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Thursday, February 6, 2025

सैय्यदों की बेटी ने किया ‘फ़कीर’ लड़के से इश्क तो किया लड़की के घर वालों ने दोनों का खून!

हिन्दू धर्म पर हमला करने वाले लोग ब्राह्मणों को कोसने के लिए बार-बार यही कहते हैं कि हिन्दुओं में जातिव्यवस्था बहुत अधिक है और ब्राह्मण शोषण करते हैं, परन्तु यह भी बात उतनी भी सच है कि जब मुस्लिमों में फिरकों की बात होती है या फिर जात की बात होती है, तो एक बहुत बड़ा सन्नाटा छा जाता है और ऐसा दिखाया जाता है कि जैसे कुछ नहीं हुआ।

उत्तर प्रदेश से एक ऐसा मामला सामने आया है, जो मुस्लिम समाज में जातिव्यवस्था की बेड़ियों की कहानी बताती है, परन्तु उस घटना पर चर्चा नहीं हो रही है। जबकि इसमें एक नहीं बल्कि दो-दो हत्याएं सम्मिलित हैं और यह हत्याएं भी इसी कारण हुई हैं क्योंकि लड़की और लड़के ने अपने मन से शादी करने का गुनाह किया था।

यह कहानी है शादी से पहले और शादी के बाद भी चलने वाले प्रेम प्रसंग की, परन्तु उस समुदाय की जहाँ पर कथित रूप से खुला और तलाक की आजादी है। बागपत में रहने वाली महजबीं को शादी से पहले ही आरिफ से प्यार था।

मगर परिवार वालों ने उसका निकाह शामली जनपद के गंगेरू गाँव के शाहिद से करा दिया था। आरिफ का भी निकाह हो गया था। महजबी के तीन बच्चे हैं। परन्तु शादी के बाद भी वह दोनों एक दूसरे को भूल नहीं पाए और मेहजबी पिछले २० अक्टूबर को आरिफ के साथ घर से भाग गयी थी। जैसे ही यह बात मेहजबी के भाई मुरसलीन को पता चली तो उसने अपने भाइयों मोज्ज़मिल, अरमान, मुन्तजिर और शहनाज़ के साथ मिलकर दोनों को मारने की योजना बनाई।

बहन के इस काम के कारण मुरसलीन बहुत गुस्सा रहा करता था। इसलिए योजना के चलते वह लोग उन दोनों को पहले मेरठ लाए और फिर मुरसलीन कांधला क्षेत्र के गाँव लेकर गया। वहां पर आरिफ की हत्या कर दी और उसकी लाश छिपा दी!  

और उसके बाद मेहजबी की भी हत्या कर दी। स्वराज के अनुसार एसपी जादौन ने बताया कि जब मुरसलीन से यह पूछा गया कि उसने अपनी बहन की हत्या क्यों की तो उसके पहले शब्द थे कि “हम सैय्यद अपनी बेटी को फ़कीर में में कैसे दे सकते हैं?”

पुलिस अधिकारी ने कहा कि वह यह सुनकर यह बहुत चौंक गए थे और उन्होंने जब पूछा कि वह अपनी ही बहन के साथ ऐसा कैसे कर सकता है तो उसने फिर से अपना ही वाक्य दोहरा दिया।

पुलिस के अनुसार मेहजबी के परिवार वालों ने २२ अक्टूबर को उसकी गुमशुदा की रिपोर्ट दर्ज कराई थी, परन्तु पुलिस ने जब उन दोनों को पकड़ा था तो मेहजबी ने यह कहा था कि वह आरिफ के साथ अपने मन से गयी थी।

पुलिस ने इस घटना के विषय में अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट करते हुए पूछताछ के विवरण में लिखा है कि मुरसलीन ने पुलिस को यह बताया कि उसकी बहन का शादी से पहले से ही आरिफ के साथ सम्बन्ध था। इसी के चलते वह लोग कहीं चले गए थे। और इसी से गुस्सा होकर उसने उनकी हत्या की योजना बनाई।

स्वराज के अनुसार सैय्यद लड़की के परिजन इस बात को बर्दाश्त नहीं कर पाए थे कि उनकी बेटी का फकीर के साथ सम्बन्ध है।

इस बात को लेकर हिन्दुओं को कोसा जाता है कि हिन्दू जाति से बाहर विवाह करना नहीं पसंद करते हैं, तो वहीं pew का शोध कुछ और ही कहता है। इस संस्था द्वारा कराए गए शोध के अनुसार मुस्लिम इस बात का बहुत ध्यान रखते हैं कि कहीं जाति बिरादरी से बाहर निकाह न हो जाए!

