मुम्बई में एक महिला तब सदमे में आ गयी थीं जब उन्होंने देखा कि उनके घर के बाहर एक सेल्समैन अश्लील हरकत कर रहा है। अर्थात हस्तमैथुन कर रहा है। यह घटना सीसीटीवी में कैद हो गयी थी।
यह घटना ४ जनवरी की है। महिला यह देखकर डर गयी थी और उन्होंने पुलिस को बुला लिया था। जब तक पुलिस पहुँची थी, तब तक आरोपी भाग गया था। परन्तु पुलिस को यह विश्वास था कि वह दोबारा आएगा क्योंकि महिला ने स्वयं विरोध नहीं किया था।
पुलिस का अनुमान सत्य निकला और एक सप्ताह के बाद ही वह पुन: आया और अपनी उसी हरकत को दोहराने लगा। इस बार पुलिस ने उसे धर दबोचा।
हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार आरोपी का नाम अली सैयद अहमद है। बांद्रा पुलिस स्टेशन के एक अधिकारी ने कहा कि “शिकायतकर्ता ने हमें बताया कि उसके दरवाजे की घंटी बजी और उसने झाँक कर देखा कि वह कौन है, जब उसने आरोपी को इस कृत्य में लिप्त देखा। हमने बिल्डिंग के सीसीटीवी फुटेज चेक किए। हालांकि इसमें अपराध दर्ज हो चुका था, मगर फिर भी कैमरे की खराब गुणवत्ता के कारण आरोपी का चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था!”
यही कारण है कि पुलिस जहां ४ जनवरी को उसे नहीं पकड़ पाई थी, तो वहीं दूसरी बार उसे हिरासत में ले लिया। हालांकि इस घटना को टीवी 9 ने इस प्रकार दिखाया है कि जिसमें आरोपी के साथ ही सहानुभूति उत्पन्न हो। लिखा है कि पत्नी छोड़ गयी और सेल्समैन तीन सालों से अकेला रह रहा है!
हिन्दी मीडिया की यह आदत है कि मुस्लिमों द्वारा किए गए अपराधों में कोई न कोई सहानुभूति का कोण खोजकर उसे उचित ठहराने का प्रयास करती है। यदि किसी की बीवी छोड़कर चली भी जाएगी तो उसे दूसरा निकाह करना चाहिए या फिर इस प्रकार की घृणित घटना करनी चाहिए!
एक और बात अब स्पष्ट होनी चाहिए कि यदि अपराधी मुस्लिम है और उसकी बीवी है तो उसके लिए पत्नी या मुस्लिम युवक के लिए शौहर के स्थान पर पति का प्रयोग न किया जाए। ऐसा इसलिए पत्नी शब्द का उच्चारण लेते ही छवि एक साड़ी पहने हुए, सिन्दूर लगाए हुए महिला की उभरती है। क्योंकि पति-पत्नी शब्द जहां हिन्दू संस्कृति के हैं तो वहीं शौहर-बेगम और हजबैंड-वाइफ किसी और के! यह तीनों की ऊपर से एक से दिखते हुए परस्पर अवधारणात्मक स्तर पर भिन्न हैं।
जैसे ही कोई मीडिया हेडलाइन होती है कि पत्नी छोड़कर चली गयी थी, तो मस्तिष्क एक छवि बना लेगा कि पत्नी अपने पति अर्थात हिन्दू स्त्री अपने पति अर्थात हिन्दू युवक को छोड़कर चली गयी है और एक हिन्दू युवक इस प्रकार की हरकत कर रहा है।
हेडलाइन में यह पंक्ति क्यों जोड़ी गयी? यदि किसी के निजी जीवन में कोई दुःख होगा या फिर कथित रूप से उसे उसके जीवन साथी ने छोड़ दिया होगा तो क्या उसे यह मीडिया यह अधिकार दे देगा कि वह दूसरी महिला का अपमान करे? क्या हर मामले की रिपोर्टिंग इसी प्रकार की जाती है?
इसमें हर पोर्टल में तीसरी या चौथी पंक्ति में आरोपी का नाम बताया गया है कि आरोपी सैयद अहमद है! कल्पना करें कि यदि आरोपी कोई हिन्दू होता? अभी हाल ही में एयरपोर्ट पर हुए दो मामलों में मीडिया की “सेक्युलर” रिपोर्टिंग देखी गई थी। दो घटनाएं और दोनों ही शर्मनाक थीं, परन्तु एक घटना में चूंकि आरोपी हिन्दू और वह भी ब्राह्मण था, तो उस घटना को विश्व में भारत का नाम बदनाम करने वाली घटना बता दिया गया और उसी प्रकार की दूसरी घटना में जौहर खान था आरोपी तो उसका चेहरा तक नहीं दिखाया गया और न ही उसे उस प्रकार सार्वजनिक रूप से अपमानित किया गया जैसे “मिश्रा” उपनाम वाले व्यक्ति को किया गया था।
यह मीडिया ऐसा ही है।
परन्तु सोशल मीडिया पर लोग यह प्रश्न कर रहे हैं कि अब सागरिका क्या कहेंगी? लोगों ने प्रश्न किये कि अब यह दोनों क्या करेंगे?
एक यूजर ने लिखा कि सागरिका द्वारा यह लेख लिखे जाने की प्रतीक्षा में है कि वह दस तरीके बताएंगी कि कैसे स्पर्म एक प्राकृतिक मोइश्चराइज़र के रूप में कार्य करता है!”
पाठकों को याद होगा कि यह वही मीडिया है जिसने एक बार होली जैसे पवित्र पर्व को भी सीमन से भरे हुए गुब्बारे फेंकने का माध्यम बताया था और हिन्दुओं को बदनाम किया था और जब मीडिया का झूठ पकड़ा गया था तो उसके बाद भी न कोई क्षमा और न ही पछतावा! और हर बार फिर हिन्दुओं को बदनाम करने का एक नया अवसर, जैसा अभी एयरपोर्ट वाले मामले में देखा गया।
वहीं जब कोई मुस्लिम पकड़ा जाता है तो उसके अपराध के प्रति एक प्रकार की सहानुभूति उत्पन्न की जाती है। आरोपी का नाम भी शीर्षक में नहीं बताया जाता है और यही विमर्श में उनकी जीत है, कथित बहुसंख्यक समाज की विमर्श में इसीलिए पराजय है क्योंकि उनके अपने लोग ही “अवधारणात्मक शब्दों” की शक्ति नहीं समझते हैं!