अब तक मीडिया के माध्यम से सुपर मैन बने और मसीहा बने सोनू सूद कुछ मुसीबत में घिरे हुए दिखाई दे रहे हैं। दरअसल यह प्रश्न सोशल मीडिया सहित कई लोग पूछ रहे थे कि आखिर कैसे कोरोना से सम्बन्धित दवाइयां जो बाज़ार में मौजूद नहीं थी, वह कुछ विशेष राजनेताओं और सोशल मीडिया एक्टिविस्ट के पास पहुँची जा रही हैं।
हिन्दू पोस्ट पर हमने इस कोरोना की दूसरी लहर के शोर के बीच ही बार बार यह प्रश्न उठाया था, कि आखिर जो दवाइयां केवल सरकार ही उपलब्ध करा सकती हैं, वह कुछ लोग उपलब्ध कराने का दावा कैसे कर रहे हैं? इनके पास यह दवाइयां कैसे पहुँच रही हैं? सोनू सूद पर कई और भी आरोप लगे थे कि कैसे इनसे मदद मांगने वाले ट्विटर हैंडल मदद लेने के बाद डिलीट हो जाते हैं।
सुरेश रैना की नानी वाले मामले में भी उन पर क्रेडिट लेने का आरोप लगा था जिसमें मेरठ पुलिस ने सुरेश रैना के ट्वीट के बीस मिनट के भीतर ही सिलेंडर उपलब्ध करा दिया था, मगर उसके पौने घंटे बाद सोनू सूद ने सिलिंडर डिलीवर करने का भरोसा दिया था। इस पर भी नेट पर काफी बवाल मचा था।
मगर ताजा मामला थोडा और गंभीर इसलिए है क्योंकि टिप्पणी उच्च न्यायालय से आई है कि सेलेब्रिटी अपने आपको मसीहा की तरह पेश कर रहे थे, जबकि उन्होंने एक बार भी यह जांचने की कोशिश नहीं की कि क्या वह दवाइयां असली थीं या नकली? या फिर उन तक तो यह दवाइयां गैर कानूनी तरीके से नहीं पहुंचाई जा रही हैं।
https://twitter.com/MeghUpdates/status/1405116333247721475
न्यायालय के शब्दों पर गौर देना आवश्यक है कि उन्होंने सेलेब्रिटी के खुद को मसीहा के रूप में पेश करने पर आपत्ति दर्ज की है। न्यायालय का कहना था कि जब सरकार अपने हर सम्भव प्रयास कर रही है, तो ऐसे में एक समानांतर संस्था क्यों? हम इन दोनों की भूमिका आप पर छोड़ रहे हैं!”

इसी के साथ न्यायालय को सरकारी वकील आशुतोष कुंभकोणि ने सूचित किया कि जिस फाउंडेशन ने कांग्रेस नेता जीशान सिद्दीकी को रेमेदिसिविर इंजेक्शन उपलब्ध कराए थे, उस ट्रस्ट के खिलाफ भी मझगाँव मेट्रोपोलिटन कोर्ट ने आपराधिक मुकदमा दर्ज किया गया है क्योंकि उसके पास उचित लाइसेंस नहीं था।
न्यायालय का प्रश्न भी वही था जो हिन्दू पोस्ट लगातार उठा रहा है कि आखिर किस तरह से कुछ चुनिन्दा कलाकारों और राजनेताओं को कोरोना से सम्बन्धित दवाइयां उपलब्ध हो गईं जबकि पूरे देश में इनकी कमी थी।
यह प्रश्न बार बार उठाया जाता रहा है कि जब ऑक्सीजन की आपूर्ति केवल केंद्र सरकार द्वारा ही राज्य सरकारों को हो रही थीं तो ऐसे में ऑक्सीजन सिलिंडर इन कथित मसीहा कलाकारों के पास कैसे पहुंचे?
एक प्रश्न यह भी उठता है कि क्या कालाबाजारी में इन सभी का भी योगदान रहा? आशुतोष कुंभकोणि ने कहा कि जहां तक सोनू सूद फाउंडेशन की बात है, उसमें राज्य अभी जांच कर रहा है, मगर उसके पास जो दवाइयां आईं वह गोरेगांव में लाइफलाइन मेडिकेयर अस्पताल के भीतर के स्टोर से आईं, जिनका निर्माण सिप्ला कंपनी ने किया था। हालांकि वह दवाइयां राज्य के कोटे में से नहीं थीं।
न्यायालय ने नोट किया कि यह ऐसा लगता है जैसे समानान्तर अधिकृत एजेंसी चलाना!
हमने दिल्ली में भी देखा था कि सोशल मीडिया इन्फ्लुएन्सर और कुछ पत्रकार ही रेमेदेसिविर जैसी दवाइयां और ऑक्सीजन सिलिंडर की व्यवस्था कर रहे थे, और कांग्रेस तो बिना मांगे दूतावासों में भी मदद करने पहुँच गयी थी।
उम्मीद है कि न्यायालय सभी सोशल मीडिया इन्फ़्लुएन्सर एवं लेखकों, पत्रकारों आदि पर कदम उठाएंगे जिन्होनें महामारी की इस दूसरी लहर में सरकार के समानान्तर एक ऐसी व्यवस्था बनाने का प्रयास किया जिसमें न ही यह जांचा जा सकता था कि ऑक्सीजन मेडिकल ऑक्सीजन है या नहीं या रेमेदिसिविर असली है भी या नहीं? या फिर उनके कारण कितने जरूरी लोगों को बेड और आवश्यक दवाइयां नहीं मिल पाईं?
फीचर्ड इमेज: लाइव लॉ
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