मुस्लिमों में जाति की जड़ें बहुत गहरी हैं:

मुस्लिमों में जाति को लेकर बहुत विमर्श भारत में नहीं होता है। परन्तु यह भेदभाव आज का नहीं है। राहुल सांकृत्यायन अपनी अकबर  पुस्तक में लिखते हैं कि

अरब आदमी नहीं, अरब खून के महत्व को जरूर माना जाता था,”

फिर वह लिखते हैं

“अकबर के समय तक शेख, सैय्यद, मुग़ल, पठान का भेद गैर मुल्की मुसलमानों में स्थापित हो चुका था। शेख के महत्व को हम अब इसलिए नहीं समझ पाते क्योंकि अब वह टके सेर है, वैसे ही जैसे खान। तुर्कों और मंगोलों में खान राजा को कहते हैं। 1920 ई तक बुख़ारा में सिवाय वहां के बादशाह के कोई अपने नाम के आगे खान नहीं लगा सकता था। युवराज भी तब तक अपने नाम के आगे खान नहीं जोड़ सकता था, जब तक कि वह तख़्त पर न बैठ जाता।”

फिर वह अकबर के समय इस्लाम में उसी मजहब में व्याप्त वर्ग भेद के विषय में लिखते हैं

“शेख सबसे श्रेष्ठ माने जाते थे! शेख का अर्थ हुआ गुरु या सत पुरुष।——————– उनके बाद पैगम्बर के अपने वंश और रक्त से संबंधी होने से सैय्यदों का नंबर आता था। मध्य एशिया में उन्हें खोजा कहा जाता था। मुग़ल पहले तुर्क कहाए जाते थे।”

पसमांदा आन्दोलन का मुख्य चेहरा डॉ फैयाज़ लिखते हैं कि एक सैय्यद और गैर सैय्यद के बीच निकाह नहीं हो सकता है!

अर्थात यह भेदभाव भारत में आने से पहले से था, जिसमें भारत में आकर एक और नई श्रेणी उत्पन्न कर दी!

अभी हाल ही में जब उत्तर प्रदेश सरकार में एक पसमांदा मुस्लिम को मंत्री बनाया गया था तो इस भेदभाव का सबसे बुरा चेहरा दिखाई दिया था, कि उन्हें जुलाहा आदि कहकर अपमानित किया गया था।

मुस्लिमों में सैय्यद होने पर गर्व की भावना ऐसी है कि जिससे कथित रूप से प्रगतिशील कहे जाने वाले कहानीकार भी नहीं छूट पाए है और दुर्भाग्य की बात यही है कि साहित्य में ब्राह्मणों के विरुद्ध विषवमन किया जाता है तो वही सैय्यदों को महिमामंडित किया जाता है। जैसे कक्षा १२ में नमक नामक कहानी अभी तक पढ़ाई जा रही थी, जो इस बार हटा दी गयी है, उसमें सैय्यद का कितना महिमामंडन किया गया है, यह हैरान तो करता ही है, बल्कि यह उस कथित प्रगतिशीलता पर भी प्रश्न चिह्न लगाता है कि कैसे रजिया सज्जाद जहीर यह कह रही हैं कि कैसे सैय्यद होकर वादा तोड़ देंगे?

राहुल सांकृत्यायन “अकबर” में इस भेदभाव को अकबर कालीन बताते हुए लिखते हैं कि

““शेख सबसे श्रेष्ठ माने जाते थे! शेख का अर्थ हुआ गुरु या सत पुरुष।——————– उनके बाद पैगम्बर के अपने वंश और रक्त से संबंधी होने से सैय्यदों का नंबर आता था। मध्य एशिया में उन्हें खोजा कहा जाता था। मुग़ल पहले तुर्क कहाए जाते थे।

“पठान दसवीं सदी तक पक्के हिन्दू थे।”

इन चारों के बाद हिन्दुओं से मुसलमान बने लोग आते थे। ————- मुल्की मुसलमान दूसरे मुसलमानों के सामने वही स्थान रखते थे, जो अंग्रेजों के काल में एंग्लो-इन्डियन। मुल्की मुसलमानों में उच्च और नीच (अशरफ और अर्जल) दो तरह के लोग थे। सारे ही मुसलमानों में भारत में सबसे अधिक संख्या अर्जलों की थी, मगर वह अपने ही सहधर्मियों के भीतर अछूतों से थोड़े ही बेहतर समझे जाते थे। जब तक अंग्रेजों ने दास प्रथा को समाप्त नहीं किया। मुसलमान होने से ही कोई दास बनने से छुट्टी नहीं पा सकता था।”

पृष्ठ 58

कहने का तात्पर्य यह है कि अरब, शेख, पठान आदि आदि में बंटा हुआ मुस्लिम विमर्श जब यह कहते हुए हिन्दू विमर्श से बेहतर बताया जाता है कि हिन्दुओं में जातिगत भेदभाव है, तो अत्यधिक हास्यास्पद प्रतीत होता है। और इस विद्रूपता पर हंसा ही जा सकता है क्योंकि मीडिया तो इन सब भेदभाव पर विमर्श नहीं कराएगा। बागपत में जो हुआ है वह सत्यता है, परन्तु समस्या यह है कि इस सत्यता पर उस प्रकार से कोई विमर्श नहीं होता है, जैसा हिन्दू धर्म को कोसने के लिए होता है।

इसके चलते मुस्लिमों का एक बड़ा वर्ग पीड़ित हो रहा है, और यह घटनाएं उसी शोषण की पुष्टि करती हैं, फिर भी मीडिया हो या फिर प्रगतिशील लेखक सभी उन पीड़ितों के साथ खड़े नहीं दिखाई देते हैं, जैसे इसमें मेहजबी और आरिफ के साथ कोई नहीं है। न ही देह के आधार पर हिन्दू लड़कियों को परिवार तोड़ने की शिक्षा देने वाले वामपंथी लेखक और न ही प्यार की आजादी वाला वामपंथी एवं फेमिनिस्ट गैंग!

परन्तु यह प्रश्न तो तैरता ही रहेगा कि क्या मेहजबीं और आरिफ को विमर्श में स्थान में नहीं मिलेगा?

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