कहने के लिए भारत स्वतंत्र हो गया है, परन्तु अंग्रेज अपनी औपनिवेशिक मानसिकता यहीं पर छोड़कर गए हैं, जो गाहे बगाहे दिखती रहती है। कल एक वीडियो सामने आया जिसमें दिल्ली में अंसल प्लाज़ा में बने अकीला रेस्टोरेंट में एक महिला को साड़ी में प्रवेश देने से इंकार कर दिया। वीडियो में दिख रहा है कि कर्मचारियों ने कहा कि साड़ी स्मार्ट ड्रेस नहीं है।
भारत में यह देखना अत्यंत क्षोभ का विषय है कि साड़ी स्मार्ट ड्रेस नहीं है? स्मार्ट ड्रेस की परिभाषा क्या है? क्या जींस, सूट या स्कर्ट? या फिर क्या? और साड़ी कहाँ से स्मार्ट नहीं है? भारत में साड़ी लगभग राष्ट्रीय परिधान ही है, इसे पहनने वालों और पसंद करने वालों में केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में स्त्रियाँ हैं।
भारत में राजनीति और साहित्य एवं इतिहासकार तथा अकादमिक एवं यहाँ तक कि पत्रकारिता में भी साड़ी को बहुत स्टाइल से न केवल पहना जाता है बल्कि उन्हें कैजुअल माना जाता है। फिर ऐसा अकीला रेस्टोरेंट के साथ ऐसा क्या था कि उन्हें माना ही नहीं गया कि साड़ी कैजुअल्स है?
हमारे पाठकों को मंगल मिशन याद होगा, उसमें जिन स्त्रियों के सबसे अधिक चित्र लोकप्रिय हुए थे वह साड़ी पहने हुए स्त्रियाँ थीं। साड़ी भारत की स्त्रियों की परम्परागत पोशाक है एवं वह भारत का गर्व है। इसे पहनने से स्वयं में एक आत्मविश्वास की भावना आती है और अपने देश से जुड़ाव का अनुभव होता है।

ऐसी पोशाक स्मार्ट कैजुअल नहीं है?
हिन्दुओं में जीजाबाई को अत्यंत सशक्त स्त्री माना जाता है, जिनका जीवन साड़ी पहने ही बीता तो क्या वह स्मार्ट कैसुअल्स नहीं थी? जिस ताराबाई ने औरंगजेब को धूल चटा दी थे, वह भी साड़ी ही पहना करती थी, और यह अंग्रेजी बोलने वाले रेस्टोरेंट, जो अपनी अंग्रेजों की गुलामी से अभी तक स्वतंत्र नहीं हो पाए हैं, वह साड़ी को ही पिछड़ा कह रहे हैं? जबकि पिछड़े यह स्वयं हैं क्योंकि यह अंग्रेजों की गुलामी ढो रहे हैं अपने कन्धों पर!


यदि यह लोग साड़ी को स्मार्ट कैजुअल्स नहीं मानते हैं तो यह तो फिर हर सफल स्त्री को नकारेंगे क्योंकि भारत में लगभग हर सफल स्त्री साड़ी ही पहनकर अपनी सफलता का उत्सव मनाना पसंद करती है, क्योंकि वह उस समय अपनी मिट्टी से जुड़ाव और लगाव अनुभव करती है।

भारत जैसे देश में साड़ी के साथ ऐसी सोच रखना निंदनीय ही नहीं भर्त्सनीय है, इसकी भर्त्सना हो, बहिष्कार हो और गुलाम सोच से बाहर निकालने के लिए प्रशिक्षण प्रदान किया जाए।
साड़ी जैसी ड्रेस स्मार्ट कैजुअल नहीं है, यह सोच ही स्वयं में हास्यास्पद है क्योंकि भारत कोकिला से लेकर मृदुला सिन्हा तक, लेखिकाओं और पत्रकारों ने भी साड़ी को न केवल धारण किया है बल्कि उसे सगर्व अपनी पहचान बनाया है।
वैचारिकता से इतर, पार्टी पोलिटिक्स से परे, भारत में रहने वाली और जनता के साथ संपर्क करने वाली स्त्रियों ने एवं सार्वजनिक क्षेत्र में संघर्ष करने वाली स्त्रियों से लेकर कॉरपोरेट्स में सफल स्त्रियों ने साड़ियों को अपनी पहचान बनाया।
अभी हाल ही में हुए मंत्रीमंडल विस्तार का यह चित्र सफल और स्वतंत्र स्त्रियों का प्रतीक है:

इन पिछड़े लोगों को तो यह भी नहीं ज्ञात होगा कि जिस देश में खड़े होकर वह साड़ी को गाली दे रहे हैं, उसका संविधान लिखने वाली सभा में जो स्त्रियाँ सम्मिलित हुई थीं वह भी साड़ी पहनी हुई ही स्त्रियाँ थीं।

क्योंकि वह स्त्रियाँ मन से स्वतंत्र थीं, और यह रेस्टोरेंट और उसके मालिक गुलाम हैं, वह आत्महीनता और गुलाम ग्रंथियों से भरे हैं। नेट पर लोग इस रेस्टोरेंट का विरोध कर रहे हैं! जिन्होनें साड़ी को स्मार्ट कैजुअल्स नहीं माना है दरअसल वह स्वयं को भारतीय ही नहीं मानते हैं। वह वही काले अंग्रेज हैं, जिनकी कल्पना मैकाले ने की थी और क्रियान्वयन ऐसे लोगों ने किया है! पर विरोध हमेशा साड़ी पहनी स्त्रियों ने किया जैसे कनकलता बरुआ ने

पर वह यह भूल गए हैं कि साड़ी एक सफल एवं स्वतंत्र पहचान का प्रतीक है, इनके जैसी गुलामी का नहीं!