उत्तर प्रदेश सरकार ने आल्ट न्यूज़ सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर के विरुद्ध जो भी मामले दर्ज किए गए हैं, उनकी विस्तार से जांच के लिए एक एसआईटी का गठन किया है, जिसका नेतृत्व वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी करेंगे, तथा यह भी सुनिश्चित किया गया कि नवीनतम तकनीक का प्रयोग किया जाएगा,
इस बात पर आम जनता ने हर्ष व्यक्त किया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने मोहम्मद जुबैर पर दर्ज मामलों पर एसआईटी के गठन का आदेश दिया है, अब कम से कम उसका सच पता चलेगा,
भारत में आज तक कोई भी ऐसा सेक्युलर आरोपी नहीं हुआ, जिसके परिवार के आंसू मीडिया ने न दिखाए हों, यहाँ तक कि आतंकियों के परिवारों के आंसू दिखाए, अफजल गुरु के बेटे को नायक बनाया, आतंकियों के अब्बू को आम लोग बताया और लम्बे लम्बे साक्षात्कार लिए गए, यहाँ तक अजमल कसाब तक के गाँव खोजकर वहां तक मीडिया पहुँच गया। फिर ऐसा क्या कारण है कि सरकार विरोधी वाम और इस्लामी गठजोड़ तथा विपक्ष की आँख के तारे फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर के घर वालों के आंसू मीडिया नहीं दिखा रही है?
लोग पूछ रहे हैं कि आखिर जुबैर कौन है? कौन है जो आया और एकदम से छा गया? आखिर ऐसा क्या कारण है कि मीडिया उसके मोहल्ले में जाकर पड़ोसियों से प्रश्न नहीं कर रहा जैसे उदयपुर में कन्हैयालाल के हत्यारों के पड़ोसियों से कर लिए थे? वह किसी भी ऐसे व्यक्ति का साक्षात्कार नहीं छोड़ते हैं, फिर प्रश्न यह उभर कर आ रहा है कि आखिर वह जुबैर के घरवालों से बात क्यों नहीं कर रहे? क्यों नहीं सामने ला रहे? आखिर यह जुबैर कौन है? वर्ष 2014 से पहले क्या वह था? वह कहाँ था? क्या कर रहा था? इस विषय में कहीं भी कोई जानकारी नहीं है!
कोई उसे अजमल कसाब से जोड़ रहा है तो कोई उसे बांग्लादेशी बता रहा है, परन्तु उसका परिवार कहाँ है, वह किस शहर का है, किस मोहल्ले का है, यह किसी को नहीं पता!
यही कारण है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने इस बात का पता लगाने के लिए कि आखिर जुबैर कौन है, एक एसआईटी का गठन करने का निर्णय लिया है, जो उसके विषय में पता लगाएगी
कुछ लोग कह रहे हैं कि वह बांग्लादेशी है और इस विषय में प्रमाण भी प्रस्तुत किए जाएंगे:
वहीं इसी थ्रेड में एक यूजर ने बताया कि जुबैर ने खुद बताया है कि उसने चेन्नई में नोकिया की फैक्ट्री में काम किया है, और चूंकि वह खुद भी वहां पर काम कर चुकी हैं, तो कुछ लोगों को वह जानती हैं, जो बांग्लादेशी हैं और जो भारत में अवैध रूप से आए और भारतीय पहचानपत्र उन्हें हासिल हो जाते हैं
परन्तु इस विषय में भी कुछ लोगों को आपत्ति है। यह वही लॉबी है जिसने आज तक यह जानने का प्रयास नहीं किया है कि आखिर वह व्यक्ति कौन है, जिसने भारत में जानबूझ कर ऐसा वातावरण उत्पन्न किया, जिसका परिणाम अभी तक दिख रहा है, नुपुर शर्मा के मामले में जिसने मुस्लिम देशों में रहने वाले हिन्दुओं को खतरे में जान बूझकर डाला, और हिन्दुओं को बार बार अपमानित किया? आखिर क्या कारण है कि क्यों वह लोग नहीं जानना चाहते या नहीं जानना चाहते हैं?
