बॉलीवुड की कई फ़िल्में ऐसी होती हैं, जो कहने के लिए एक्टिविज्म वाली होती हैं, परन्तु वह बहुत महीन और परिष्कृत एजेंडे वाली होती हैं। वह विकट और भयानक खेल कर जाती हैं। ऐसा खेल जो न कोई सोच सकता है और न ही समझ सकता है। वह दिमाग से खेलती हैं। वह आपको मानसिक रूप से एक ऐसे विमर्श के बिंदु पर ले जाती हैं, जहाँ पर आप सोच ही नहीं सकते कि इसमें कोई एजेंडा भी हो सकता है, परन्तु उसमें एजेंडा होता है!
उनमें हालिया रिलीज हुई फिल्म शेरदिल, द पीलीभीत सागा और आलिया भट्ट की डार्लिंग्स है! आज इस लेख में हम शेरदिल: द पीलीभीत सागा की बात करेंगे क्योंकि यह अधिक खतरनाक है, क्योंकि इसमें ऐसे नाम जुड़े हैं, जिन्हें राष्ट्रवादी खेमें के लोग बहुत मानते हैं, स्नेह करते हैं तो कहानी के माध्यम से क्या विमर्श परोसा जा रहा है, निर्देशक के साथ साथ उत्तरदायित्व उनका भी बनता है क्योंकि यह विषैला विमर्श राष्ट्रवादी खेमे तक उन्हीं के माध्यम से अधिक जा रहा है।
इस फिल्म की कहानी आधारित है पीलीभीत की उस खबर पर, जहाँ पर वन विभाग को यह संदेह हुआ था कि लोग अपने बुजुर्गों को इसलिए शेर का निवाला बना देते हैं कि उन्हें मुआवजा दिया जा सके। यह खबर हर दिल को व्यथित कर देने वाली थी और आज भी करती है, इस पूरी कहानी में फोकस होना चाहिए था गरीबी पर, अव्यवस्था पर और उस नौकरशाही और लालफीताशाही पर जो अभी तक भारत को अपनी गिरफ्त में लिए हुए है।
परन्तु आरम्भ में ऐसा लगा कि यह फिल्म अव्यवस्थाओं पर चोट करने के लिए है, फिर जैसे ही फिल्म आरम्भ हुई, वह अपने उसी ढर्रे पर आ गयी जिसमे रहीम चाचा को महान बताया जाता है।
सरपंच गंगाराम अर्थात पंकज त्रिपाठी मरने के लिए जाते हैं। यहाँ तक कहानी की पकड़ ठीक है क्योंकि कोई भी सरपंच ऐसा कदम उठा सकता है। मगर खेल शुरू होता है शिकारी “जिम अहमद” के साथ। खेल देखिएगा और समझने की कोशिश कीजिएगा! “जिम अहमद” एक शिकारी है जो अवैध तरीके से उस स्थान पर घुसा है, जहाँ पर सरकार बाघों का संरक्षण कर रही है और वह बाघ का शिकार करने के लिए अर्थात मारने के लिए आया है।
खलनायक को महान दिखाकर महिमामंडन किया गया है!
जिस चरित्र से घृणा करनी चाहिए थी क्योंकि वह केवल गैर कानूनी काम ही नहीं कर रहा था, बल्कि वह हिंसक कार्य कर रहा था, वह उस स्थान पर शिकार कर रहा था, जहाँ पर इंसानों द्वारा शिकार प्रतिबंधित है। क्या निर्देशक और लेखक जनता को संरक्षित स्थानों पर शिकार करने और विलुप्र जीवों को एवं सामान्य वन्य प्राणियों के शिकार करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं?
जिस चरित्र को खलनायक बनाना चाहिए था, उसे ऐसा चरित्र बनाकर प्रस्तुत किया गया जैसे वह एक बहुत महान व्यक्ति है, जैसे वह एक महान विचारक है। जो एक शाकाहारी व्यक्ति को मांसाहारी बना रहा है, जो एक हिन्दू व्यक्ति की पवित्र गाय को सुअर की अवधारणा के समकक्ष लाकर रख रहा है, उसे निर्देशक सृजित मुखर्जी ने ऐसा चरित्र बना दिया कि वह शेरोशायरी करता है, वह प्रकृति की बातें करता है!
बात हिन्दू-मुस्लिम की है ही नहीं, आपराधिक बात है!
