उसे इश्क का मसीहा बनाया गया, एक फिल्म आई मुगलेआजम और गाना गाया जाने लगा, “जब प्यार किया तो डरना क्या?” सही में क्या डरना, जब इश्क इतनी बार होता है! फिल्म देखकर हिन्दू लडकियां गाना गाने लगती हैं, “जिंदाबाद, जिंदाबाद, ऐ मुहब्बत जिंदाबाद!” और सुबकते हुए सलीम की इस अमर प्रेम कहानी में खोकर अपने लिए शहजादा सलीम जैसा ही प्यार मांगने लगती हैं, और अल्लाह से दुआ क़ुबूल करवाने के लिए चली जाती हैं।
परन्तु इस जिंदाबाद में पहला झटका वह है जब इतिहास में नूरजहाँ की कहानी पढ़ाई जाती है, कि किस प्रकार जहांगीर नूरजहाँ का दीवाना था और वह तब से दीवाना था जब वह सलीम था! नूरजहाँ की कहानी पढ़कर ऐसा लगता है कि क्या सच था, अनारकली का अमर प्रेम या फिर वामपंथी इतिहासकारों द्वारा बताया गया यह विमर्श कि नूरजहाँ की मोहब्बत अमर थी और वह उस समय की सबसे ताकतवर औरत थी?
इतिहास में जब जहाँगीर का अध्याय आता है तो नूरजहाँ की मोहब्बत के कसीदे कसे जाते हैं, और लगता है कि अगर यहाँ मोहब्बत जिंदाबाद है तो वह क्या थी? फिर देखा कि यह मोहब्बत तो षड्यंत्र से भरी हुई थी। अनारकली थी या नहीं, जहाँगीर नामा में जितनी मोहब्बतें हैं, उनकी संतानों के विषय में जहाँगीर लिखता है
“बंगाल पांत के शासन पर हमने राजा मानसिंह को नियत किया…………..। हमारे पिता ने इसका सम्मान बढ़ाने को इसकी पुत्री अपने महल में ले ली और भगवान दास की पुत्री का सम्बन्ध हमसे किया। इसीसे भाग्यवान खुसरू पैदा हुआ, जो हमारा पहला पुत्र है।”
“खुसरू के अनंतर सईद खान काशगरी की पुत्री से जो काश्गर के सुलतान सारंद का पुत्र था, एक लड़की हुई, जिसका नाम इफ्फत बानू बेगम रखा गया। वह तीन वर्ष की उम्र में मर गयी। (सन 1586 में सलीम के तीन निकाह हुए थे, प्रथम जोधपुर नरेश उदयसिंह की पुत्री गोसाईन से, द्वितीय बीकानेर के राय रायसिंह की पुत्री से और तीसरा सईद खान काश्गरी की पुत्री से)। इसके बाद जैन खान कोका की रिश्तेदार साहब जमाल से काबुल में एक पुत्र हुआ।
“इसके अनंतर दरिया कौम की पुत्री से, जो बड़े राजाओं में से हैं और पर्वतों की तराई में रहता है, सात महीने की पुत्री हुई, जो मर गयी। इसके उपरान्त करमेती से जो राणा सूर के वंश से है, एक पुत्री हुई, जिसका नाम बहारबानू बेगम रखा पर दो महीने की होकर मर गयी।
“इसके अनंतर जगत गुसाईं से जो राजा उदय सिंह की पुत्री थी, जिसके आपस अस्सी सहस्त्र अश्वारोही सेना थी और जिससे बढकर हिन्दुस्थान में कोई राजा नहीं था, एक पुत्री हुई, पर तीन वर्ष की होकर वह मर गयी। इसके बाद राजा केशो की पुत्री साहिब जमाल से एक लड़की हुई जो सात दिन जीवित रही। इसके बाद मोटा राजा की पुत्री से खुर्रम हुआ, जो बहुत गुणों से संपन्न है।”
“इसके अनंतर कश्मीर के शासक के लड़की से, एक पुत्री हुई। इसके उपरान्त कामरान मिर्जा के दौहित्रों में से एक इब्राहीम हुसैन मिर्जा की पुत्री निसा बेगम से आठ महीने की एक बेटी हुई हुई, वह बहे उसी दिन मर गयी।”
हालांकि इसके बाद का भी वर्णन है मगर यदि कोई भी ऐसी लड़की जिसने जिसने दिलीप कुमार उर्फ़ सलीम को अनारकली के लिए “ऐ मोहब्बत जिंदाबाद” गाते हुए देखा था, इतने मोहब्बत और संतानों के विवरण मोहब्बत के भ्रम का आईना तोड़ने के लिए पर्याप्त होगा! और महलों में जन्माष्टमी मनाने वाले झूठ एवं प्यार का मसीहा और जन्माष्टमी मनाने वाला सलीम वास्तविकता में हिन्दुओं के लिए क्या सोचता था, उसके लिए भी जहाँगीरनामा में विस्तार से वर्णन उपलब्ध है। जिसमें अर्जुन देव की हत्या वह इसलिए करा देता है क्योंकि एक तो वह हिन्दू है (जहाँगीरनामा में सिखों के गुरु अर्जुन देव को हिन्दू ही लिखा है) और हिन्दू होकर चमत्कार आदि का दावा करता है और उसके बाद उसके बेटे को भी सीख देता है।
इसके अलावा वह सलाम भी मुस्लिम तरीके से करता है, मंदिरों को तोड़ता है! फिर मोहब्बत कैसी और किससे? कई बार यह समझ में नहीं आता कि मोहब्बत थी कि अय्याशियों की कहानियां और वामपंथी इतिहासकारों और फिल्मकारों ने हमारी हिन्दू पीढ़ी को कितना अधिक मीठा जहर दिया है कि वह समझ नहीं पाती हैं कि सच आखिर क्या है और झूठ क्या है?
पूरे जहाँगीरनामा में जहाँगीर ने अपनी माता, अर्थात कथित रूप से जोधाबाई जिसे कथित रूप से दी गयी धार्मिक आजादी के सदके किए जाते हैं, को हिन्दू नाम से संबोधित नहीं किया है! इस षड्यंत्र को समझना है और असली किताबें पढ़कर अपने बच्चों को सिखाना है!
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