क्या कभी ऐसा हो सकता है कि मात्र दो सौ रूपए के लिए कोई इतना भड़क जाए कि वह जान लेने के लिए उतारू हो जाए? क्या कभी ऐसा हो सकता है कि 200 रूपए से भी सस्ती दूसरे की पूरी ज़िन्दगी हो जाए? क्या कभी ऐसा हो सकता है कि सामने वाले के सारे सपने मात्र दो सौ रूपए के लिए दम तोड़ जाएं?
ऐसा ही हुआ शाहजहांपुर में सचिन कश्यप के साथ, जिन्होनें यह कहते हुए एक फटे हुए नोट को लेने से इंकार किया कि वह फटा हुआ है, तो नदीम ने उसे गोली मार दी!
क्या कोई यह सोच सकता है कि ऐसा भी किसी के साथ हो सकता है? क्या कभी कोई कल्पना भी कर सकता है कि ऐसा भी कुछ हो सकता है? मगर ऐसा हुआ! और जब हुआ तो लोग दंग रह गए कि यह कैसी गुंडागर्दी है, यह कैसी मानसिकता है कि जो नोट तक को नहीं बदल सकती है? यह कैसी मानसिकता है जो दूसरों को इतना गुलाम समझती है कि इंकार करने पर जान ले लेती है!
यह कैसी मानसिकता है जो यह नहीं समझ पाती है कि जिसे वह मार रहे हैं, वह भी किसी माँ का बेटा है, यह कैसी मानसिकता है जो यह नहीं समझ पाती है कि जिसे वह मार रहे हैं, उसके भी कुछ सपने, कुछ अरमान हैं?
मीडिया के अनुसार पीड़ित सचिन कश्यप ने एक ऐसा नोट लेने से इंकार कर दिया जो फटा हुआ था। वह नदीम खान के घर पर पिज़्ज़ा डिलीवर करने के लिए गया था।
नदीम ने फोन पर एक पिज़्ज़ा ऑर्डर किया था, जब वह आउटलेट 11 बजे रात को बंद होने जा रहा था। लगभग 11।30 पर सचिन और उसके सहकर्मी उस पिज़्ज़ा को डिलीवर करने और पैसे लेने गए। उसका सहकर्मी उन दो सौ रूपए से सॉफ्ट ड्रिंक लेने चला गया, मगर उस दुकानदार ने कहा कि वह नोट फटा है तो दूसरा नोट दें।
फिर वह दोनों वापस गए, और नदीम के घर का दरवाजा खटखटाया और नदीम से वह नोट बदलने का अनुरोध किया। इस पर नदीम गुस्सा हो गया और उन दोनों को गालियाँ देने लगा। जल्दी ही उसका भाई बाहर आया और सचिन को देसी तमंचे से गोली मार दी।
गोली चलने की आवाज सुनकर एक पड़ोसी ने पुलिस को सूचित किया।
इस मामले के दोनों आरोपियों नदीम और नईम को पुलिस ने पकड़ लिया है।
पुलिस ने बताया कि पिज्जा डिलीवरी ब्यॉय को गोली मारने वाले दोनों अभियुक्तों को किया गिरफ्तार, एक अवैध तमंचा 12 बोर मय कारतूस व घटना मे प्रयुक्त अवैध तमंचा 32 बोर मय जिन्दा/खोखा कारतूस बरामद किए गए।
अभी सचिन अपने जीवन और मृत्यु का युद्ध लड़ रहा है।
दुःख की बात यह है कि सचिन जैसे युवाओं के साथ हो रही ऐसी अनेकोनेक घटनाएं कभी भी उस विमर्श में सम्मिलित नहीं हो पाती हैं, जो कथित मुख्यधारा का विमर्श है, जो कथित असमानता और अन्याय का विरोध कर रहा है, जो क़त्ल पर बात करता है, जो मानसिकता पर बात करता है, और जो यह कहता है कि देश के एक भी नागरिक का खून व्यर्थ नहीं बहना चाहिए, वही विमर्श सचिन कश्यप पर गोली चलाए जाने की बात नहीं करता है!