कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी की सरकार धर्मांतरण विरोधी कानून ला रही है और इस कारण वहां पर ईसाई रिलिजन वाले बहुत परेशान हैं। और ईसाई रिलिजन का प्रचार करने वाली एजेंडा वेबसाइट्स इसे लेकर दुष्प्रचार कर रही हैं। इस कानून में ऐसा क्या है, जिसके कारण यह लोग परेशान हैं। बिशप की सूचनाओं का अभियान चलाने वाली ईसाई संस्थाएं परेशान हैं और वह बार बार लिख रही हैं कि यह नया कानून ईसाइयों के खिलाफ है!
यह कानून ईसाइयों के खिलाफ कैसे हो सकता है?
क्या है कानून में:
हालांकि अभी इस प्रस्तावित विधेयक की समीक्षा कानून विभाग कर रहा है, परन्तु कुछ ऐसी बातें हैं जिन पर ईसाई समुदाय को आपत्ति है। जिनमें एक है कि जो भी हिन्दू अपना धर्म बदलकर ईसाई बनता है, उसे आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।
मुख्यमंत्री बोम्मई ने कहा है कि धर्म परिवर्तन समाज के लिए अच्छा नहीं है। समाज के गरीब और कमजोर वर्ग को इसके झांसे में नहीं आना चाहिए। और धर्मांतरण चूंकि परिवारों के बीच भी समस्याएं लाता है, इसलिए यह बिल प्रस्तावित है।
जो लोग इस का विरोध कर रहे हैं उनके लिए मुख्यमंत्री बोम्मई ने कहा कि हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई, यह सभी संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त धर्म है और किसी को भी धार्मिक प्रथाओं के पालन को लेकर डरने की आवश्यकता नहीं है।
परन्तु ईसाइयों के साथ साथ केवल कांग्रेस भी इसका विरोध कर रही है। हालांकि सरकार की ओर से यह बार बार स्पष्ट किया जा रहा है कि यह केवल लोभ और लालच देकर धर्मान्तरण के लिए है।
अक्टूबर में जब चर्च –मिशनरियों का सर्वे हुआ था तब भी नाराजगी थी
अक्टूबर 2021 में कर्नाटक में चर्च और ईसाई मिशनरी का सर्वे हुआ था, तब भी ईसाइयों में नाराजगी थी। सितम्बर में कर्नाटक विधानसभा में विधायक ने मिशनरी का काला चिट्ठा खोलते हुए कहा था कि इन मिशनरी ने उनकी माँ सहित बीस हजार हिन्दुओं को ईसाई बना दिया था। उन्होंने परत डर परत खोली थीं, कि कैसे ईसाई मिशनरी जबरन धर्म परिवर्तन करवाती हैं और विरोध करने पर झूठे मामलों में फंसाने की धमकी देती हैं।
उन्होंने यह बताया था कि कैसे उनकी माँ को पहले कुमकुम न लगाने के लिए कहा और बाद में तो उन्होंने अपनी मोबाइल टोन भी जीसस की कर ली थी।
हालांकि बहुत प्रयासों के बाद वह अपनी माँ और चार परिवारों की घर वापसी कराने में सरल रहे थे।
ईसाई मिशनरियों पर बार बार लालच देकर धर्मांतरण के आरोप लगते हैं और लगते रहे हैं। इसी कारण लगभग हर राज्य में अब धर्मान्तरण विरोधी कानून बन रहा है।
मिशनरी देती हैं, संविधान की धारा 25 का हवाला
जब भी धर्मांतरण की बात आती है तो मिशनरी सबसे अधिक संविधान की धारा 25 का हवाला देती हैं, जिसमें धर्म पालन की बात की गयी है। धर्म से सम्बन्धित अधिकार प्रदान किए गए हैं। इसमें याद अधिकार दिया गया है कि कोई भी व्यक्ति अपने मन के अनुसार धर्म का पालन कर सकता है। और इसी बात को ईसाई प्रोपोगैंडा मिशनरी वेबसाइट्स भी उठाती हैं। ऐसी ही एक प्रोपोगैंडा वेबसाईट के अनुसार बंगलुरु के कैथोलिक आर्कबिशप पीटर मचाडो ने कहा कि “एंटी-कन्वर्जन बिल भारतीय संविधान के मूलभूत अधिकार का हनन है। यह कई धाराओं का उल्लंघन करती है और भीम राव आंबेडकर, जिन्होनें भारतीय संविधान को लिखने में मुख्य भूमिका निभाई थी, वह भी बौद्ध धर्म में बिना राज्य की अनुमति के मतांतरित हो गए थे!”
