मुम्बई में क्रूज़ पर ड्रग पार्टी में एनसीबी की छापामारी में देर रात कथित “सुपरस्टार” शाहरुख खान के बेटे सहित कई लोगों को ड्रग्स लेने के आरोप में हिरासत में लिया गया गया है:
पर शाहरुख खान के बेटे को हिरासत में लिए जाने से अधिक चर्चा शाहरुख खान के उस वीडियो की हो रही है, जिसमें वह सिम्मी ग्रेवाल से एक इंटरव्यू में कह रहे हैं कि वह चाहते हैं कि उनका बेटा सेक्स करे और ड्रग्स ले। शाहरुख कह रहे हैं कि वह अपने बेटे आर्यन से ड्रग्स लेने और सेक्स करने के लिए कहेंगे और शाहरुख खान ने कहा था कि जब उनका बेटा तीन चार साल का हो जाएगा तो वह लड़कियों के पीछे जा सकता है और बेहतर होगा कि आर्यन वह सभी काम जल्दी करे जो वह नहीं कर पाए!

दरअसल सिम्मी ग्रेवाल ने शाहरुख खान से प्रश्न किया था कि वह अपने बेटे का पालनपोषण कैसे करेंगे तो शाहरुख खान ने कहा था कि वह चाहेंगे कि उनका बेटा वह सब काम करे जो वह पैसे की कमी के कारण कर नहीं पाए! मगर क्या यहाँ पर एक प्रश्न उत्पन्न नहीं होता कि क्या पैसे होने का अर्थ गलत कार्य करना होता है?
शाहरुख खान के बेटे के हिरासत में लिए जाने से कहीं अधिक गंभीर है कि हम कैसे लोगों को अपना नायक बनाकर बैठे हुए हैं, या कहें फिल्मों, के माध्यम से कैसे कैसे लोगों को जबरन नायक बनाकर प्रस्तुत कर दिया है, जिनकी अधूरी इच्छाएं यह हैं कि वह सेक्स करें और ड्रग्स लें!
और वही लोग हमारे विज्ञापन जगत द्वारा अपने उत्पादों को बेचने के लिए प्रयोग किये जा रहे हैं। उनका बिकाऊ होना ही हिन्दू समाज की सबसे बड़ी हार है। हिन्दू समाज अपने पैसों से टिकट लेकर ही फिल्म देखने जाता है, मगर उसके सिर पर एक ऐसा कथित नायक थोप दिया गया है, जिसने हिन्दुओं को ही असहिष्णु ठहरा दिया था। यह बात है वर्ष 2015 की, जब शाहरुख खान राजदीप सरदेसाई से यह बात कही थी। अवसर था इंडिया टुडे टीवी के राजदीप सरदेसाई के साथ “ट्विटर टाउनहॉल” कार्यक्रम का।
शाहरुख खान ने यह कहा था कि देश में असहिष्णुता का माहौल है और चरम असहिष्णुता है। देश में लोग बिना सोचे समझे टिप्पणियाँ कर रहे हैं, और जिसके कारण स्थितियां बिगड़ रही हैं और उन्होंने कहा था कि हम सुपर पावर कैसे बनेंगे अगर हम इस बात में विश्वास नहीं करेंगे कि सारे धर्म एक जैसे ही हैं!
यह जो बात कही थी कि सारे धर्म एक जैसे हैं, यह इतना बड़ा छलावा है, जिसे बनाए रखने में शाहरुख़ खान और आमिर खान एवं सलमान खान जैसों का बहुत बड़ा हाथ है। इन सभी ने अपनी अपनी फिल्मों में हिन्दू धर्म पर प्रहार करने के अतिरिक्त और कुछ नहीं किया है। “कभी अलविदा न कहना” में तो पारिवारिक मूल्यों को नष्ट करने का पूर्णतया प्रयास किया था।
और लगभग यह साबित ही कर दिया था कि हिन्दुओं में विवाह की एक निर्धारित अवधि के बाद विवाह टूटते ही हैं।
ऐसा एक नहीं कई बार हुआ था, परन्तु शाहरुख खान की लार्जर देन लाइफ के आगे जैसे कुछ टिकता ही नहीं था। शाहरुख को देशभक्त घोषित किया गया और उसका विरोध करने वालों को देशद्रोही। जबकि हर फिल्म में प्रेम के नाम पर परिवार तोड़ने की ही कहानी थी, फिर चाहे वह “दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे,” हो, “कुछ कुछ होता है” या फिर “दिल तो पागल है” या फिर “मोहब्बतें!”
