शिनजियांग प्रांत के जिन हिरासत केन्द्रों में चीन से आज़ादी पाने के लिए संघर्षरत उईघर और कजाख मुसलमानों को रखा गया है, वहाँ से जो खबरें आ रहीं हैं वो सब को चौंका सकती हैं | पर चीन से आ रहीं हैं तो असंभव कुछ भी नहीं |
दरिंदगी की हद ये है कि दवाओं के परिक्षण में होने वाले ‘ट्रायल’ में पशुओं का स्थान इन असाहय अल्पसंख्यकों नें ले लिया है| और इसमें महिलाओं को भी बक्शा नहीं गया है | हिरासत से छूटी एक उईघर मुसलमान महिला के द्वारा सुनाई गयी दास्तान से पता चला है कि आजमायी जाने वाली दवाओं की पीने के लिए बाध्य किया जाता है— जिसके बाद कमजोरी, बेचेनी और तीव्र पीढ़ा का सामना करना पड़ता है |
इन हम-मजहबीयों उइघरों पर बढ़ते अत्याचारों के कारण अब तक चुप पकिस्तान में भी अब आवाज़ उठने लगी हैं | क्रिकेटर शाहीद अफरीदी भी कुछ दिनों पूर्व इमरान से इस मामले में दखल देने की गुहार लगा चुके हैं |
वैसे इसी तरह की घटना को अंजाम इंडोनेशिया में भी वहां के मुसलामानों ने चीनी दूतावास को घेर कर चीन के विरुद्ध नारे लगा कर दिया है | मलेशिया में भी इनके प्रति हमदर्दी देखने को मिली है | यहाँ तक कि वहां के प्रधान मंत्री महातीर मोहम्मद ने घोषणा करी है कि उईघर चाहें तो मलेशिया में शरण ले सकते हैं |
यदि हम और पीछे जाएँ तो इस्लामी जगत में एक घटना ने बड़ी सुर्खियाँ बटोरी थी | जबकि अपनी आज़ादी के लिए संघर्षरत शिजियांग प्रान्त के उइघर जेहादियों नें तब मध्य-पूर्व स्थित इस्लामिक स्टेट्स से प्रशिक्षण प्राप्त कर एलान किया था-‘ हम खलीफा के लड़ाके हैं और इस्लामिक स्टेट्स के साथ मिलकर हथियारों की जुबान से बात कर चीन में खून की नदियाँ बहा देंगें|’
वैसे इस्लामिक जगत में ये परस्पर संवेदनशीलता या बंधुत्व भाव [उम्माह या मिल्लत] का ये उभार कोई निराली घटना नहीं है, इसको समझने के लिए इतिहास प्रमाणों से भरा पड़ा है |
भारत की स्थिती भी दुनिया से अलग नहीं | अवेध रूप से घुसपेठ कर देश की सीमा के अन्दर आ जमे मजहबी राष्ट्र पाकिस्तान-बंगलादेश के मुसलामान हों चाहे म्यामार के रोहिंग्या, अपनी सेक्युल छवि का दावा करने वाले फिल्म नगरी के फ़रहान अख्तर, नसीरुद्दीन शाह और शेरो-शायरी की दुनिया के मुनव्वर राणा जैसे लोग भी उनके समर्थन में आ उतरने से अपने को रोक न पाए है |
रोहिंग्या मुसलमानों से हमदर्दी दिखाते हुए नसीरुद्दीन शाह नें कहा था कि मानवता के नाते रोहिंग्याओं को देश से नहीं निकाला जाना चाहिए, क्योंकि भारत उनके लिए सबसे सुरक्षित है | उन्हें शायद इस बात का ध्यान न रहा हो कि अमेंस्टी इंटरनेशनल के हवाले से खबर आयी थी कि मयन्मार में इन्हीं रोहिंग्याओं नें कभी जेहादियों की रहनुमायी में बोद्धों के साथ- साथ वहां रहने वाले अल्पसंख्यक हिन्दुओं के लिए भी जीवन दूभर बना डाला था | जिसके परिणामस्वरुप वहां की जनता एकजुट हो उन्हें देश के बाहर खदेड़ने के लिए बाध्य हो उठी थी|
जहां तक बात म्यामार और उसके पड़ोसी चीन की है, तो उनके मध्य वर्षों से सम्बन्ध तनाव पूर्ण बने रहना का अपना इतिहास है. पर २०१७ में स्थिति में बदलाव होना शुरू हुआ, जबकि अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों के ऊपर म्यामार सेना के कथित अत्याचार और उसके फलस्वरूप ७३०००० रोहींग्याओं के देश से पलायन को लेकर दुनिया भर में उसकी तीव्र आलोचना हुई | संयुक्त राष्ट्र संघ नें म्यमार की इस कार्यवाही को ‘जातीय सफाया’ [ethnic cleansing] बताया था, तो जवाब में म्यमार नें रोहिंग्यों को ‘आतंकवादी’ ठहराया था |
फिर हुआ यूँ कि अंतर्राष्ट्रीय युद्ध अपराध ट्रिब्यूनल में म्यामार के नेताओं के विरुद्ध कायर्वाही को लेकर कदम भी उठ गए थे, लेकिन चीन के बीच में आ जाने के कारण बात आगे न बढ़ सकी | इस में चीन को फिलिपीन और Burundi का साथ मिला था, और उनका दावा था कि उन्हें १०० देशों का समर्थन प्राप्त है | चीन नें म्यामार में अपने व्यापारिक व सामरिक हितों को ध्यान रखकर ये फैसला लिया था |
दरअसल चीन परस्त वामपंथी और ‘सेक्युलर’ मुसलमानों की जमात देश में जिस मानव अधिकार, अभिव्यक्ति की आज़ादी की बातें करतें हैं, उसकी जरूरत चीन को ज्यादा है |
पर सच्चाई है क्या, उसकी झलक भाजपा नेता शाजिया इल्मी के इस बयान से मिलती -‘मार्क्सवादी-मुल्लाओं की जोड़ी भारत को जलाने पर आमादा है | वे मुस्लिम समुदाय के भीतर उदारवादी आवाजों से सबसे ज्यादा नफरत करते हैं क्यूंकि हम उनकें पाखंड की पोल खोलते हैं | मुझे याद है कि अपने संस्थान जामिया में ही मुझे तीन तलाक के मसले पर बोलने नहीं दिया गया था|’
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