आज हिन्दी के मूर्धन्य कवि श्री अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध की पुण्यतिथि है. आज इस अवसर पर उनकी कुछ कविताएँ पाठकों के साथ साझा की जा रही हैं! वह ऐसे कवि हैं जिन्होनें देशप्रेम एवं भारतीय मूल्यों से ओतप्रोत कविताएँ लिखीं:
कर्मवीरदेख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं।
रह भरोसे भाग के दुख भोग पछताते नहीं।
काम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहीं।
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं।
हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले।
सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले।1।
आज करना है जिसे करते उसे हैं आज ही।
सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही।
मानते जी की हैं सुनते हैं सदा सब की कही।
जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही।
भूल कर वे दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं।
कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं।2।
जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं नहीं।
काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं।
आजकल करते हुए जो दिन गँवाते हैं नहीं।
यत्न करने में कभी जो जी चुराते हैं नहीं।
बात है वह कौन जो होती नहीं उनके किए।
वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिए।3।
कवि के विषय में कितना सुन्दर उन्होंने लिखा है:
रचती है कविता-सुधा सुधासिक्त अवलेह।
लहता है रससिध्द कवि अजर अमर यश-देह।1।
चीरजीवी हैं सुकवि जन सब रस-सिध्द समान।
उक्ति सजीवन जड़ी को कर सजीवता दान।2।
अमल धावल आनन्द मय सुधा सिता सुमिलाप।
है कमनीय मयंक सम कविकुल कीर्ति कलाप।3।
जन्मभूमि की सेवा करने वालों को उन्होंने योगी कहा है
जन्मभभूमि
सुरसरि सी सरि है कहाँ मेरु सुमेर समान।
जन्मभूमि सी भू नहीं भूमण्डल में आन।
प्रतिदिन पूजें भाव से चढ़ा भक्ति के फूल।
नहीं जन्म भर हम सके जन्मभूमि को भूल।
योगी बन उसके लिये हम साधे सब योग।
सब भोगों से हैं भले जन्मभूमि के भोग।
फलद कल्पतरू–तुल्य हैं सारे विटप बबूल।
हरि–पद–रज सी पूत है जन्म धरा की धूल।
उन्होंने भारतीयों के सांस्कृतिक पतन के विषय में लिखा है:
हमारा पतनजैसा हमने खोया, न कोई खोवेगा
ऐसा नहीं कोई कहीं गिरा होवेगा।
एक दिन थे हम भी बल विद्या बुद्धिवाले
एक दिन थे हम भी धीर वीर गुनवाले
एक दिन थे हम भी आन निभानेवाले
एक दिन थे हम भी ममता के मतवाले।
जैसा हम सोए क्या कोई सोवेगा।
ऐसा नहीं कोई कहीं गिरा होवेगा।
अयोध्या सिंह उपाध्याय “हरिऔध” जैसे कवियों को विमर्श से परे ही कर दिया है, और यही दुर्भाग्य है कि भारतीय मूल्यों के संवाहक रचनाकारों को विमर्श से बाहर कर दिया गया और विघटनकारी शक्ति वाले विचार को साहित्य का दर्जा दे दिया गया और नई पीढ़ी के दिमाग में डाल दिया गया! ऐसे में आवश्यक है कि अयोध्या सिंह उपाध्याय “हरिऔध” जैसे रचनाकारों को विमर्श में लाया जाए