यह ऐसी फ़िल्में थीं, जिनमें प्रेम के नाम उच्छृंखलता अधिक थी एवं मूल्यों को पिछड़ा बताया गया। प्रेम के नाम पर परिवार विरोधी नशे का आदी बनाया गया, मगर यह नहीं पता था कि वह ऐसी इच्छा रखते हैं कि सेक्स और ड्रग्स उनकी ऐसी अधूरी इच्छाएँ हैं, जो उनका बेटा जल्दी ही शुरू कर दे!
एक और दुर्भाग्य है कि ऐसे लोग जो अपने बेटे को लेकर ऐसी इच्छा रखते हैं, वह वर्ष 2014 में अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक पुलिस संस्था इंटरपोल के ब्रांड अम्बेसडर बन गए थे और अपराध रोकने के लिए “टर्न बैक क्राइम” अभियान के अम्बेसडर बने थे। कितना हास्यास्पद है कि जो व्यक्ति न जाने कब से यह इच्छा रखे था कि ड्रग्स ले उसका बेटा, अर्थात अपराध की सोच थी और वही इंसान इंटरपोल का अम्बेसडर है?
और इसमें यह भी शामिल था कि कैसे अपराध रोकने में साधारण व्यक्ति भी अपराध रोकने में सहायता कर सकते हैं, परन्तु अभी संभवतया अपने बेटे के अपराध को दबाने के लिए प्रयास किए जा रहे होंगे, मीडिया के माध्यम से या फिर किसी अन्य माध्यम से!
इसी के साथ यह भी स्वयं में हास्यास्पद एवं विडंबनापूर्ण है कि बच्चों की शिक्षा को बेहतर बनाने वाली BYJU’S के ब्रांड अम्बेसडर भी शाहरुख खान है!

बच्चों के लिए जो शिक्षा का अम्बेसडर है, क्या यही शिक्षा वह अपने बच्चों को दे रहा है, यह शिक्षा के लिए कार्य करने वाले ब्रांड नहीं देखते हैं? या फिर उनके लिए भी केवल बच्चे बाज़ार हैं? या शिकार हैं? शाहरुख खान शिक्षा के उत्पाद के लिए कैसे ब्रांड अम्बेसडर हो सकता है? यह भी एक प्रश्न है?
परन्तु समस्या यह है कि हिन्दुओं के लिए विकल्प ही ऐसे प्रस्तुत किए जाते हैं, जो पूर्णतया हिन्दू विरोधी होते हैं। वह अपने विकल्प बनाने का प्रयास नहीं करते हैं, और जो अपना विकल्प नहीं बनाते हैं, बाज़ार उनके कंधे पर अपनी कार से लोगों को कुचलने वाले सलमान, अपनी फिल्मों और कार्यक्रमों से हिन्दू धर्म को बदनाम करने वाले आमिर खान या फिर अब अपने बेटे के लिए सेक्स और ड्रग्स की इच्छा रखने वाले शाहरुख खान को बैठा देता है, पूरे जीवन ढोने के लिए!
मानसिक रूप से बनाता है गुलाम, और जब हिन्दू जनमानस इन मानसिक गुलामी से बाहर निकलने का प्रयास करता है तब वह अपनी बिकाऊ मीडिया के साथ मिलकर शोर मचाते हैं कि “असहिष्णुता बढ़ गयी है!”