इसी बात पर तवलीन सिंह को फिल्मनिर्माता विवेक अग्निहोत्री ने उत्तर दिया कि आखिर सभी लोग क्यों उसके लिए इतने पागल हैं? वह न ही पत्रकार है और न ही असली फैक्ट चेकर, वह तो पेशेवर ट्रोल है और वह ट्रोल आर्मी के साथ नफरत फैलाने वाला कट्टर इस्लामिस्ट है, और यह नहीं समझ आता कि #शहरी नक्सली वर्ग के लिए वह इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
जुबैर के विषय में जांच होने का वह समुदाय क्यों विरोध कर रहा है, जो बार बर पारदर्शिता की बातें करता है? क्या इस समबन्ध में कोई पारदर्शिता नहीं होनी चाहिए कि अंतत: जुबैर कौन है? जिसके कारण कथित फैक्ट की सत्यता जांची जाती है, तो क्या इसकी जांच नहीं होनी चाहिए कि आखिर वह कौन है?
लोगों ने उसके पिछले स्क्रीन शॉट साझा किये, जिसमें उसने कई प्रकार की गलत सूचनाएं भी साझा की थीं,
लोग पूछ रहे हैं, कि वर्ष 2012 से पहले उसका कोई रिकॉर्ड नहीं था, वह कहाँ पर पढ़ा है, कहाँ से वह है और अब दूसरे सह-संस्थापक पर यह उत्तरदायित्व है कि वह बताएं कि आखिर जुबैर है कौन और कहाँ पर वह उससे मिला?
जुबैर के अब्बा, अम्मी, बहन, भाई आदि कोई भी सामने क्यों नहीं आ रहा है कि वह उनके परिवार का है? क्या कोई भी परिवार ऐसा हो सकता है कि जो अपने ही सदस्य को ऐसे छोड़ दे? फिर ऐसा क्या रहस्य है कि जुबैर के घरवाले नहीं सामने आ रहे हैं? और मीडिया जो बुरहान वानी के अब्बा को बेचारा बनाकर पेश करने की जल्दी में था, फिर वह यहाँ क्यों नहीं अपनी जांच कर रहा है?
एक यूजर ने स्क्रीन शॉट साझा करते हुए कहा कि tv9 पर यह विवरण प्रदर्शित हुए हैं, परन्तु यह भी कहा जा रहा है कि यह सूचनाएं भी गलत हैं। माने घर के पते पर अब्बा-अम्मी कोई है ही नहीं
अभिजित अय्यर मित्रा ने लिखा कि यह समझा जाना महत्वपूर्ण है कि जुबैर कोई सुपर जासूस नहीं है, बल्कि एक छोटे स्तर का कुली है, जो दूसरों के लिए मुखौटे का कार्य कर रहा है, एजेंसियों को उसके आधार, पासपोर्ट, स्कूल सर्टिफिकेट आदि की जाँच करनी चाहिए, उनके पास उसके काम का कोई प्रमाण नहीं है, कोई आईटीआर नहीं है, कोई नहीं जो उसे पहचान सके!
प्रश्न उन सभी पर हैं, जो मात्र इस आधार पर जुबैर जैसे बिना पहचान के व्यक्ति का समर्थन कर रहे हैं कि वह भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार का विरोध कर रहा है? क्या मात्र यही एक आधार है किसी के समर्थन का? भारतीय जनता पार्टी की सरकार का विरोध तो तालिबान और अलकायदा भी कर रहा है तो क्या विपक्ष जाकर उनके साथ खड़ा होगा, और समर्थन करेगा?
क्या इस विषय में पक्ष और विपक्ष को कम से एक स्वर में पहचान की जांच की मांग का समर्थन नहीं करना चाहिए, जिससे यह पता लग सके कि कहीं यह वास्तव में पड़ोसी देश का ही तो नहीं है, जिसके अपने कुछ एजेंडे हों? या यदि भारत का है तो कहीं किसी और ताकत के कहने पर काम तो नहीं कर रहा? भारत में आम लोगों के विरुद्ध विष भरने का कार्य अंतत: वह किसके इशारे पर कर रहा है?
कम से कम यह तो सामने आना अत्यावश्यक है ही!