HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
23.3 C
Sringeri
Friday, June 2, 2023

अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की वापसी और अफगानी औरतों का डर

वर्षों से शांत और अशांत दोनों ही स्थितियों का सामना कर रहे भारत के पश्चिमी देश अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की वापसी अब लगभग निश्चित हो गयी है।  ऐसा लग रहा है, जैसे बहुप्रतीक्षित शान्ति स्थापित होने वाली है।  परन्तु तालिबान के साथ हुए समझौते में जहां पड़ोसी देशों के मन में तो संशय के बादल हैं ही, पर अमेरिकी सेना की वापसी को लेकर जो सबसे बड़ा वर्ग सशंकित है और डर से भरा हुआ है, वह है वहां की औरतों का, जिनके मूलभूत अधिकारों का हनन तालिबानी शासन में हुआ था।  तालिबानी शासन के दौरान महिलाओं के पास यह अधिकार नहीं था, कि वह बिना किसी पुरुष के घर से बाहर नहीं निकल सकती थीं। वह नौकरी नहीं कर सकती थीं, राजनीति में भाग नहीं ले सकती थीं और न ही वह सार्वजनिक रूप से अपनी बात रख सकती थीं।

उनकी दुनिया केवल घर की चारदीवारी ही थी। पर्दा, बुरका और तमाम तरह के बंधन उनकी दुनिया थी। मगर वर्ष 2001 में तालिबान के शासन की समाप्ति के बाद कई ऐसे कदम उठाए गए, जिन्होंने वहां की औरतों को यह विश्वास दिलाया कि वह भी जीवन जी सकती हैं, हालांकि बीच बीच में औरतों पर हमले होते रहे, पर वह रुकी नहीं, वह आए बढ़ती रहीं।  वह हर क्षेत्र में आगे गईं फिर चाहे वह राजनीति हो या फिर पत्रकार या फिर शिक्षिका आदि। परन्तु अब वह डर के साए में हैं। कहीं न कहीं उन्हें ऐसा लग रहा है कि एक वही अन्धेरा दौर वापस आ जाएगा, जो आज से बीस साल पहले चला गया था।  न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस सम्बन्ध में कई अफगानिस्तानी औरतों से बात की तो उनमें उनका डर उभर कर आया।

अफगान संसद में सांसद रेहाना आज़ाद कहती हैं “हर समय, औरतें ही मर्दों की जंग का शिकार होती हैं। पर वह शान्ति का भी शिकार होती हैं।  वर्ष 2001 के बाद कई बंद पड़े स्कूल खुले और लड़कियों को एक अवसर प्राप्त हुआ कि वह खुलकर सांस ले सकें! पर क्या यह खुली साँस उन्हें आगे भी मिल पाएगी? यह प्रश्न कई औरतों का है।  दो दशकों में औरतों की स्थिति सुधारने के लिए काफी प्रयास किया गया है, और इसी का परिणाम है कि आज अफगानिस्तान में औरतें काम पर जा पा रही हैं। पर अब वह फिर से शंकाओं के घेरे में हैं।

हालांकि न्यूयॉर्क टाइम्स में यह स्पष्ट लिखा है कि अमेरिकी प्रशासन ने हालांकि अपनी सेनाएं वहां से बुलाने के लिए हामी तो भर दी है, पर वह फिर भी औरतों के अधिकारों और स्थिति की रक्षा करने के लिए अमेरिकी सेना को वहां रखने पर भी विचार कर ही रहा है।  अफगानिस्तान के दक्षिणी कांधार क्षेत्र (जो महाभारत काल में गंधार था) में एक कार्यकर्ता शाहिदा हुसैन का कहना है “मुझे याद है कि जब अमेरिकी यहाँ आए थे तो उन्होंने कहा था कि वह हमें यहाँ अकेले नहीं छोड़कर जाएंगे और अफगानिस्तान जल्दी ही अत्याचारों से मुक्त होगा, यहाँ युद्ध नहीं होंगे और औरतों के हर अधिकार सुरक्षित होंगे।” यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि इसी क्षेत्र से तालिबान का उदय हुआ था।  पर वह बेहद निराश स्वर में कहती हैं कि यह अब महज एक नारा ही है।

मानवाधिकार समूह इस बात के प्रयास में लगे हुए हैं कि कैसे अफगान सरकार के साथ तालिबानों के समझौते के बाद वह अपनी महिला कर्मियों और विद्यार्थियों के साथ काम कर सकेंगे। वह एक आपातकालीन योजना बना रहे हैं। हालांकि इस खबर के अनुसार अभी अमेरिका के राष्ट्रपति ने कहा कि अमेरिका मानवतावादी और राजनायिक सलाह के माध्यम से औरतों के अधिकारों का संरक्षण करने का प्रयास करता रहेगा।

पर अफगानिस्तान की औरतों को इस वादे पर विश्वास नहीं है।  अफगानिस्तान के उत्तरी क्षेत्र में एक छोटा रेडियो स्टेशन चलाने वाली लीना शिर्ज़ाद, जो इस समय 15 औरतों को काम दे रहीं हैं, वह आने वाले समय के लिए डरी हुई हैं। वह इस असुरक्षा के माहौल से डरी हैं। उनके अनुसार इन सभी औरतों की नौकरी छूट जाएगी, जो अपने घर में रोटी कमाने वाली इकलौते सदस्य हैं।

स्पष्ट है कि अमेरिकी सेना जाने के बाद से ही अफगानिस्तान में औरतों के मन में भय बैठता जा रहा है। डर का विस्तार हो रहा है। उन्हें यह डर है कि उन्हें उन्हीं कबीलाई रस्मों का हिस्सा बनाया जाएगा और एक बार फिर से उनकी जान की कोई कीमत नहीं होगी। वह उस समय से डर रही हैं जो उनसे एक पीढ़ी पहले औरतों की थी। उन्हें यह लग रहा है कि अगर तालिबान अपनी शर्तों पर सत्ता में आता है तो क्या होगा? यह बेहद दुर्भाग्य की बात है कि आज भी कट्टरपंथी इस्लामी कबीलाई रस्मों को ही जारी रखना चाहते हैं और औरतों को इंसान न समझकर केवल कोई चीज समझते हैं, जिसकी जगह बुर्के के भीतर है। तभी पहले वह किसी भी औरत को कोड़े मारने की सजा दे दिया करते थे या फिर उनकी बात न मानने पर गोली भी मार देते थे।

आने वाला कल कैसा होगा यह तो अभी नहीं कहा जा सकता, हाँ यह जरूर कहा जा सकता है कि वाकई चिंता सभी को है, सीमा पार की उन औरतों का डर वास्तव में सिरहन पैदा कर रहा है।


क्या आप को यह  लेख उपयोगी लगा? हम एक गैर-लाभ (non-profit) संस्था हैं। एक दान करें और हमारी पत्रकारिता के लिए अपना योगदान दें।

हिन्दुपोस्ट अब Telegram पर भी उपलब्ध है. हिन्दू समाज से सम्बंधित श्रेष्ठतम लेखों और समाचार समावेशन के लिए  Telegram पर हिन्दुपोस्ट से जुड़ें .

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.