मज़हबी कट्टरता का सम्बन्ध शिक्षा- संपन्नता से भी उतना ही है, जितना अशिक्षा-असंपन्नता से— जिसकी एक और मिसाल पाकिस्तान में सामने आयी है। पिछले दिनों दो ईसाई नर्सों को वहां ईश-निंदा के आरोप में गिरफ्तार करने की खबर आयी थी। इसकी पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करने वाले उच्च-शिक्षा प्राप्त उप-मुख्य चिकत्सा अधिकारी डॉ मोहम्मद अली बताये जाते हैं। डॉक्टर साहब का नर्सों पर ये आरोप है कि दोनों नें वार्ड में स्टीकर पर लिखी खुदा की आयतों को वहां से हटा दिया। इंटरनेशनल क्रिस्चियन कंसर्न नें इस घटना को नर्सों के खिलाफ षड्यंत्र बताया है।
अल्पसंख्यकों का पाकिस्तान में जीना वहां के इश-निंदा कानून के कारण से ज्यादा मुश्किल हो चला है, जिसमें मौत की सजा का प्रावधान शामिल है। इसकी गाज वहां रहने वाले ईसाई समाज के ऊपर ज्यादा गिरी है। २००५ में फैसलाबाद के ईसाईयों को इसलिये घर-बार छोड़कर भागना पड़ा था, क्योंकि किसी नें ये अफवाह फैला दी थी किसी ईसाई नें कुरान को जला डाला है। मुसलामानों की भीड़ नें चर्चों व इनके प्रतिठानों को आग के हवाले कर दिया था।
ईसाई छात्रा रिम्श मसीह और एक अन्य महिला आयशा बीबी पर मढ़े गए इश-निंदा के प्रकरण को लेकर तब खूब बवाल मचा था। ईश-निंदा कानून का विरोध करने के कारण से ही पाकिस्तान के ईसाई अल्पसंख्यक मंत्री भट्टी को २०११ में मार डाला गया था।
मजहबी-कट्टरता से पाकिस्तान में सिख भी सुरक्षित नहीं। पिछले साल ही एक घटना ने खूब सुर्खियाँ बटोरी थी जब सिक्खों के सर्वोच्च श्रद्धा के केंद्र नानाकना साहब के एक ग्रंथी की बेटी को मुस्लिम युवक अपहरण कर उठा ले गया। फिर धर्म परिवर्तन किया और शादी की,और जब लड़की के भाई नें थाने में रिपोर्ट लिखवायी तो मुसलमान इतने आक्रोशित हो उठे की उसे ढूँढ़ते-ढूँढ़ते नानाकना साहब जा घुसे और वहां तोड़फोड़ कर डाली।
यहाँ याद करने की जरूरत है उस बयान कि जो पाकिस्तान के रेल मंत्री रशीद ने एक समय दिया था कि हिंदुस्तान ने अगर पाकिस्तान पर हमला किया तो कन्वेन्शन वॉर की कोई गुंजाइश नहीं होगी, ये खूनी और आखिरी जंग होगी। रशिद ने आगे जो कहा दरअसल वो दिखलाता है कि कौमी-कट्टरता नें किस हद तक हर वर्ग के लोगों की सोचने-समझने की शक्ति को अपने वश में कर रखा है। उनका दावा था कि पाकिस्तान के पास ऐसे छोटे हथियार हैं, जो बहुत घातक हैं।और ये हथियार भारतीय इलाकों पर हमला करेंगे और मुसलमानों को इनसे कोई नुकसान नहीं होगा !
विभाजन के वक्त बाबा साहब अम्बेडकर के मना करने के बाद भी मुस्लिम लीग का साथ देते हुए पाकिस्तान जा बसे, वहां के प्रथम कानून मंत्री जोगेंद्र नाथ मंडल का पत्र -जो कि उन्होंनें तत्कालीन प्रधान मंत्री लियाकत अली खान को लिखा था- वहां की स्थिति बयान करने के लिए पर्याप्त है। जोगेंद्र नाथ मंडल लिखते हैं –
‘पूर्वी बंगाल में आज क्या हालात हैं? मुझे मुसलामानों द्वारा हिन्दुओं की बच्चीयों के साथ दुष्कर्म की लगातार ख़बरें मिल रहीं हैं। मुसलामानों द्वारा हिन्दू वकीलों, डॉक्टरों, व्यापारियों, दुकानदारों का बहिष्कार किया गया, जिसके बाद वो पलायन के लिए मजबूर हुए। हिन्दुओं द्वारा बेचे गए समान की मुसलमान पूरी कीमत नहीं दे रहे हैं। विभाजन के बाद पश्चिमी पंजाब में पिछड़ी जाति के एक लाख लोग थे। उनमें से बड़ी संख्या को बलपूर्वक इस्लाम में परिवर्तित कर दिया गया। मुझे एक सूची मिली है जिसके अनुसार ३६३ मंदिर और गुरुद्वारे मुस्लिमों के कब्जे में हैं। इनमें से कुछ को कसाई खाना और होटलों में तब्दील कर दिया है।’
और इसके बाद पाकिस्तान और उसके हुक्मरानों से मोह-भंग होने पर जोगेंद्र नाथ मंडल भारत लौट आये थे, और पश्चिम बंगाल में रहते हुए वहीँ पर ५ अक्टूबर, १९६८ को देह त्यागा।
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