आम तौर पर एक विशेष विचार को न मानने वालों को ‘गोदी मीडिया’ कह कह कर सम्बोधित किया जाता है। यद्यपि यह अत्यंत ही अपमानजनक है कि एक विचार को आप अस्वीकार करने के लिए इस सीमा तक चले जाएं कि उसे आप ‘गोदी मीडिया’ तक कहने लगें। पर आप कौन से मीडिया है, यह भी बार बार स्पष्ट होता रहा है। फिर चाहे राहुल गांधी जी से ‘समोसा कैसा लगा’, पूछने की पत्रकारिता हो या फिर सोनिया गांधी जी का वह इंटरव्यू जिसमें उनसे उनके और इंदिरा गांधी जी के सम्बन्धों के विषय में पूछा जाता रहा था।
‘गोदी मीडिया’ कहने वाले रविश कुमार ने क्लबहाउस में जिस प्रकार से बंगाल चुनावों को लेकर प्रधानमंत्री मोदी और पश्चिम बंगाल की लोकप्रियता को लेकर प्रशांत किशोर से बात की है, वह स्वयं में रविश कुमार की हताशा को प्रदर्शित करता है। परन्तु सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है पत्रकार साक्षी जोशी की ममता बनर्जी की यह प्रशंसा कि वह एक हैलीकॉप्टर से उतरती हैं और रैली करती हैं और फिर दूसरे हैलीकॉप्टर में चढ़ जाती हैं, तो ऐसे में वह वाशरूम (शौचालय) कहाँ जाती हैं क्योंकि बकौल साक्षी जोशी उन्होंने ममता बनर्जी को कहीं किसी के घर में जाते नहीं देखा है।
यह प्रश्न चापलूसी की हर पराकाष्ठा को पार करता हुआ प्रश्न है। जो पत्रकार आज ममता बनर्जी की इसलिए प्रशंसा कर रहे हैं कि वह वाशरूम जाए बिना चुनावी रैलियां कर रही हैं, वही पत्रकार उन पत्रकारों की श्रेणी में सम्मिलित हैं जो बार बार सरकार द्वारा चलाए जा रहे स्वच्छ भारत अभियान का उपहास उड़ाते रहते हैं। यह प्रश्न या प्रशंसा वह दरबारी चाटुकारिता है, जिसकी इन सभी को आदत है।
साक्षी जोशी जैसी महिला पत्रकार प्रशांत किशोर से यह पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही हैं कि भाजपा के कार्यकर्ताओं पर हमले क्यों हो रहे हैं? भाजपा के कार्यकर्त्ता की माँ की हत्या क्यों हो रही है? यहाँ तक कि पश्चिम बंगाल में बिगड़ते हुए क़ानून व्यवस्था के हाल पर भी वह नहीं बोलती हैं जो महिलाओं के साथ जुड़ा हुआ मामला है। वह बोलीं भी तो केवल और केवल इस बात के लिए कि ममता बनर्जी वाशरूम कहाँ जाती हैं और कब जाती हैं? इस बात पर प्रशांत किशोर भी चौंक गए और उन्होंने पूछा कि क्या उन्हें इस प्रश्न का भी उत्तर देना है?
यहाँ पर हम हँस अवश्य लें, परन्तु हँसने की तनिक भी बात नहीं हैं, बल्कि यह तो दरबारी पत्रकारों का वह पतन है जिस पर हम सभी को अचम्भित होना चाहिए। साक्षी जोशी जाहिर है कि प्रधानमंत्री मोदी की मुखर विरोधी हैं।
Candid Confessions in the Clubhouse
MODI IS VERY POPULAR !! pic.twitter.com/N65jzFvuWN— Sambit Patra (@sambitswaraj) April 10, 2021
अब जो प्रश्न दूसरा लीक हुआ है, वह भी स्वयं में हास्यास्पद है कि जिसमें रविश पूछ रहे हैं कि क्या एंटी-इनकम्बेंसी (सरकार विरोधी लहर) का कोई भी प्रभाव पश्चिम बंगाल में नहीं है? अर्थात मोदी इतना ‘असफल हो रहे हैं’, फिर भी पश्चिम बंगाल की जनता उनसे इतना प्रेम क्यों करती है? ध्यान दें की विधान-सभा चुनाव में रविश को 10 साल से मुख्य-मंत्री पद पर आसीन ममता के प्रति एंटी-इनकम्बेंसी में कोई रूचि नहीं है, परन्तु प्रधान मंत्री को कठघरे में खड़ा करना है!
इस बात पर प्रशांत किशोर जब यह कहते हैं कि मोदी बंगाल में भी लोकप्रिय हैं, तो यह सुनते ही शायद उन कई ‘निष्पक्ष’ पत्रकारों के पैरों तले से जमीन खिसक गयी होगी जो आज तक हर हाल में नरेंद्र मोदी को साम्प्रदायिक घोषित करते हुए आए थे।
प्रशांत किशोर यह स्पष्ट कहते हुए दिखाई दे रहे हैं कि एंटीइनकम्बेंसी है तो मगर केवल राज्य सरकार के खिलाफ, मोदी पश्चिम बंगाल में काफी लोकप्रिय हैं। उसके बाद वह भाजपा के आने की लगभग भविष्यवाणी करते हुए कहते हैं कि पश्चिम बंगाल के लोगों ने पहले कांग्रेस, और फिर वाम दल और फिर तृणमूल कांग्रेस को आजमाया है, पर उन्होंने भाजपा को नहीं देखा है। तो उन्हें ऐसा लगता है जैसे भाजपा कुछ नया ला रही है। इसलिए वह हर भाजपा को आजमाना चाहते हैं।
वह कहते हैं कि तृणमूल के खिलाफ गुस्सा है, ध्रुवीकरण है, और मोदी लोकप्रिय हैं।
प्रश्न यह है कि आज तक कुछ हज़ार लोग जो वर्ष 2002 से केवल इसी बात पर लगे हुए थे कि मोदी को नीचा दिखाया जाए, मोदी को बर्बाद किया जाए, वह आज तक नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को मान क्यों नहीं पा रहे हैं? वह यह बात क्यों नहीं मान पा रहे हैं कि वह इतने वर्षों से जिस व्यक्ति की आलोचना कर रहे हैं, जनता उन्हें पसंद कर रही है। अब वह समय नहीं है जब कुछ मुट्ठी भर के कथित बौद्धिक पत्रकार जो केंद्र सरकार में मंत्री तक बनाने की बात करते थे, उनके इशारे पर लोग वोट दे आते थे।
कथित बौद्धिकता और निष्पक्षता की कलई उतर चुकी है और जनता अब यह जानती है कि कौन वाशरूम पत्रकार है और कौन जनता के पक्ष में बोलने वाला पत्रकार है। कौन जनता का लेखक है और कौन सरकार का विरोध करने के बहाने विपक्षी दलों की गोद में बैठने वाला पत्रकार है।
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