इस फिल्म में हिन्दू-मुसलमान की बात तो बाद में आएगी, यह तो विमर्श ही आपराधिक विमर्श है। क्या निर्देशक और लेखक यह कहना चाहते हैं कि मुस्लिम गैर कानूनी रूप से शिकार करते हैं? यह कितना खतरनाक विमर्श है कि खल चरित्र जो गैर कानूनी कार्य कर रहा है, उसे ऐसा चरित्र बनाकर प्रस्तुत किया जाए जो उदार है, ऊपर वाले से डरता है, पर साथ ही जंगल में निरीह जानवरों को मरता है। और उस पर तुर्रा यह कि वह प्रकृति प्रेमी है! यह कैसा विरोधाभास है?
यह कितना बड़ा विरोधाभास है पूरी ही फिल्म का, कि वह खलचरित्र का महिमा मंडन कर रही है और उसे ऐसा प्रस्तुत कर रही कि वह महान है और जो लोग बाघों को एवं जंगली जानवरों को बचाने के लिए नियम बना रहे हैं, वह खलनायक हैं!
क्या लेखक और निर्देशक सृजित मुखर्जी यह संदेश देना चाहते हैं कि आप शेरो शायरी करें, मजहब विशेष के होंऔर सरकार द्वारा बनाए गए नियम तोड़ते जाएं? सरकार के उन नियमों के प्रति विरोध समझ में आता है जो किसी के प्रति भेदभाव से भरे हों, परन्तु निरीह पशुओं के संरक्षण के लिए, जिनका होना प्राकृतिक संतुलन के लिए आवश्यक है, उन नियमों का विरोध क्यों और किसलिए?
लेखक और निर्देशक सृजित मुखर्जी, जो पहले ही तापसी पन्नू को शाबास मिट्ठू में लेकर भारतीय महिला क्रिकेटर मिताली राज के जीवन पर बनी फिल्म में फेमिनिस्ट एजेंडा अपने निर्देशन में परोस चुके हैं और जो सुपर फ्लॉप हो चुकी है, वह इस फिल्म में ऐसा एजेंडा प्रस्तुत करते हैं, जिस पर सहज विश्वास ही करना असंभव है!
हिन्दू विरोध तो है ही
एक दृश्य है जिसमें “जिम अहमद” गंगाराम से यह पूछता है कि गंगाराम के सम्बन्ध उसके भगवान के साथ कैसे हैं क्योंकि जिम अहमद तो अपने अल्लाह के साथ डायरेक्ट सम्बन्ध रखता है, तो दृश्य दिखाया है कि गंगाराम की पूजा आदि होकर जंगल भेजा जा रहा है, और पूजा एक पंडित जी द्वारा की जा रही है। अर्थात अप्रत्यक्ष रूप से लेखक और निर्देशक यह दिखाने के प्रयास में है कि गंगाराम अर्थात साधारण हिन्दू भगवान से संपर्क करने के लिए पंडितों का सहारा लेते हैं और हर प्रकार के नियम तोड़ने वाला जिम अहमद ऊपर वाले से डायरेक्ट संपर्क में है फिर वह दुनिया में कितने भी गैर कानूनी काम करे, फिर चाहे वह दुनिया में किसी को भी मारे!
इसमें वह धर्म जो जीवों में परमात्मा को देखता है, पिछड़ा हो गया है क्योंकि वह तो पंडित का सहारा ले रहा है और शाकाहरी है, तो वहीं दूसरा “जिम अहमद” हर प्रकार के क़ानून तोड़ने वाला, हर प्रकार की हिंसा करने वाला महान हो गया, जिसे गंगाराम बार बार याद करता है!
क्या लेखकों और निर्देशक का मंतव्य गैर कानूनी कृत्य को प्रोत्साहित करना था? क्योंकि सिस्टम से लड़ाई तो इस पूरी फिल्म में दिखाई नहीं दी है!
ऐसी फ़िल्में सूक्ष्म स्तर पर नैरेटिव दिमाग में प्रेषित करती हैं और चूंकि पंकज त्रिपाठी का अपना एक दर्शक वर्ग है, तो वह वर्ग तो समझ ही नहीं पाता है कि उसके साथ क्या खेला हो गया!
क्या खूब लिखे हैं.. सोनाली जी आपसे संवाद का कोई ज़रिया बताईये…एक दो विषय पर बात भी हो जाती..
मेरा WhatsApp 8929631268 है.. धन्यवाद 🙏🙏