वह शायद धारा 25 की बात कर रहे हैं। परन्तु एक बात स्पष्ट होनी चाहिए कि संविधान की धारा 25 धर्म प्रचार की अनुमति देती है, वह लोभ और लालच द्वारा हर प्रकार के धर्मांतरण को गलत ठहराती है।
यह समझना होगा कि धर्म प्रचार अर्थात अपने धर्म की शिक्षाओं को बताना तो अधिकार हो सकता है, पर जब इसे जबरन धर्मांतरण का आधार बनाया जाता है तो यह गैरकानूनी है।
संविधान की धारा 25 की व्याख्या कई बार और कई निर्णयों में उच्चतम न्यायालय द्वारा की गयी है। ऐसा ही एक निर्णय है Rev। Stainislaus vs State Of Madhya Pradesh & Ors on 17 January, 1977( रेवरेन्ड स्टेनिस्लॉ बनाम मध्य प्रदेश के राज्य 1977)
इसमें न्यायालय ने स्पष्ट कहा था कि भारत के संविधान की धारा 25 में सभी व्यक्तियों को अपने धर्म का पालन करने और उसका प्रचार करने की स्वतंत्रता है, परन्तु इसकी सीमाएं हैं और यह जनता के लिए व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य की सीमाओं में है। “प्रचार” का अर्थ है कि आप अपने धर्म की शिक्षाओं को लोगों तक पहुंचा सकते हैं। परन्तु यह धारा आपको यह अधिकार नहीं देती है कि आप दूसरों को अपने धर्म में जबरन लाएं!
न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि धारा 25 केवल एक ही धर्म के लिए नहीं है, इसमें सभी धर्म आते हैं।
इस निर्णय में न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि मध्यप्रदेश अधिनियम बल से, लालच और धोखे से एक धर्म से दूसरे धर्म में जाने से रोक लगाता है और ओडिशा का अधिनियम भी यही कहता है।
और जबरन, लालच से या धोखे से धर्मान्तरण से पब्लिक आर्डर प्रभावित होता है।
ऐसा ही एक और निर्णय था वर्ष 1969 में दिग्य्दर्शन राजेन्द्र रामदास जी बनाम आंध्र प्रदेश, इसमें भी यही कहा गया था कि हर व्यक्ति के पास अपने धर्म का प्रचार करने का अधिकार है।
संविधान की धारा 25 यह स्पष्ट करती है कि धर्म प्रचार की स्वतंत्रता असीमित नहीं है, यह कुछ शर्तों के दायरे में है। सरकार कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए इसे सीमित कर सकती है।
ईसाई मिशनरी को यह बात ध्यान में रखनी ही होगी कि आपके रिलिजन के प्रचार की स्वतंत्रता असीमित न होकर दायरे में है और यह कि रिलिजन प्रचार के अधिकार का अर्थ दूसरे का धर्म परिवर्तन नहीं होता है और यदि आपको धर्म परिवर्तन की स्वतंत्रता है तो यह अधिकार सभी धर्मों को है, जिनमें हिन्दू धर्म भी सम्मिलित है!
इसलिए धारा 25 की गलत व्याख्याएं बंद होनी चाहिए!