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Saturday, April 20, 2024

श्री कृष्ण जन्माष्टमी: आवश्यक है प्रभु श्री राम एवं प्रभु श्री कृष्ण की मनमानी व्याख्याओं पर प्रतिबंध लगना

आज सम्पूर्ण विश्व में कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है। हर व्यक्ति उनके हर रूप का अपने अनुसार रसास्वादन कर रहा है। प्रभु श्री कृष्ण का रूप है ही अद्भुत। वह हर रूप में सर्वश्रेष्ठ हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक उनकी लीला अनूठी है। उन्होंने जन्म लिया पृथ्वी के कष्ट हरने के लिए। उन्होंने जन्म लिया पांडवों के माध्यम से गीता ज्ञान इस धरा को देने के लिए। जन्म से ही उनका संघर्ष आरम्भ हो गया था।

जन्म लेते ही उन्हें अपनी माता-पिता से दूर होना पड़ा था। फिर पूतना से लेकर न जाने कितने राक्षस उनका वध करने के लिए आए। उन्होंने सभी को मुक्ति प्रदान की। उनके आने की प्रतीक्षा यह पृथ्वी कर ही रही थी। अन्याय जो इतना बढ़ गया था। तभी तो उन्होंने कहा भी था कि जब जब धर्म की हानि होती है पार्थ, तब मैं जन्म लेता हूँ। और वह पापियों का नाश करने के लिए अवतार लेते हैं। कृष्ण अवतार उनका सम्पूर्ण अवतार है। इस अवतार में वह किसी सीमा में नहीं हैं।

परन्तु वैकल्पिक अध्ययन के नाम पर पौराणिक चरित्रों की मनचाही व्याख्या के नाम पर कथित प्रगतिशील रचनाकारों ने वैकल्पिक अध्ययन के नाम पर काफी छेड़छाड़ करने का प्रयास किया। वह रामायण में अधिक छेड़छाड़ नहीं कर सके। परन्तु उन्होंने महाभारत में और उसके विशाल कथानक के साथ साथ महाभारत के चरित्रों के साथ बहुत छेड़छाड़ की है। वैकल्पिक अध्ययन के नाम पर झूठ परोसा है।

प्रभु श्री कृष्ण अनूठे मित्र थे। उन्होंने सुदामा के साथ मित्रता निभाई और द्रौपदी के साथ मित्रता निभाई। वह भक्त और भगवान की मित्रता थी। वह साधारण मानवों की मित्रता नहीं थी। वह एक भक्त का अपने प्रभु के प्रति समर्पण था। द्रौपदी को उन्होंने सखी कहा था। परन्तु भक्त और भगवान के बीच इस पवित्र सम्बन्ध को भी इन लोगों ने नहीं छोड़ा है।

कृष्ण और द्रौपदी के मध्य जो सखा भाव था, उसे दैहिक प्रेम के रूप में जैसे समेटने का कार्य आरम्भ हुआ।  उससे पहले प्रभु श्री कृष्ण को गोपियों के वस्त्र चुराने वाले प्रसंग के आधार पर metoo में लपेटकर उन्हें लम्पट करने का भी प्रयास किया गया था। और जब कथित रूप से यह यौन शोषण वाला अभियान चालू हुआ था, तो उसमें प्रभु श्री कृष्ण द्वारा गोपियों के वस्त्र हरण वाले प्रकरण के आधार पर यह स्थापित करने का प्रयास किया गया था कि हिन्दुओं के भगवान तो यौन शोषण करने वाले थे।

https://www.youthkiawaaz.com/2017/10/metoo-its-not-harassment-if-the-lord-does-it/

जबकि जब उन्होंने यह लीला रची थी तब उनकी उम्र मात्र छ वर्ष के लगभग थी।

परन्तु प्रभु श्री कृष्ण को सतही रूप से समझने वाले वामी लेखक और पत्रकारों ने प्रभु श्री कृष्ण को गलत रूप में प्रस्तुत किया है। यहाँ तक कि फिल्मों में भी उनका और राधा जी का अपमान किया है। कौन भूल सकता है, उन गानों को जिन पर हमारे बच्चे झूमते हैं, और वह हमारे आराध्य प्रभु श्री कृष्ण का अपमान है जैसे

“इश्क के नाम पर करते सभी रासलीला हैं,

मैं करूं तो साला कैरेक्टर ढीला है!”

