भारत में जब भी प्यार के प्रतीक की बात आई तो विमर्श केवल ताजमहल तक ले गया, क्या और कोई प्यार का प्रतीक नहीं है? यह बात इसलिए उभर कर आती है कि प्रश्न बार बार उठता है कि लड़कियां मुस्लिम लड़कों से शादी क्यों कर लेती हैं? अय्याश शाहजहाँ के बनाए गए ताजमहल को प्यार की निशानी किसने घोषित किया? यदि अंग्रेजों या वाम इतिहासकारों ने घोषित किया भी था, तो उसकी असली कहानी, जो किताबों में पहले से उपस्थित थी, उसे पढ़कर पूरे हिन्दू समाज ने बहिष्कार क्यों नहीं किया?
आज शाहजहाँ की अय्याश और शर्मनाक मृत्यु की कहानी पर नज़र डालते हैं और स्वयं से एक प्रश्न करते हैं कि आज लड़कियों के दिमाग में जो सॉफ्ट कार्नर पैदा हुआ है, उसमें हिन्दू समाज का हाथ कितना है।
शाहजहाँ का नाम आते ही एक ऐसे बादशाह की तस्वीर उभर कर आती है, जो बेहद प्यारा था, जिसमें अपने प्यार अर्जुमंद बानो बेगम के लिए प्यार था और जिसने अपने प्यार के लिए ताजमहल बनाया। परन्तु प्यार का अर्थ क्या है? क्या कभी हमने चर्चा की? जब भी कोई हिन्दू परिवार ताजमहल में खड़े होकर तस्वीर खिंचवाता है, और कहता है कि प्यार के सबसे बड़े प्रतीक के साथ तस्वीर खिंचाई, तो वह अपने बच्चों के मन में दाम्पत्त्य प्रेम के कैसे प्रतीक को स्थापित कर रहा है?
अर्थात, एक ऐसा बादशाह, जो अपने भाइयों के साथ षड्यंत्र कर सकता है, जो गद्दी के लिए विद्रोह कर सकता है, और जो अपनी बेटियों को शादी के मूल अधिकार से वंचित रख सकता है, उसे आपने अपने बच्चों की दृष्टि में प्यार का मसीहा बनाकर प्रस्तुत कर दिया।
और उसकी मृत्यु कैसे हुई, यह आज भी एक रहस्य है। कहा जाता है कि शाहजहाँ बीमार हो गया था। मगर क्या बीमारी थी? यह किसी ने नहीं बताया है। इतिहास की किताबों में यह उल्लेख नहीं है कि शाहजहाँ की मृत्यु कैसे हुई?
औरंगजेब ने उत्तराधिकार के युद्ध में जीत प्राप्त करने के उपरान्त, अपने पिता को और अपनी बहन जहांआरा को कैद कर दिया था। औरंगजेब दिल से चाहता था कि उसने अपने भाइयों को तो मार दिया है, और उसके अब्बू भी जल्दी ही जाएँ। पर शाहजहाँ के मरने में अभी समय था। शिवाजी द ग्रांड रेबेल में डेनिस किनकैड ने पृष्ठ 213 पर लिखा है कि औरंगजेब हर रोज़ आगरा के किले की उस दीवार पर जोर जोर से ढोल नगाड़े बजवाता! जब शाहजहाँ के मरने की खबर नहीं आती तो वह फिर अगले दिन और तेज आवाज़ में ढोल नगाड़े, बजाने लगता। भीतर शाहजहाँ के कानों के पर्दे फटते रह जाते और फिर वह असहाय सा लेट जाता! और ऐसा एक या दो बरस नहीं बल्कि सात बरस चला।
डेनिस किनकैड के अनुसार शाहजहाँ को औरंगजेब ने कई बार जहर देने की कोशिश की, मगर मृत्यु नहीं हुई। डेनिस ने मानुकी के हवाले से लिखा है कि दरबार में दबी ज़बान से यह कहा जाने लगा था कि शाहजहाँ के पास उसकी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए कनीज़ें जाती थीं।
और यह भी कहा जाता है कि उसकी मृत्यु उसके बेटे की अभद्रता के कारण नहीं हुई, अपितु उसकी अपनी यौन कमजोरी के कारण हुई। एक दिन अपने आईने के सामने खड़े होकर वह चेहरा देख रहा था तो उसके कानों में रात की कनीजों द्वारा उसकी की गयी हरकतों का उपहास पड़ा!
शाहजहाँ इस मज़ाक को बर्दाश्त न कर सका और कहते हैं उसने इतना एप़ॉडिज़िऐक (कामोत्तेजक औषधि) मंगवाकर खाया कि वह मूर्छित हो गया और फिर मानुकी के शब्दों में, वह कभी भी सेब तक की गंध न ले सका अर्थात कभी उसे होश न आया और इस तरह सबसे शक्तिशाली सुलतान इस दुनिया से विदा हुआ!
अर्थात ताजमहल के रूपक के माध्यम से जिस व्यक्ति को हिन्दू समाज प्यार का सबसे बड़ा प्रतीक माने बैठा है, क्या वह अपने प्यार के प्रति वफादार था? यदि वह इतना ही प्यार करता था मुमताज से तो क्या वह अपनी प्रिय बेगम को बच्चे पैदा करने वाली मशीन बनाता? हालांकि उस समय यात्रा पर आए हुए फ्रांसीसी इतिहासकार बर्नियर ने अपनी किताब “ट्रेवेल्स इन द मुग़ल एम्पायर” में यह भी लिखा है कि शाहजहाँ के सम्बन्ध अपनी बेटी के साथ थे। वह उस समय पर फ़ैली हुई अफवाहों का हवाला देते हैं। परन्तु फिर भी अन्य समकालीन लेखकों की किताबों में यह तथ्य नहीं है, तो इसे इस बात पर आधारहीन स्थापित किया जा सकता है, कि बर्नियर का स्वाभाविक झुकाव औरंगजेब की ओर था। इसलिए दाराशिकोह का साथ देने वाली जहांआरा के खिलाफ वह ऐसा लिख सकता था।
परन्तु एक तथ्य जिसे नकारा नहीं जा सकता है कि यदि वह वाकई में प्यार का मसीहा था तो क्या उसने अर्जुमंदबानो बेगम अर्थात मुमताज महल के साथ निकाह के बाद निकाह नहीं किया? क्या उसने हरम में से औरतें निकाल दी थीं? क्या उसने अपने हरम को खाली कर दिया था?
नहीं! उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया था। फिर प्यार का प्रतीक शाहजहाँ को किसने और क्यों बनाया? क्यों ताजमहल एक आम दर्शनीय स्थल न होकर एक ऐसा प्रतीक उभर कर आया जिसने लड़कियों के दिल में उनके प्रति एक बेहद सॉफ्ट कार्नर बना दिया, जो हर हाल में दुनिया से काफिरों को समाप्त करना चाहते हैं और जिनका लक्ष्य गजवा-ए-हिन्द है!
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