पंजाब में संगरूर में मुख्यमंत्री भगवंत मान की सीट पर आम आदमी पार्टी की पराजय एक अंत्यत खतरनाक संकेत दे रही है। यद्यपि ऐसा नहीं है कि पहले ऐसा नहीं होता था, या नहीं हुआ था, परन्तु अब जब राजनीति के पारंपरिक तरीके बदल गए हैं, तो ऐसे में एक-एक घटना अत्यंत महवपूर्ण हो जाती है।
यह भी अचरज में डालने वाला तथ्य है कि कैसे एक ऐसे व्यक्ति को सांसद के लिए जनता ने चुना है, जो भारत की केंद्र सरकार को खुले आम “हिन्दू इंडियन स्टेट” कहता है। और जो अमेरिका से यह मांग करता है कि अमेरिका यूएससीआईआरएफ की सलाह के साथ भारत को लाल सूची में रखे, क्योंकि भारत ने सिख लोगों के साथ जीनोसाइड किया है।
सिमरनजीत मान, जो शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के प्रमुख हैं, उन्होंने भगवंत मान को हराया है। उन्होंने संगरूर से वर्ष 1999 में जीत हासिल की थी, और उन्होंने यह सीट एक ऐसे पूर्व आईपीएस अधिकारी के रूप में जीती थी, जिसने ऑपरेशन ब्लू स्टार के खिलाफ विरोध में त्यागपत्र दे दिया था और राजनीति में कूद पड़े थे।
फिर उसके बाद वह एक बार भी नहीं जीते, यहाँ तक कि राज्य में हुए विधानसभा चुनावों में भी वह एक बार भी नहीं जीते। फिर भी लोकसभा चुनाव में यह जीत इसलिए खतरनाक है कि अब यह विभाजनकारी सोच, जो भारत सरकार को “हिन्दू इंडियन स्टेट” कहती है, वह संसद में अपनी बात रखेंगे!
उनकी ट्विटर प्रोफाइल में भी लिखा है कि वह “खालिस्तान” के लिए संघर्ष करने वाले हैं!
यहाँ तक कि सिमरनजीत सिंह मान ने हिजाब वाली बात को लेकर भी भारतीय जनता पार्टी तथा साथ ही कहीं न कहीं न्यायालय की सुनवाई पर भी टिप्पणी की थी। उन्होंने लिखा था कि जिन गावों में मुस्लिम जनसँख्या है वहां मैं गया। महिलाओं को हिजाब पहनने की छूट है।
जबकि सभी को यह पता है कि यह मामला मात्र स्कूलों में या शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने को लेकर था।
इतना ही नहीं सिमरनजीत सिंह मान का मानना है हिन्दू भारत कश्मीर में मुस्लिमों पर अन्याय कर रहा है। सिमरनजीत सिंह ने अपनी जीत को भिंडरावाले की शिक्षाओं की जीत भी बताया।
आम आदमी पार्टी का भी खालिस्तान प्रेम स्पष्ट है
यह भी देखना हैरान करने वाला है कि जहाँ आम आदमी पार्टी पर भी आरोप लगते हैं कि वह खालिस्तानी तत्वों के प्रति सम्वेदनशील है, जैसा कि कुमार विश्वास ने पंजाबा चुनाव से पूर्व आरोप लगे थे, फिर भी जनता ने आम आदमी पार्टी को न चुनकर सीधे एक ऐसे व्यक्ति को चुना जो खुले आम भारत को ललकारता है, तो क्या यह समझा जाए कि आम आदमी पार्टी ने इन तत्वों के प्रति एक स्थान बनाया तो वहीं अब उन्हीं कट्टरपंथी तत्वों ने व्यवस्था में अपना स्थान बना लिया!
इसी बात को ट्विटर पर लोगों ने भी कहा कि एक छिपी हुई अलगाववादी पार्टी से अब खुलेआम खालिस्तान की बात करने वाली पार्टी, और लोग यह भी कह रहे हैं, इतना लोकतंत्र?
अपनी जीत वाले भाषण में भी उन्होंने यही कहा कि कश्मीरी मुस्लिमों पर भारत सरकार अत्याचार करती है।
लोगों ने भी यही हैरानी व्यक्त की कि भारत में लोकतंत्र में भारत के विभाजन का समर्थक एक व्यक्ति सांसद बन सकता है,
जनता दुखी है और कह रही है कि भारत और पंजाब के लिए दुखद दिन, क्योंकि पाकिस्तान जिंदाबाद कहने वाला व्यक्ति अब हमारी संसद में बैठेगा
आम आदमी पार्टी के प्रति मोहभंग के क्या कारण थे?
आखिर ऐसे क्या कारण थे जिनके कारण ऐसे विभाजनकारी विचारों के बहकावे में जनता आ गयी?
क्या मूसावाला की हत्या आम आदमी पार्टी पर भारी पड़ गयी?
पंजाबी गायक सिद्धू मूसावाला की हत्या 29 मई को हुई थी और उस हत्या के बाद से ही पंजाब का वातावरण बदलने लगा था, क्योंकि कहीं न कहीं इस हत्या के लिए पंजाब सरकार को उत्तरदायी ठहराया जाने लगा था। एक ही दिन पहले आम आदमी पार्टी सरकार ने कुछ लोगों की सुरक्षा वापस लिए जाने की घोषणा की थी और साथ ही उनकी सूची भी जारी कर दी थी, तो उसके बाद उस पर हमला हुआ था, यही कारण था कि उसके समर्थकों का समर्थन लगभग पूरी तरह से आम आदमी पार्टी के विरुद्ध गया।
यह भी चौंकाने वाली बात है कि अकाली दल ने अपना टिकट कमलदीप कौर को दिया था जो पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह ह्त्या मामले में मृत्यु दंड पाए हुए बलवंत सिंह राजोना की बहन हैं।
तो क्या यह माना जाए कि यह राजनीति है जो आम लोगों को और कट्टर बनाती जा रही है, वह ऐसे लोगों को मुख्यधारा की राजनीति में ला रही है, जो कट्टरपंथ का समर्थन करते है? और आम लोग इसमें फंस जाते हैं?
जैसा कई बार मुस्लिम समुदाय में भी देखते हैं कि भड़काऊ बातें करने वालों को मीडिया से लेकर राजनीति में अधिक स्थान प्राप्त होता है और एक ऐसी छवि बनाई जाती है जैसे पूरा समुदाय ही ऐसा है, जबकि पसमांदा मुस्लिमों का एक बड़ा वर्ग इस कट्टरपंथ का विरोध करते हुए भी पाया जाता है।
यह देखना भी रोचक होगा कि सिखों के लिए खालिस्तान के रूप में अलग राज्य मांगने वाले सिमरनजीत सिंह जब सांसद की शपथ लेंगे तो भारत के संविधान की और भारत की अखंडता की बात कैसे करेंगे?
जो भी लोग आम आदमी पार्टी की हार पर यह कह रहे हैं कि आम आदमी पार्टी का जादू कम हुआ, तो यह भी देखना महत्वपूर्ण है कि अंतत: कौन से विचार उभर कर आ रहे हैं? और राजनीति किस ओर जा रही है?