अर्थात रासलीला जिसे स्वयं प्रभु श्री कृष्ण ने भक्ति और आध्यात्म के सर्वोच्च प्रेम के रूप में किया था, उसे इश्क जैसे सस्ते शब्द में लपेट ही नहीं दिया बल्कि उससे भी नीचे कर दिया। क्या रासलीला किसी भी प्रकार से दैहिक थी? नहीं! परन्तु फिल्मों में प्रभु श्री कृष्ण से सम्बन्धित एक पवित्र शब्द का अपमान किया गया और हम लोगों पर प्रभाव नहीं पड़ा।

ऐसे ही एक और गाना था जिसमें राधा रानी को डांस फ्लोर पर नचा दिया गया था।

“राधा ऑन द डांस फ्लोर,

राधा लाइक्स टू पार्टी,

राधा लाइक्स टू मूव

दैट सेक्सी राधा बॉडी”

जबकि राधा कौन थीं? राधा क्या मात्र एक स्त्री थीं या फिर कृष्ण की आनंद शक्ति थीं? राधा कौन थीं? राधा और कृष्ण के पवित्र प्रेम को अपवित्र करते हुए राधा को सेक्सी भी कहा गया और फिर राधा को डांस फ्लोर पर नचाया गया। परन्तु विरोध नहीं किया गया। आखिर ऐसा क्यों होता है कि हिन्दुओं के भगवान के उस सम्पूर्ण अवतार को नीचा दिखाने के बार बार प्रयास किए गए जिन्होनें गीता का ज्ञान दिया।

फिल्मों में ही नहीं, आधुनिक प्रगतिशील हिंदी साहित्य में भी उनके विषय में न जाने कितनी ऐसी कथाएँ और कविताएँ लिख दी गईं, जिनके कारण आने वाली पीढ़ी उसी झूठ को सत्य मान बैठी है और कथित फेमिनिस्ट वैसे तो स्त्री अस्मिता की बात करती हैं, परन्तु द्रौपदी और कृष्ण के विषय में वह सब लिखती हैं, जो हुआ ही नहीं।

प्रतिभा राय का उपन्यास है द्रौपदी। उसमें द्रौपदी का नाम जब कृष्णा रखा जाने का प्रसंग है, तब कहा गया है कि जब कृष्णा नाम रखा गया, तो द्रुपद ने निश्चय किया कि वह अपनी पुत्री का विवाह कृष्ण के साथ करेंगे। जबकि ऐसा कोई प्रसंग महाभारत में नहीं प्राप्त होता है। आदिपर्व में चैत्ररथ पर्व में जब दृष्टदयुम्न और द्रौपदी का यज्ञ से प्रकट होने का वर्णन है, वहां पर मात्र द्रौपदी के सौन्दर्य का वर्णन है परन्तु यह कम से कम महाभारत में नहीं प्राप्त होता है कि द्रुपद कृष्ण को द्रौपदी को सौंपना चाहते थे।

बल्कि बाद में स्वयंवर पर्व में यह अवश्य है कि राजा यज्ञसेन की यह कामना थी कि वह पांडु पुत्र किरीटी अर्जुन को कन्या दान करें, परन्तु उन्होंने यह इच्छा किसी से नहीं कही थी। फिर लिखा है, कि हे जन्मेजय उन्होंने कुन्तीपुत्र को स्मरण करके ऐसा एक दृढ चाप बनवाया, कि जिसे कोई दूसरा नवा न सके।

फिर प्रश्न यह उठता है कि प्रतिभा राय ने द्रौपदी उपन्यास में यह प्रकरण कहाँ से लिखा कि द्रौपदी का विवाह द्रुपद प्रभु श्री कृष्ण से करना चाहते थे? और प्रभु श्री कृष्ण के इंकार करने पर अर्जुन से विवाह करने को वह तैयार हुए। यदि ऐसा कुछ है तो सन्दर्भ क्या दिया है? और क्या यह प्रकाशक का उत्तरदायित्व नहीं है कि वह ऐसे प्रकाशनों से पूर्व ऐतिहासिक प्रमाणों की मांग करे? या फिर वह कुछ भी प्रकाशित कर देगा?

इस उपन्यास के आधार पर फेमिनिस्ट द्रौपदी और प्रभु श्री कृष्ण के मध्य वह सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास करती हैं, जो कम से कम महाभारत में तो कहीं प्राप्त नहीं होता है। भाव है तो मात्र सखा एवं भगवान तथा भक्त का।

आज प्रभु श्री कृष्ण की जन्माष्टमी के अवसर पर यह मांग उठाई जानी चाहिए कि यदि कोई व्यक्ति रामायण और महाभारत पर कुछ लिखना चाहता है तो सर्वप्रथम तो भारत के लोकमानस की समझ होने चाहिए और जो भी लिखे उसका मूल सन्दर्भ अवश्य दे। फिर चाहे वह उपन्यास हो या नॉन-फिक्शन!

द्रौपदी जैसा उपन्यास, या फिर राधा ऑन द डांस फ्लोर जैसे गानों का विरोध किया जाना चाहिए, क्योंकि यह मात्र पौराणिक चरित्रों का ही अपमान नहीं कर रहे है, बल्कि स्त्री का भी अपमान कर रहे हैं।


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