पेल सैल उसलत है।

तारा सों तरनि घूरि धरा में लगत जिमि,

थारा पर पारा पारावार यों हलत है॥

इन पंक्तियों में भूषण शिवाजी की युद्ध यात्रा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि शिवाजी अत्यंत उत्साह से अपनी चतुरंगिनी सेना तैयार करके घोड़े पर सवार होकर युद्ध में विजय प्राप्त करने जा रहे हैं । नगाड़े बज रहे हैं । सेना की धूम के मारे धूल आकाश में छा गयी है ।

उसके आगे वह लिखते हैं :

प्रेतिनी पिसाचरु निसाचर निसाचरहू

मिलि मिलि आपुसमें गावत बधाई हैं,

भैरों, भूत प्रेत भूरि भूघर भयंकर से,

जुत्थ जुत्थ जोगिनी जमाति जुरि आई है,

किलकि किलकि कै कुतुहल करति काली,

डिम डिम डमरू दिगंबर बजाई है, 

सिवा पूछैं सिव सों, “समाजु आजु कहाँ चली?” 

काहू पे सिवा नरेस भृकुटी चढ़ाई है ।

यह पूरी पुस्तक ओज से परिपूर्ण है एवं वह ऐसा उत्साह जगाती थी कि इसका अध्ययन करने वाले देश के लिए लड़ने के लिए समर्पित हो जाते थे ।  परन्तु यह दुर्भाग्य ही है कि आज इसका वाचन करना साम्प्रदायिक माना जाता है, एवं आज के कवि इस कविता को पूरी तरह उपेक्षित कर देते हैं ।

श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’

यद्यपि इन्हें “विजयी विश्व तिरंगा प्यारा” के सृजन के कारण अधिक जाना जाता है, परन्तु इनकी शेष रचनाएं भी देशप्रेम से ओतप्रोत रही हैं । वर्ष 1922 में लिखी गयी एक और कविता देखते हैं:

महर्षि मोहन के मुख से निकला, स्वतन्त्र भारत, स्वतन्त्र भारत।

सचेत होकर सुना सभी ने, स्वतन्त्र भारत, स्वतन्त्र भारत।

रहा हमेशा स्वतन्त्र भारत, रहेगा फिर भी स्वतन्त्र भारत।

कहेंगे जेलों में बैठकर भी, स्वतन्त्र भारत, स्वतन्त्र भारत।

कुमारि, हिमगिरि, अटक, कटक में, बजेगा डंका स्वतन्त्रता का।

कहेंगे तैतिस करोड़ मिलकर, स्वतन्त्र भारत, स्वतन्त्र भारत।

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत कविताएँ लिखी हैं । उन्होंने अपनी कविता मातृभूमि में अपनी मातृभूमि के विषय में मुक्त कंठ से प्रशंसा की है, वह लिखते हैं:

जो आवश्यक होते हमें, मिलते सभी पदार्थ हैं।

हे मातृभूमि! वसुधा, धरा, तेरे नाम यथार्थ हैं॥

क्षमामयी, तू दयामयी है, क्षेममयी है।

सुधामयी, वात्सल्यमयी, तू प्रेममयी है॥

विभवशालिनी, विश्वपालिनी, दुःखहर्त्री है।

भय निवारिणी, शान्तिकारिणी, सुखकर्त्री है॥

हे शरणदायिनी देवि, तू करती सब का त्राण है।

हे मातृभूमि! सन्तान हम, तू जननी, तू प्राण है॥

जिस पृथ्वी में मिले हमारे पूर्वज प्यारे।

उससे हे भगवान! कभी हम रहें न न्यारे॥

लोट-लोट कर वहीं हृदय को शान्त करेंगे।

उसमें मिलते समय मृत्यु से नहीं डरेंगे॥

उस मातृभूमि की धूल में, जब पूरे सन जायेंगे।

होकर भव-बन्धन- मुक्त हम, आत्म रूप बन जायेंगे॥

स्वतंत्रता आन्दोलन के समय कई कवि थे जो स्वतंत्रता के लिए मशाल जला रहे थे । जैसे बालकृष्ण शर्मा नवीन । उनकी कविताएँ परम्परा के साथ साथ समकालीनता के कविताएँ हैं । इनकी कविताओं में राष्ट्रीय आन्दोलन की चेतना के साथ गांधी दर्शन की संवेदना भी परिलक्षित होता है ।  उनकी कविता में राष्ट्र प्रेम का आह्वान देखते हैं:

कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ,

जिससे उथल-पुथल मच जाए,

एक हिलोर इधर से आए,

एक हिलोर उधर से आए,

प्राणों के लाले पड़ जाएँ,

त्राहि-त्राहि रव नभ में छाए,

नाश और सत्यानाशों का –

धुँआधार जग में छा जाए,

बरसे आग, जलद जल जाएँ,

भस्मसात भूधर हो जाएँ,

पाप-पुण्य सद्सद भावों की,

धूल उड़ उठे दायें-बायें,

नभ का वक्षस्थल फट जाए-

तारे टूक-टूक हो जाएँ

कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ,

जिससे उथल-पुथल मच जाए।

माता की छाती का अमृत-

मय पय काल-कूट हो जाए,

आँखों का पानी सूखे,

वे शोणित की घूँटें हो जाएँ,

एक ओर कायरता काँपे,

गतानुगति विगलित हो जाए,

अंधे मूढ़ विचारों की वह

अचल शिला विचलित हो जाए,

राष्ट्रवादी स्वरों में सबसे महत्वपूर्ण स्वर है जयशंकर प्रसाद का । वह चेतना के कवि हैं, वह प्रेरित करते हुए लिखते हैं:

इस पथ का उद्देश्य नहीं है श्रांत भवन में टिक रहना,

किंतु पहुंचना उस सीमा पर जिसके आगे राह नहीं।

उनकी कविता ‘भारत महिमा’ में भारत की महिमा को व्यक्त किया गया है:

हिमालय के आँगन में उसे, प्रथम किरणों का दे उपहार

उषा ने हँस अभिनंदन किया और पहनाया हीरक-हार

 

जगे हम, लगे जगाने विश्व, लोक में फैला फिर आलोक

व्योम-तम पुँज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक

 

विमल वाणी ने वीणा ली, कमल कोमल कर में सप्रीत

सप्तस्वर सप्तसिंधु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम-संगीत

 

बचाकर बीज रूप से सृष्टि, नाव पर झेल प्रलय का शीत

अरुण-केतन लेकर निज हाथ, वरुण-पथ पर हम बढ़े अभीत

 

सुना है वह दधीचि का त्याग, हमारी जातीयता विकास

पुरंदर ने पवि से है लिखा, अस्थि-युग का मेरा इतिहास

 

सिंधु-सा विस्तृत और अथाह, एक निर्वासित का उत्साह

दे रही अभी दिखाई भग्न, मग्न रत्नाकर में वह राह

 

धर्म का ले लेकर जो नाम, हुआ करती बलि कर दी बंद

हमीं ने दिया शांति-संदेश, सुखी होते देकर आनंद

 

विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम

भिक्षु होकर रहते सम्राट, दया दिखलाते घर-घर घूम

 

यवन को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि

मिला था स्वर्ण-भूमि को रत्न, शील की सिंहल को भी सृष्टि

 

किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पालना यहीं

हमारी जन्मभूमि थी यहीं, कहीं से हम आए थे नहीं

 

जातियों का उत्थान-पतन, आँधियाँ, झड़ी, प्रचंड समीर

खड़े देखा, झेला हँसते, प्रलय में पले हुए हम वीर

 

चरित थे पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न

हृदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न

 

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे सदा हमारे देव

वचन में सत्य, हृदय में तेज, प्रतिज्ञा मे रहती थी टेव

 

वही है रक्त, वही है देश, वही साहस है, वैसा ज्ञान

वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य-संतान

 

जियें तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष

निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष

यह विडंबना ही कही जाएगी कि कल जब विश्व कविता दिवस की बधाइयों का आदान प्रदान चल रहा था, उस समय यह सभी कविताएँ नेपथ्य में थीं । राष्ट्रीय चेतना की इन कविताओं को मुख्यधारा से क्यों गायब कर दिया गया है ।

आज समय की आवश्यकता है कि हम एक बार पुन: इन राष्ट्रवादी कविताओं का पुनर्पाठ करें, ताकि वर्तमान में छद्म आज़ादी और देश को तोड़ने वाली आज़ादी के नारों का सामना कर सकें, यह कह सकें कि वह स्वतंत्रता थी, आज़ादी राष्ट्र को तोड़ने का नाम नहीं है, अपितु स्वतंत्रता का अर्थ है अपनी मातृभूमि को आतताइयों से मुक्त कराना ।


क्या आप को यह  लेख उपयोगी लगा? हम एक गैर-लाभ (non-profit) संस्था हैं। एक दान करें और हमारी पत्रकारिता के लिए अपना योगदान दें।

हिन्दुपोस्ट अब Telegram पर भी उपलब्ध है। हिन्दू समाज से सम्बंधित श्रेष्ठतम लेखों और समाचार समावेशन के लिए  Telegram पर हिन्दुपोस्ट से जुड़ें ।

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.